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सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध में पंचबलि भोग लगा दिया तो पितृ हो जाएंगे प्रसन्न

हमें फॉलो करें Pitru Paksha 2021, Crow
, शनिवार, 2 अक्टूबर 2021 (18:01 IST)
यदि आप 16 दिन के श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज आदि कर्म नहीं कर पाएं हैं तो सर्वपितृ अमावस्या पर ये कर्म कर सकते हैं। यदि यह कर्म भी नहीं कर सकते हैं तो आपको पंचबलि कर्म जरूर करना चाहिए क्योंकि इसी से आपके पितृ तृप्त होते हैं।
 
 
पंचबलि संकल्प : भोजन तैयार होने पर एक थाली में 5 जगह थोड़े-थोड़े सभी प्रकार के भोजन परोसकर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, चन्दन लेकर निम्नलिखित संकल्प करें। इसमें अमुक की जगह अपने गोत्र और नाम का उच्चारण करें- अद्यामुक गोत्र अमुक वर्मा (गुप्ता, कुमार, सूर्यवंशी आदि) अहममुकगोत्रस्य मम पितुः (मातुः भ्रातुः पितामहस्य वा) वार्षिक श्राद्धे (महालय श्राद्धे) कृतस्य पाकस्य शुद्ध्यर्थं पंचसूनाजनित दोष परिहारार्थं च पंचबलिदानं करिश्ये।.. अब जल छोड़ दीजिये।
 
 
पंचबलि कर्म : 1.गोबलि, 2.श्वानबलि, 3.काकबलि, 4.देवादिबलि और पांचवां पिपीलिकादिबलि
 
पंचबलि विधि :-
 
1. गोबलि : मंत्र पढ़ते हुए गाय के समक्ष उसके हिस्से का भोजन पत्ते पर रख दें। रखते वक्त ये मंत्र बोलें- ॐ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः। प्रतिगृह्वन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।। इदं गोभ्यो न मम।
 
2. श्वानबलि : इसी प्रकार कुत्ते के हिस्से का भोजन पत्ते पर रखकर उसे खिलाएं और यह मंत्र बोलें:- द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोöवौ। ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेताव हिंसकौ।। इदं श्वभ्यां न मम।
 
3. काकबलि : कौओं के लिए साफ भूमि या छत पर अन्न और जल रखकर ये मं‍‍त्र बोलें- ॐ ऐन्द्रवारूणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा। वायसाः प्रतिगृह्वन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्।। इदमन्नं वायसेभ्यो न मम।
 
4. देवादिबलि : देवताओं आदि के लिए पत्ते पर अन्न और जल रखकर यह मंत्र बोलें- ॐ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः। प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।। इदमन्नं देवादिभ्यो न मम। इसके बाद भाग अग्नि के सपुर्द कर दें।
 
5. पिपीलिकादिबलि : इसी प्रकार एक पत्ते पर चींटी, मकौड़े आदि के लिए उनके बिलों के पास भोजन रखें और ये मंत्र बोलें- पिलीलिकाः कीटपतंगकाद्या बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः। तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु।। इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम।

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