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कैसे करें षष्ठी तिथि पर तर्पण और पिंडदान

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, बुधवार, 14 सितम्बर 2022 (17:21 IST)
Shashti shradh 2022: पितृपक्ष में जो षष्ठी तिथि को श्राद्धकर्म संपन्न करता है उसकी पूजा देवता लोग करते हैं। षष्ठी अर्थात छठ तिथि के श्राद्ध में घर पर ही कैसे करते हैं तर्पण और पिंडदान जानिए सरल विधि। जल से तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। चावल से बने पिंड का दान करने से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं।
 

षष्ठी तिथि प्रारंभ और समापन टाइम | Shradh 2022 start date and end date : षष्ठी तिथि 15 सितंबर को सुबह 11 बजे प्रारंभ होगी और 16 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 19 मिनट को समाप्त होगी। इस मान से कुछ लोग 15 तारीख को और कुछ लोग 16 तारीख को षष्ठी का श्राद्ध मनाएंगे। अधिकतर जगह पर 15 तारीख को ही षष्ठी का श्राद्ध मनाया जाएगा।
 
कैसे करते हैं तर्पण । Kaise kare Pitru tarpan:
 
1. पितृ पक्ष में प्रतिदिन नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान करने के बाद तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण किया जाता है। इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है।
 
2. सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्रण (ताम्बे की प्लेट), कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे। आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें। ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
 
3. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें। 
 
4. अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
 
5. इसके बाद थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।
 
6. अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें।  अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण किया जाता है।
 
7. इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें। 
 
8. तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
 
9. जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए। फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है।
 
10. इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
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कैसे करें पिंडदान । Kaise kare pitru pind daan: पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।
 
1. तर्पण या पिंडदान करते समय सफेद वस्त्र पहने जाते हैं और दोहपहर में ही यह क्रिया करें।
 
2. पहले पिंड को तैयार कर लें और फिर चावल, कच्चा सूत्र, मिठाई, फूल, जौ, तिल और दही से उसकी पूजा करें। पूजा करते वक्त अगरबत्ती जलाएं।
 
3. कम से कम तीन पीढ़ी का पिंडदान करें। 
 
4. पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी अंगुली के मध्य से छोड़ें।
 
5. पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें। 
 
5. अब पिंडों को उठाकर ले जाएं और उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
 
6. पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म करें। अर्थात पांच जीवों को भोजन कराएं। गोबलि, श्वान बलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि। गोबलि अर्थात गाय को भोजन, श्वान बलि अर्थात कुत्ते को भोजन, काकबलि अर्थात देवी और देवताओं को भोग लगाना, पिपलि बलि अर्थात पीपल के पेड़ में भोजन को अर्पण करना।

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