इन रिश्तों को नहीं निभाया सच्चे मन से तो जीवन में होगा सिर्फ दुख

अनिरुद्ध जोशी
आधुनिक युग में भौतिक सुख रुपया सबसे महत्वपूर्ण हो गया है। पढ़े-लिखे या धन संपन्न परिवार में बिखराव ज्यादा देखने को मिलता है। धन और बुद्धि से घमंड और अहंकार का ही जन्म होता है। यह घमंड और अहंकार ही परिवार को तोड़ने में सहायक बनता है। हम अपने ही परिवार और रिश्तों के लोगों से प्रतियोगिता की भावना रखने लगते हैं। एक-दूसरे को धन और बुद्धि की ताकत दिखाकर नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं।
 
 
ऐसा तब होता है जबकि व्यक्ति को धर्म की जानकारी नहीं होती या उसमें सामाजिक और धार्मिक संस्कार नहीं होते हैं। वर्तमान युग में परिवार टूटकर एकल परिवार बदल गए हैं और अब तो इससे एक कदम आगे बड़कर कुछ एकल परिवार भी अब ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते हैं। यही कारण है कि समाज में बिखराव, द्वंद और दुख फैल गया है। सभी लोग अब अपने ही हितों का ध्यान रखने लगे हैं। स्वार्थ की प्रवृत्ति को अब सहजता से स्वीकार कर लिया गया है। खैर... अब जानते हैं कि वे कौन से रिश्ते हैं जिन्हें यदि व्यक्ति नहीं निभाता है तो उसमें और पशु में कोई फर्क नहीं रह जाता है। रिश्तों में भावना, अपनत्व, संवेदनशीलता, भरोसा, प्रेम और निष्कपटता होना जरूरी है।
 
 
दादा परिवार-
1.दादा-दादी- दादा-दादी और पोता-पोती के बीच के संबंध को शब्दों में वर्णित नहीं किए जा सकते हैं। दादा-दादी का अपमान करना या उनकी उपेक्षा करना अर्थात ब्रह्मा सहित सभी पूर्वजों का अपमान माना जाता है। इनसे दूर रहने से भी कुल और पितृ का दोष लगता है। पोता-पोती को उनके दादा-दादी में एक अच्‍छा दोस्ती भी मिल जाता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने दादा दादी से अपने संबंध गहरे बनाएं।
 
 
2.पोता-पोती- दादा या दादी को अपने पोता या पोती में अपना बचपन ही नजर नहीं आता बल्कि उन्हें वह सारी गलतियां सुधारने का मौका भी मिलता है जबकि उन्होंने अपने बेटे या बेटी के साथ उनके बचपन में की थी। यदि कोई दादा या दादी अपने पोता-पोती को प्यार नहीं करते या उनकी उपेक्षा करते हैं तो यह उनकी पीढ़ी आगे जाकर अच्छे से फल-फूल नहीं पाएगी। पोता पोती को यह दि दादा दादी का प्यार या अटेंशन नहीं मिलेगा तो वे भी अपने माता पिता और पोता पोती पर ध्यान नहीं देंगे। इस तरह आगे चलकर परिवार बिखरकर वंश नष्ट होने के रास्ते पर चला जाएगा।
 
 
3.माता-पिता- यदि आप अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं और उनका सम्मान नहीं करते हैं तो निश्‍चित ही आपको इसका रिटर्न मिलेगा। आपका बेटा या बेटी आपके साथ कैसे व्यवहार करेंगे यह तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन बड़ी बात तो यह है कि आपने अपने माता पिता की भावनाओं, इच्छाओं और सपनों को कभी समझा ही नहीं। आपने उनके उस संघर्ष और दुख को देखा ही नहीं जो उन्होंने आपने होश संभालने तक झेला था। तब आप कैसे अपने बेटे और बेटी को समझ पाएंगे? फिर आपको उनसे कोई अपेक्षा भी नहीं रखना चाहिए।
 
4.ताऊ-ताई, 
5.चाचा-चाची-
6.बहनोई-बहन-
7.भाई-भाभी-
8.बुआ-फुफा-
 
नाना परिवार-
1.नाना-नानी- नाना-नानी अपने नाती-नातिन से सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। वे उन्हें अनेकों उपहार देते हैं और चाहता रखते हैं कि वे हमारे घर में छुट्टियां बिताने आएं। जब वे अपने नाती-नातिन को देखते हैं तो उन्हें अपनी बेटी की खुशियां नजर आती है। यह उनके लिए सबसे संतोषजनक पल रहता है। माता के पिता और माता को कष्ट देना, अपमान करना या उनकी उपेक्षा करना माता को कष्ट देने के समान ही होता है। इससे वे उतने दुखी नहीं होंगे जितनी की आपकी माता दुखी होगी।
 
 
2.नाती-नातिन- यदि कोई नाना-नानी अपने नाती-नातिन की उपेक्षा करते हैं तो यह उनकी बेटी को कष्ट देने के समान है।
 
 
3.मामा-मामी-
4.मामा-भांजा-
5.मौसी-मौसाजी-
 
 
पत्नी परिवार-
1.पत्नी-
2.सास-ससुर-
3.बेटा-बेटी-
4.बेटी-दामाद-
5.बेटा-बहु-
6.साला-साली-
 
 
हालांकि रामचरितमानस में एक चौपाई है जिसमें 10 तरह के रिश्तों को निभाने की बात कही गई है। सुन्दरकाण्ड में लिखी चौपाई में इंसानी जीवन में रिश्तों के सही प्रबंधन के ऐसे सूत्र बताए गए हैं, जिनको समझ और अपनाकर भौतिक सुखों के साथ आध्यात्मिक सुख भी पाए जा सकते हैं। जानते हैं वह चौपाई और उसका अर्थ, जो श्रीराम और शरणागत विभीषण से संवाद के दौरान आई है-
 
 
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बॉंध बरि डोरी।।
 
 
अर्थात- उनको वह प्रिय है जो माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार के ममताभरे धागों को एक सूत्र में बांधकर उनके साथ मन को मेरे चरणों में बांध देता है।
 
 
संकेत यही है कि हर इंसान के जीवन में मानस में बाताए गए उक्त 10 रिश्तें अहम होते हैं। जिनके बिना जीवन संपूर्ण नहीं माना जाता। इनसे सही तालमेल और संतुलन होने पर ही हर इंसान चिंता, डर और दु:खों से दूर होता है। किंतु इनके साथ थोड़ा भी असंतुलन अशांति लाता है। गृहस्थ जीवन में सही संतुलन बनाने पर आध्यात्मिक जीवन और देव कृपा भी संभव है। संतुलन बनाने हेतु राम के चरणों में मन लगाना जरूरी है।
 

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