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Shradh Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष में घर पर ही तर्पण करने की सरल वि‍धि

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WD Feature Desk

, सोमवार, 8 सितम्बर 2025 (15:22 IST)
Shradh Paksha 2025: पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्‍विन माह की अमावस्या तक रहता है। सोलह दिनों के श्राद्ध पक्ष में तर्पण, पिंडदान, पंचबलि कर्म और ब्रह्मण भोज करते हैं। इस बार 07 सितंबर 2025 से 21 सितंबर तक 16 श्राद्ध पक्ष रहेंगे। आओ जानते हैं घर पर ही तर्पण करने की सरल विधि।
 
किसे कहते और कैसे करते हैं तर्पण- Who is called and how to perform Tarpan:
किसे कहते हैं तर्पण:- तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। पितरों के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण के प्रकार:- तर्पण के 6 प्रकार हैं- 1. देव-तर्पण 2. ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य-पितृ-तर्पण। सभी के के लिए तर्पण करते हैं।
1. पितृ पक्ष में प्रतिदिन नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान करने के बाद तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण किया जाता है। आप घर पर भी तर्पणकर सकते हैं। इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है।
 
2. सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्रण (ताम्बे की प्लेट), कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे। आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें। ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
 
3. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें। 
 
4. अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
 
5. इसके बाद थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।
6. अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें।  अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण किया जाता है।
 
7. इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें। 
8. तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
 
9. जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए। फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है।
10. इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।

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