भगवान शिव की यह 6 आध्यात्मिक बातें आपकी आंखें खोल देंगी

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देवों के देव महादेव को पंचदेवों का प्रधान कहा गया है। ये अनादि परमेश्वर हैं और आगम-निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता हैं। शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। इस आधार पर दैवीय शक्ति के जीव तत्व को चेतन करने वाले स्वयं भगवान शिव, शक्ति के साथ इस समस्त जगत मंडल व ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं। 
 
मृत्युंजयाय रुद्राय,
नीलकंठाय संभवै,
अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय
ते नमो नम:।
मृत्युंजय महारुद्र त्राहिमाम
शरणागतम्,
जन्म-मृत्यु जरा व्याधि,
पीड़ितम कर्म बंधन:। 
 
अर्थात... मृत्यु को जय करने वाले भगवान महाशंभू को हम नमन करते हैं जिन्होंने नीलकंठस्वरूप को धारण करके संसार के समस्त गरल (विष) को शमन किया है। साथ ही मृत्यु को जीतने वाले महाशिव हम आपको साधना के साथ नमन करते हुए जन्म-मृत्यु के बंधन से पीड़ित अवस्था से मुक्त होकर आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमें ज्ञान, वैराग्य सहित सांसारिक कर्म बंधन से मुक्ति का मार्ग प्रदान करें।
 
कल्पांतरों के अंतर्गत ऐसे कई कल्प व युग बीत चुके हैं जिसमें भगवान शिव की प्रभुसत्ता विशेष रूप से दृश्य होती है। शिव महापुराण के अनुसार वेद के अधिष्ठात्र, ब्रह्माजी को वेद का ज्ञान कराने वाले और वेद ग्रंथ देने वाले स्वयं भगवान शिव ही हैं। वे ही साक्षात ईश्वर हैं जिन्होंने सृष्टि के तीनों अनुक्रमों को स्थापित किया है। 
 
पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम ज्योति स्तंभ का उल्लेख प्राप्त होता है। कोटि रुद्र संहिता तथा शत रुद्र संहिता में भगवान शिव के परम प्रकाशमयी, तेजोमयी, दिव्य तेज का पुंज जागृत हुआ जिसके द्वारा विष्णुजी की उत्पत्ति हुई। विष्णु के द्वारा नाभि कमल पर ब्रह्माजी की उत्पत्ति का उल्लेख प्राप्त होता है।
 
शिव करते हैं जीव चेतना का संचार
 
शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। ब्रहमा द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का उल्लेख एवं सृष्टि का संचार क्रम शिव से है। शिव प्रथम, विष्णु द्वितीय तथा ब्रह्मा तृतीय स्थान पर हैं किंतु सांसारिक मान्यता में ब्रह्मा प्रथम, विष्णु द्वितीय तथा शिव तृतीय प्रलयंकारी के रूप में माने जाते हैं। 
 
शिव स्वरूप में समाया सारा संसार
 
भगवान शिव के स्वरूप तथा क्रिया विधि के अंतर्गत जो स्थितियां सामने आती हैं, उसे देखें तो जिन्होंने वेद, पुराण के माध्यम से जगत को अपने ज्ञान तथा अध्यात्म से परिचय करवाया, ऐसे महाशिव एक सामान्य प्राणी को अपने विशिष्ट पद से लेकर आत्मा-परमात्मा का अनुभूत सिद्धांत प्रदान करते हैं। संसार सहित ब्रह्मांड के कालक्रम सिद्धांत के अनुसार संसार के भरण-पोषण आदि क्रम को वेदों के माध्‍यम से अन्य देवताओं की नियुक्तियों द्वारा संपादित करने की अवस्था का अनुक्रम दिया गया है। 
 
क्या हैं हमारे कर्म और प्रारब्ध
 
परम शक्ति महाशिव के तीनों गुणों का उल्लेख समयानुसार युग परिवर्तन के माध्‍यम से सात्विक, राजसी एवं तामसी स्वरूप में दिखाई देता है। ऐसे महाशिव जिन्होंने सृष्टि की उत्पत्ति तथा जगत के विस्तार एवं निरंतर विकास की प्रणाली को अपनाते हुए ब्रह्मस्वरूप को स्‍थापित किया है, जिसके द्वारा हम क्या है, कैसे हैं, कहां से आए हैं, अंत और प्रारंभ क्या है, कर्म के आधार पर हमारे प्रारब्ध क्या होंगे, इन अवस्थाओं का उपनिषदीय ज्ञान ऋषियों के माध्यम से परम तत्व बिंदु के रूप में हमारे समक्ष विद्यमान किया है।
 
शिव एकमात्र परम अघोरी 
 
भगवान शिव ऐसे अघोरी हैं जिनके द्वारा संसार की समस्त दिव्य शक्तियां, क्रियाएं तथा प्राकृतिक दृष्टिकोण से संतुलन की उन अवस्थाओं का ज्ञान हमें प्राप्त होता है, जो वर्ण व्यवस्था के साथ आश्रम व्यवस्था को भी हमें अनुभूत करवाता है। अध्यात्म शब्द से देखें तो दो प्रभाव उल्लेखित होते हैं जिसमें क्रमश: अधि आत्म अर्थात वह आत्मा जो अधिभूत, अधियज्ञ के नाम से जानी जाती है। चूंकि समस्त भागवदीय अनुक्रम पंच महाभूतों से संबंधित है, देव षडायन की पौराणिक मान्यता पर निर्भर करता है। इन अवस्था व व्यवस्थाओं को शिव अपने अंश मात्र से धारण किए हुए हैं। 
 
संसार का प्रबंधन और शिव
 
शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो संसार का प्रबंधन संभालते हैं। उन्हीं के द्वारा ज्ञान तथा वैराग्य जैसे मूलभूत दिव्य साधना का साक्षात्कार करती है। इन अवस्थाओं का ज्ञान एवं अनुभव आध्यात्मिक, परमात्मिक स्थितियों से होकर गुजरता है। संसार तथा ब्रह्मांड के समग्र में भगवान शिव का परम तेज बिंदु अपनी गति से समस्त जीवात्माओं को प्रकाशित करता है। ये सभी जीवात्माएं शिव के उस स्वरूप का दर्शन व अनुभव करती हैं जिसके अंतर्गत संसार की ये सभी परिस्थितियां आश्रम व्यवस्था पर आधारित हैं। 
 
शिव ही परम गुरु 
 
शिव की कृपा एक परम गुरु के रूप में हमारे सामने युगों से चली आ रही है, जो हमें जीवन को बेहतर बनाने की कला, वर्तमान से संघर्ष करते हुए समस्त विकारों पर नियंत्रण करके जीवन यात्रा को विजयी बनाती है। गृहस्थ एवं संन्यास के माध्यम से दो विशेष स्थितियां जीव कल्प में प्राप्त होती हैं। दोनों का ध्येय शिव के परम दर्शन प्राप्त कर सांसारिक यात्रा को विराम देकर जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का प्रयास ही माना जाता है। 

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