कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए पहले पूतना, श्रीधर तांत्रिक, उत्कच, तृणासुर, तृणावर्त आदि कई अनुरों और राक्षसों को भेजा लेकिन बालकृष्ण ने सभी का वध कर दिया। कुछ समय बाद फिर नंदबाबा गोकुल से वृंदावन चले गए। वहां श्रीकृष्ण ने गोप और गोपियों के साथ खूब रास रचाया। फिर एक दिन कंस ने बलदेव और श्रीकृष्ण को मारने की एक नई योजना बनाई।
अक्रूरजी भगवान श्रीकृष्ण के काका थे, जो मथुरा में रहते ते। उन्हें वसुदेवजी का भाई बताया गया है। अक्रूरजी कंस के पिता उग्रसेन के दरबार में एक दरबारी के रूप में कार्य करते थे। जब कंस ने उग्रसेन को बंदी बना लिया तो अक्रूरजी की शक्तियां कमजोर हो गई।
कहते हैं कि जब नारद मुनि द्वारा कंस को यह पता चला कि कृष्ण देवकी का तथा बलराम रोहिणी का पुत्र है तो उसने अपनी योजना के तहत कंस ने अक्रूरजी के माध्यय से उनसे दोनों ही वीर बालकों को मल्ल युद्ध (पहलवानी) की एक प्रतियोगिता में आमंत्रित कर दोनों का वध करने की योजना बनाई। अक्रूरजी दोनों ही बालकों को निमंत्रण दे आए।
चाणूर और मुष्टिक मथुरा के राजा कंस के राज्य में उसके प्रमुख पहलवान थे। कंस चाहता था कि यह दोनों मिलकर दोनों बालकों का वध कर दें। चाणूर और मुष्टिक के अलावा शल तथा तोषल नामक मल्ल भी तैयार थे। साथ ही कुबलयापीड नाम के एक हाथी को विशेष प्रशिक्षण दिलाकर कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए रखा गया था।
श्रीकृष्ण और बलराम पहली बार ग्वालबालों के साथ मथुरा पधारे तो नगर भ्रमण के दौरान जहां दंगल हो रहा था उस रंगशाला का पता पूछते-पूछते वहां पहुंच गए। रंगशाला सजी हुई थी। विशालकाय शिव का धनुष रखा हुआ था। द्वार के पास ही हाथी भी बंधा हुआ था। रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े मल्ल दंगल के लिए उतावले खड़े थे। दंगल देखने के लिए महाराज कंस उच्च मंच पर रखे सिंहासन पर अपने मंत्रियों के साथ विराजमान था।
रंगशाला में प्रवेश करते ही सहसा ही श्रीकृष्ण से शिव का धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वह अनायास ही टूट गया। यह देखकर उसकी सुरक्षा में लगे सैनिकों ने हमला कर दिया। दोनों भाइयों ने मिलकर सैनिकों को मार दिया। इस घटना से वहां हाहाकार मच गया तभी हाथी को छोड़ दिया गया। दोनों भाइयों ने हाथी का भी वध कर दिया। यह देखकर कंस ने चाणूर, मुष्टिक को इशारा किया। दोनों मल्ल अखाड़े में उतर गए।
चाणूर ने श्रीकृष्ण को और मुष्टिक ने बलराम जी को ललकारा। इस प्रकार मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया। सभी प्रजा यह युद्ध देखने के लिए जुटी हुई थी। दोनों भाइयों ने दोनों का वध कर दिया तो कंस घबरा गया फिर उसने अपने अन्य मल्लों को इंगित किया। कूट, शल, तोषल आदि भी मारे गए तब कंस ने सैनिकों को आदेश दिया की इन दोनों दुष्ट बालकों को पकड़कर मथुरा से निष्कासित किया जाए और नंद को पकड़कर कारागार में डाला जाए और दुष्ट वसुदेव और उग्रसेन का बिना विलंब किए वध कर दिया जाए। लेकिन कंस के आदेश का पालन होता उससे पहले ही श्रीकृष्ण और बलराम उछलकर कंस के सम्मुख पहुंच गए और श्रीकृष्ण ने बड़े ही जोर से कंस की छाती पर एक लात मारा जिसके चलते वह नीचे गिर पड़ा। फिर श्रीकृष्ण उसके केश पकड़कर उसे खींचकर अखाड़े में ले आए। असहाय कंस चीखने पुकारने लगा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी छाती पर मुष्टिक प्रहार करके उसका वध कर दिया। यह देख और सुनकर मथुरा में हर्ष व्याप्त हो गया।
कहते हैं कि कंस वध करने के बाद दोनों ही अक्रूरजी के घर गए।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण और बलराम ने 16 वर्ष की उम्र में चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। कहते हैं कि यह मार्शल आर्ट की विद्या थी। पूर्व में इस विद्या का नाम कलारिपट्टू था। जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कलारिपट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। इसी कारण 'नारायणी सेना' भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी। श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू की नींव रखी, जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। बोधिधर्मन के कारण ही यह विद्या चीन, जापान आदि बौद्ध राष्ट्रों में खूब फली-फूली।