बहुत से लोग मानते हैं कि भगवान शिव भांग पीते थे और बहुत से लोगों ने तो भगवान शिव के ऐसे भी चित्र बना लिए हैं जिसमें वे चिलम पीते हुए नजर आते हैं। सचमुच यह निंदनीय है। आओ जानते हैं समाज में प्रचलित धारणा।
भांग के पक्षधर :
1. बहुत से लोग कहते हैं कि जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से निकला विष भगवान शिव ने पीकर अपने गले में धारण कर लिया था। इससे उन्हें बहुत गर्मी होने लगी। इसलिए वे भांग और चिलम पीते हैं क्योंकि यह दोनों ही ठंडक बढ़ाते हैं। यह एक कूलैंट का काम करता है। इसीलिए ही उन्हें बेलपत्र, धतूरा और कच्चा दूध चढ़ाया जाता है जो कि ठंडक प्रदान करने का कार्य करता है।
2. बहुत से तंत्रमार्गी लोगों का मानना है कि भांग और चिलम का सेवन करने से ध्यान अच्छा लगता है। यह मस्तिष्क को शांत रखती है। यही कारण है कि कई अघोरी और नागा चिलम पीते हैं, ताकि वो और भी ध्यान लगा के आनंद प्राप्त कर सकें।
3. कहते हैं कि हलाहल विष के सेवन के बाद उनका शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया था। तब भगवान शिव का शरीर तपने लगा परंतु फिर भी शिव पूर्णतः शांत थे लेकिन देवताओं और अश्विनी कुमारों ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष का प्रभाव कम करने के लिए विजया (भांग का पौधा), बेलपत्र और धतूरे को दूध में मिलाकर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया। तभी से लोग भगवान शिव को भांग भी चढ़ाने लगे।
4. कुछ विद्वान कहते हैं कि विश्व को हलाहल के कुप्रभावों से संरक्षित करने के लिए ही शिवार्चन के समय बेलपत्र आदि को शिवलिंग पर चढ़ाने की परम्परा है। शिवलिंग पर जिन-जिन भी द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है उन सभी द्रव्यों से ब्रहमाण्डीय ऊर्जा के नकारात्मक प्रभावों का शमन होता है। यही रुद्राभिषेक का विज्ञान है। इस प्रकार की अर्चना करने वाले को तत्काल राहत मिलती है।
भांग के विरोधी :
1. सचाई यह है कि समुद्र मंथन से निकले विष की बूंद गिरने से भांग और धतूरे नाम के पौधे उत्पन्न हो गए। कोई कहने लगा कि यह तो शंकरजी की प्रिय परम बूटी है। फिर लोगों ने कथा बना ली कि यह पौधा गंगा किनारे उगा था। इसलिए इसे गंगा की बहन के रूप में भी जाना गया। तभी भांग को शिव की जटा पर बसी गंगा के बगल में जगह मिली है। फिर क्या था सभी लोग भांग घोट-घोट के शंकरजी को चढ़ाने लगे। जबकि शिव महापुराण में कहीं भी नहीं लिखा है कि शंकरजी को भांग प्रिय है। यह तो काशी, मथुरा आदि क्षेत्र के भंगेड़ियों ने ही इसे प्रिय बना दिया। हकीकत यह है कि शिवजी का कंठ जलता है तो इस कंठ की जलन को 2 वस्तुओं से रोका जा सकता है एक गाय का दूध और दूसरा भांग का लेप, लेकिन शास्त्रों में कहीं भी शिवजी के भांग, गांजा या चीलम पीने का उल्लेख नहीं मिलता है।
2. कई लोग कहते हैं कि भांग एक औषधी है और इसके कई औषिधीय गुणों की बात करते हैं और तर्क देते हैं कि यदि इसे उचित मात्रा में लें तो इसके कई मेडिकल फायदे हैं। दरअसल, मेडिकल फायदे बीमार लोगों के लिए हैं। भांग को सिर्फ दो लोग ही इस्तेमाल करते हैं एक वे जो बीमार हैं और दूसरा वे जो नशा करना चाहते हैं। शिवजी न तो बीमार है और ना ही नशा के आदि हैं। वे तो परम योगी है उन्हें भांग की आवश्यकता नहीं। ध्यान के नशे के आगे तो सभी नशे कमजोर हैं। जिसे समाधी का नशा हो वह दूसरा नशा क्या करेगा।
3. दरअसल, योग की उच्चतम स्थिति में शरीर की आवश्यकताएं अत्यन्त ही गौड़ हो जाती हैं। इस स्थिति में आहार का महत्त्व ही नहीं रह जाता। फिर नशे आदि का प्रयोजन ही कहां रह जाता है? कोई भी योगी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करता क्योंकि योग की शक्तियां प्राप्त करने में हर तरह का नशा बाधा उत्पन्न करता है। जब एक सामान्य योगी ऐसा नहीं कर सकता तो फिर शिवजी तो भगवान हैं।
4. विद्वान लोग कहते हैं कि यह अनर्गल बातें उन लोगों ने फैलाई जो धर्म की आड़ में नशा करना चाहते हैं। पहले भांग को शिवजी से जोड़ा गया और बाद में धीरे से गांजा और चरस को भी जोड़ दिया गया। भांग, गांजे आदि नशे की आदत को शिव के साथ जोड़कर अपने नशेड़ीपन को एक आध्यात्मिक पहलू देकर वे समाज से बचकर पाक-साफ बने रहना चाहते थे। आप व्यक्ति इसे पीता है तो उन्हें गजेड़ी, भंगेड़ी और नशेड़ी कहा जाता है जबकि यही कार्य कोई साधु करता है तो उसे अघोरी कहते हैं।
5. भगवान शिव के संबंध में गलत प्रचार करेंगे तो लोग उनसे क्या प्रेरणा लेंगे? यही कि भांग, चिलम पीना चाहिए? नशा करना चाहिए? शिव का अर्थ है शुभ और कल्याण कारण मोक्ष देने वाला। परन्तु नशे के सेवन से किस प्रकार का कल्याण हो पाएगा? इसलिए शिव को नशे से जोड़ना एकदम ही गलत है। शिव से योग की प्ररेणा लें, ध्यान की प्रेरणा लें, विद्वत्ता और निस्पृहता की प्रेरणा लें तभी जीवन का उद्देश्य सफल होगा।
6. ऐसे में यदि आपके घर, मंदिर या अन्य किसी भी स्थान पर भगवान शंकर का ऐसा चित्र या मूर्ति लगा है जिसमें वे चीलम पीते या भांग का सेवन करते हुए नजर आ रहे हैं तो उसे आप तुरंत ही हटा दें तो अच्छा है। यह भगवान शंकर का घोर अपमान है। यह भी कितना दुखभरा है कि कई लोगों ने भगवान शंकर पर ऐसे गीत और गाने बनाएं हैं जिसमें उन्हें भांग का सेवन करने का उल्लेख किया गया है। कोई गीतकार या गायक यह जानने का प्रयास नहीं करता है कि इस बारे में सच क्या है। मैं जो गाना गा रहा हूं या गीत लिख रहा हूं उसका आधार क्या है? भगवान ऐसे भक्त को भी अपना भक्त मानते हैं जो उनका घोर अपमान करके उनकी छवि खराब कर रहे हैं। जय भोलेनाथ की जय।