नवदुर्गा के इन रहस्यों को शर्तिया आप नहीं जानते होंगे

अनिरुद्ध जोशी
देवियों में त्रिदेवी, नवदुर्गा, दशमहाविद्या और चौसठ योगिनियों का समूह है। हिन्दू धर्म में सैंकड़ों देवियां हैं। उनमें से कुछ प्रजापतियों की पुत्रियां हैं, तो कुछ स्यंभू हैं और कुछ अन्य किसी देवता की पत्नियां हैं। अधिकतर देवियों को भगवान शंकर की पत्नी पार्वती से जोड़कर देखा जाता है। अधिकतर लोग हिन्दू धर्म के देवी और देवताओं की उत्पत्ति और उनका इतिहास नहीं जानते हैं इसीलिए समाज में हजारों तरह की भ्रांत धारणाएं प्रचलित हैं। आओ जानते हैं नवरात्रि में पूजे जाने वालीं देवियों का रहस्य।
 
 
दुर्गा माता कौन हैं?
शिव पुराण, दुर्गा सप्तशती आदि जगहों पर माता अम्बिका को त्रिदेव जननी कहा गया है। त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जननी। इन माता को ही अम्बे, सर्वेश्वरी, जगदम्बे आदि नामों से पुकारा जाता है। नवरात्रि में नवदुर्गा की पूजा होती है। 'नव' के आगे 'दुर्गा' शब्द जुड़ा हुआ है। इसका आशय यह है कि वह माता दुर्गा है, पार्वती या सती नहीं?
 
 
उस अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसलिए उनका नाम दुर्गा पड़ा। मधु और कैटभ का वध करने के कारण उन्हें ही कैटभा भी कहा जाता है। चंड और मुंड नामक असुरों का वध करने के कारण उन्हें चामुंडा कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार सदाशिव द्वारा प्रकट की गईं उस अम्बिका शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगत जननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं यह शक्ति जिसे जगदम्बा भी कहते हैं।
 
 
फिर सती और पार्वती कौन हैं?
भगवान शंकर को महेश और महादेव भी कहते हैं। उन्हें सदाशिव नहीं कहते हैं। उन्हीं शंकर ने सर्वप्रथम दक्ष राजा की पुत्री दक्षायनी से विवाह किया था। इन दक्षायनी को ही सती कहा जाता है। माता पार्वती शंकर की दूसरी पत्नीं थीं, जो पूर्व जन्म में सती थीं। देवी पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। इन सती और पार्वती की कई बहनें थीं जिनकी भिन्न-भिन्न नाम से पूजा की जाती है। माता पार्वती को ही पहाड़ावाली और शेरावाली भी कहा जाता है। हालांकि अम्बा माता का स्वरूप भी इन्हीं की तरह है। यह भी कहा जाता है कि भूमि की देवी उमा भी शंकर की पत्नी थीं। रक्तबीज का वध करने वाली माता काली भी उनकी पत्नी थीं। कहते हैं कि काली देवी अम्बा की पुत्री थीं।
 
 
नवरात्रि में में इन नामों से नवदुर्गा की पूजा करते हैं?
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। उक्त माताओं के संबंध में अलग-अलग मत मिलते हैं। कुछ इन्हें माता अम्बिका का ही आध्यात्मिक रूप मानते हैं, तो कुछ यह सभी माता पार्वती का रूप ही मानते हैं।
 
 
पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। चन्द्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चन्द्र के आकार का तिलक है। उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं इसीलिए कूष्‍मांडा कहलाती हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं। यज्ञ की अग्नि में भस्म होने के बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। इनका एक नाम तुलजा भवानी भी है।
 
 
मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं। माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं। जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
 
 
माता की सवारी
प्रत्येक देवी का वाहन अलग-अलग है। देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं, तो माता पार्वती शेर पर। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं व उन्हें सिंह पर सवार दिखाया गया है। कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी कूष्मांडा शेर पर सवार हैं। माता चन्द्रघंटा भी शेर पर सवार हैं जिनकी प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को पूजा होती है। शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती हैं। माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं।
 
 
दस महाविद्याएं कौन हैं?
दस महाविद्याओं में से कुछ देवी अम्बा हैं, तो कुछ सती या पार्वती हैं तो कुछ राजा दक्ष की अन्य पुत्री। हालांकि सभी को माता काली से जोड़कर देखा जाता है। 10 महाविद्याओं के नाम निम्नलिखित हैं- 1. काली, 2. तारा, 3. छिन्नमस्ता, 4. षोडशी, 5. भुवनेश्वरी, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10 कमला। कहीं-कहीं इनके नाम इस क्रम में मिलते हैं- 1. काली, 2. तारा, 3. त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।
 
 
1.काली : इसमें से काली माता को भगवान शंकर की पत्नीं कहा गया है। इन्होंने ही असुर रक्तबीज का वध किया था। इन्हें अम्बा माता की बेटी भी कहा जाता है।
 
2.तारा : दूसरी माता है तारा जो प्रजापति दक्ष की दूसरी कन्या थी। यह तारा माता शैलपुत्री की बहिन हैं। तारा देवी को हिन्दू, बौद्ध और जैन तीनों की पूजते हैं। यह तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा।
 
3.छिन्नमस्ता : यह देवी माता पार्वती का ही एक रूप है। देवी का मस्तक कटा हुए है इसीलिए उनको छिन्नमस्ता कहा गया है। उनके साथ उनकी सहचरणीं जया व विजया हैं। तीनों मिलकर उनके धड़ से निकली रक्त की तीन धाराओं का स्तवन करते हुए दर्शायी गई है। 
 
4.त्रिपुरसुंदरी : इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इसे ललिता, राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर शिव) की जननी होने से जगदम्बा ही त्रिपुरा हैं। उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
 
5.भुवनेश्वरी : चौदह भुवनों की स्वामिनी मां भुवनेश्वरी शक्ति सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण का दाईत्व इन्हीं भुवनेश्वरी देवी का हैं, परिणाम स्वरूप ये जगत माता तथा जगत धात्री के नाम से भी विख्यात हैं। प्रकृति से सम्बंधित होने के परिणाम स्वरूप, देवी की तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं। यही दुर्गम नमक दैत्य के अत्याचारों से लोगों को निजाद दिलाने वाली के कारण ये शाकम्भरी और दुर्गा नाम से भी प्रसिद्ध हुई। काली और भुवनेशी प्रकारांतर से अभेद है काली का लाल वर्ण स्वरूप ही भुवनेश्वरी हैं। देवी के मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है। तीनों लोकों का तारण करने वाली तथा वर देने की मुद्रा अंकुश पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली मां भुवनेश्वरी अपने तेज एवं तीन नेत्रों से युक्त हैं।
 
6.त्रिपुरभैरवी : नारद-पाञ्चरात्र के अनुसार यह माता काली का ही स्वरूप है। त्रिपुर का अर्थ तीनों लोक। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी त्रिपुर भैरवी, महिषासुर नामक दैत्य के वध के काल से सम्बंधित हैं। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं। माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है। ये देवी अपने अन्य नमो से भी प्रसिद्ध है तथा ये सभी सिद्ध योगिनिया हैं:-1.त्रिपुर भैरवी 2.कौलेश भैरवी, 3.रूद्र भैरवी, 4.चैतन्य भैरवी, 5.नित्य भैरवी, 6.भद्र भैरवी, 7.श्मशान भैरवी, 8.सकल सिद्धि भैरवी 9.संपत प्रदा भैरवी 10. कामेश्वरी भैरवी इत्यादि। देवी त्रिपुर भैरवी का घनिष्ठ संबंध 'काल भैरव' से है।  
 
7.धूमावती : सातवीं महाविद्या धूमावती को पार्वती का ही स्वरूप माना गया है। एक बार देवी पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर विराजमान थीं। उन्हें अकस्मात् बहुत भूख लगी और उन्होंने वृषभ-ध्वज पशुपति से कुछ खाने की इच्छा प्रकट की। शिव के द्वारा खाद्य पदार्थ प्रस्तुत करने में विलम्ब होने के कारण क्षुधा पीड़िता पार्वती ने क्रोध से भर कर भगवान शिव को ही निगल लिया। ऐसा करने के फलस्वरूप पार्वती के शरीर से धूम-राशि निस्सृत होने लगी जिस पर भगवान शिव ने अपनी माया द्वारा देवी पार्वती से कहा, धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती पड़ेगा।
 
एक अन्य कथा के अनुसार महाप्रलय के समय जब सब कुछ नष्ट हो जाता है, स्वयं महाकाल शिव भी अंतर्ध्यान हो जाते हैं, मां धूमावती अकेली खड़ी रहती हैं और काल तथा अंतरिक्ष से परे काल की शक्ति को जताती हैं। उस समय न तो धरती, न ही सूरज, चांद, सितारे रहते हैं। रहता है सिर्फ धुआं और राख- वही चरम ज्ञान है, निराकार- न अच्छा. न बुरा; न शुद्ध, न अशुद्ध; न शुभ, न अशुभ- धुएँ के रूप में अकेली माँ धूमावती. वे अकेली रह जाती हैं, सभी उनका साथ छोड़ जाते हैं. इसलिए अल्प जानकारी रखने वाले लोग उन्हें अशुभ घोषित करते हैं.
 
8.बगलामुखी : बगलामुखी, दो शब्दों के मेल से बना है, पहला 'बगला' तथा दूसरा 'मुखी'। बगला से अभिप्राय हैं 'विरूपण का कारण' और वक या वगुला पक्षी, जिस की क्षमता एक जगह पर अचल खड़े हो शिकार करना है, मुखी से तात्पर्य हैं मुख। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक, पारलौकिक जादुई शक्तिओ से भी हैं, जिसे इंद्रजाल कहा जाता हैं। देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण की है, देवी ने पिला वस्त्र तथा पीले फूलो की माला धारण की हुई है, देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नो से जड़ित हैं।
 
9. देवी मातंगी : दस महाविद्याओं में नौवीं देवी मातंगी हैं। हनुमानजी के गुरु मतंग मुनि थे जो मातंग समाज से संबंध रखते थे। देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षियों, जंगलों, वनों, शिकार इत्यादि से हैं तथा जंगल में वास करने वाले वनवासी, आदिवासियों, जनजातियों कि देवी पूजिता हैं। देवी मतंग मुनि के पुत्री के रूप से भी जानी जाती हैं। कालांतर में ये देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाने लगी। 
 
10. देवी कमला : श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला की उत्पत्ति कथा है। दस महाविद्याओं में अंतिम देवी कमला तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी कमला, जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु की पत्नी हैं। देवताओं तथा दानवों ने मिलकर, अधिक संपन्न होने हेतु समुद्र का मंथन किया, समुद्र मंथन से 18 रत्न प्राप्त हुए, जिनमें देवी लक्ष्मी भी थी, जिन्हें भगवान विष्णु को प्रदान किया गया तथा उन्होंने देवी का पानिग्रहण किया।
 
देवी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं। उल्लेखनीय है कि श्रीविष्णु ने भृगु की पुत्रीं लक्ष्मी से विवाह किया था।
 
दीवावली के दिन देवी काली और कमला की पूजा की जाती है। शैव लोग काली की और वैष्णव लोग कमला की पूजा करते हैं। कमला को ही महालक्ष्मी कहा गया है। प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।

चौंसठ योगिनियां : ये सभी आदिशक्ति मां काली का अवतार है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं।
 
 
प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:- 1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी। 
 
 
चौंसठ योगिनियों के नाम :- 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
 
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