भूले-बिसरे समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किए जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। अश्विन माह की अमावस्या तिथि पितरों के श्राद्ध के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। आओ जानते हैं इसके बारे में 3 महत्वपूर्ण बातें।
1.तर्पण और पिंडदान : पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए। नहीं कर पाएं हैं तो सर्वपितृ अमावस्या को पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण करें। इस दौरान पिंड दान भी करें। पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं। पिंडदान के लिए आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी माना जाता है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। अत: पिंडदान करें। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं।
2.ब्राह्मण भोजन : सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के बाद पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। इसके पश्चात ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाएं और अपनी क्षमतानुसार उन्हें दक्षिणा दें। ब्राह्मण भोजन के बाद पितरों को धन्यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे। इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें। यदि यह कार्य नहीं कर सकते हैं तो किसी मंदिर में सीदा (कच्चा अन्न) दान करें।
3.धूप-दीप दें : संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप प्रज्जवलित करें और गीता का 7वां अध्याय या मार्कण्डेय पुराणांतर्गत 'पितृ स्तुति' करें। इस दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक व शारीरिक तौर पर तो संतुष्टि या शांति प्राप्त होती ही है साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि बढ़ती है और सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। धूप देने के लिए कंडे पर गुड़ और घी के साथ अन्न को अग्नि में समर्पित किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या में उपरोक्त तीन कार्य कर लिए तो आपको पितरों का भरपूर आशीर्वाद मिलेगा और जीवन की बाधाएं दूर होकर सुख, शांति और समृद्धि बढ़ेगी।