Sawan Shivratri 2024: सावन शिवरात्रि पर बन रहा है बेहद दुर्लभ योग, पूजा का मिलेगा तुरंत फल
Sawan Shivratri 2024: सावन शिवरात्रि पर भद्रावास और सर्वार्थ सिद्धि का योग संयोग
When is Shravan Shivratri 2024: श्रावण मास की कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि का महापर्व रहता है, जबकि फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाते हैं। इस बार शिवरात्रि का पर्व 2 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस दिन बेहद दुर्लभ योग संयोग बन रहे हैं। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही भद्रावास योग भी है। ऐसे शुभ योग में की गई पूजा का तुरंत फल मिलेगा।
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चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 02 अगस्त 2024 को दोपहर 03:26 बजे से प्रारंभ।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 03 अगस्त 2024 को दोपहर 03:50 बजे बजे समाप्त।
चूंकि शिवरात्रि की पूजा का महत्व रात में और खासकर निशिथ काल में रहता है इसलिए यह 2 अगस्त 2024 शुक्रावार को रहेगी।
निशिथ काल पूजा समय:-
02 अगस्त की रात को 12:06 से 12:49 तक (अंग्रेजी टाइम के अनुसार 3 अगस्त रहेगी).
03 अगस्त 2024 को, शिवरात्रि पारण समय- प्रात: 05:44 AM से 03:49 PM.
दुर्लभ योग:-
1. भद्रावास योग: इस समय भद्रा स्वर्ग में ही वास करेंगी। यह भद्रावास योग 2 अगस्त की दोपहर 3 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो रहा है और इस योग का समापन 3 अगस्त की देररात 3 बजकर 35 मिनट पर हो जाएगा। भद्रा के स्वर्ग और पाताल में रहने पर पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीवों का कल्याण होता है।
2. सर्वार्थ सिद्धि योग: 2 अगस्त सुबह 10:59 से 3 अगस्त प्रात: 05:44 तक रहेगा।
2 अगस्त 2024 शिवरात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:19 से 05:01 तक।
प्रातः सन्ध्या: प्रात: 04:40 से 05:43 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:54 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:42 से 03:36 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:11 से 07:32 तक।
सायाह्न सन्ध्या: शाम 07:11 से 08:14 तक।
शिवरात्रि पूजा विधि:-
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शिवरात्रि के एक दिन पहले यानी त्रयोदशी तिथि के दिन केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
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शिवरात्रि के दिन सुबह नित्य कर्म करने के बाद पुरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
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इसके बाद प्रात:काल में, अभिजीत मुहूर्त में, प्रदोष काल में और निशिथ काल में पूजा करना चाहिए।
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पूजा के लिए पहले पूजा सामग्री एकत्रित कर लें। जैसे चंदन, भस्म, नैवेद्य, बेलपत्र, दूध, जल, तांबा का लोटा, पंचामृत, हार, फूल आदि।
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अब एक स्वच्छ पाट पर एक तांबे तरभाणे में शिवलिंग को स्थापित करें।
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शिवलिंग का पहले मंत्रों के साथ जलाभिषेक करें, फिर दुग्धाभिषेक या पंचामृत अभिषेक करें। इसके बाद पुन: जलाभिषेक करें।
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जलाभिषेक के बाद शिवजी को चंदन लगाएं। फिर बेलपत्र और फूल आदि पूजा सामग्री अर्पित करें।
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इसके बाद नैवेद्य अर्पित करें और अंत में आरती करें।
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आरती के बाद सभी को प्रसाद का वितरण करें।
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अगले दिन स्नानादि के पश्चात् अपना व्रत तोड़ना चाहिए या चतुर्दशी तिथि अस्त होने के पहले व्रत खोल लेना चाहिए।
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