पुराणों अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें कई नागों की उत्पत्ति हुई है। जैसे अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पिंगला, पद्म, महापद्म, शंख, कुलिक, चूड़, धनंजय आदि। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है। कहते हैं कि कालिया नाग भी कद्रू का पुत्र और वह पन्नग जाति का नागराज था।
कालिया नाग पहले रमण नामक द्वीप में निवास करता था। कहते हैं कि पक्षीराज गरुड़ से जब उसकी शत्रुता बढ़ गई तो वह अपनी पत्नियों सहित यमुना नदी के कुण्ड में आकर रहने लगा था। कालिया जानता था कि यही स्थान सुरक्षित है और यहां गरुड़ भगवान नहीं आ सकते हैं, क्योंकि यहीं पर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी कुंड से मछलियों को बलपूर्वक पकड़कर खा लिया था। इससे क्रोधित होकर महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दे दिया था कि अब यदि तुमने यहां आकर फिर कभी मछलियों को खाया तो उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यही कारण था कि कालिया नाग यहीं छुपकर रहता था।
उसके विष के कारण यमुना का जल एक स्थान से जहरिला हो चला था जिसके चलते गोकुलवासी उस पानी का उपयोग नहीं कर सकते थे। कालिया देह या कुंड के स्थान पर जो भी जाता था कालिया नाग उसे खा जाता था। इसीलिए उसे कालिया दाह कहने लगे थे।
कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण की गेंद उस यमुना कुंड में गिर गई थी। गेंद लेने के लिए श्रीकृष्ण यमुना के उस स्थान पर कूद जाते हैं और जल के अंदर जाकर वे कालिया नाग से युद्ध कर उसको सपर्मण करने के लिए मजबूर कर देते हैं। तब कालिया नाग दया की भीख मांगता है तो भगवान कहते हैं कि तुम वहीं जाओ जहां तुम पहले रहते थे। कालिया नाग कहता है प्रभु वहां तो आपका सेवक गरुड़ मेरी जान का दुश्मन है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे शीश पर मेरे चरणों के निशान देखकर गरुड़ तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे। तब कालियान नाग अपनी पत्नियों सहित पुन: रमण द्वीप पर चला जाता है।
भारत में निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।