बच्चों के कान कब और क्यों छिदवाना चाहिए, जानिए कर्ण-वेध संस्कार

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों में से एक कर्ण वेध संस्कार का उल्लेख मिलता है। इसे उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है। आओ जानते हैं कर्ण वेध संस्कार के बारे में संक्षिप्त जानकारी।

 
क्यों करते हैं कर्ण वेध संस्कार- 
कान छिदवाने के कई कारण होते हैं। इस संस्कार के अनुसार दो लाभ होते हैं पहले यह कि राहु और केतु संबं‍धी प्रभाव समाप्त होता है और दूसरा यह कि संतान स्वस्थ रहे, उन्हें रोग और व्याधि परेशान न करें।
 
सावधानी- ध्यान रहे कि कान विधिपूर्वक ही छिदवाएं अन्यथा आपको नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि आजकल लोग एक ही कान में चार-चार छेद करने लगे हैं जो कि अनुचित है। कुछ लोग एक ही कान छिदवाते हैं तो कुछ लोग दोनों कान छिदवाते हैं। हालांकि नियम दोनों ही कान छिदवाने का है।
 
कब करना चाहिए यह संस्कार-
इस संस्कार के बारे में कहा जाता है कि यह बालक के जन्म से दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें आठवें महीने में किया जा सकता है। बालक शिशु का पहले दाहिना कान फिर बायां कान और कन्या का पहले बायां कान फिर दायां कान छेदना चाहिए।
 
किस मुहूर्त में करना चाहिए यह संस्कार-
नक्षत्र- इस संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु अति शुभ माने जाते हैं। इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में आप यह संस्कार कर सकते हैं।
 
 
वार- कर्ण वेधन के दिन सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार होना चाहिए।
 
तिथि- कर्ण वेध संस्कार के लिए चतुर्थ, नवम एवं चतुर्दशी तिथियों एवं अमावस्या तिथि को छोड़कर सभी तिथि शुभ मानी गयी है।
 
लग्न- वैसे तो सभी लग्न जिसके केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में शुभ ग्रह हों तथा (तृतीय, षष्टम, एकादश) भाव में पापी ग्रह हों तो वह लग्न उत्तम कहा जाता है। यहां वृष, तुला, धनु व मीन को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि बृहस्पति लग्न में हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति कही जाती है।
 
 
निषेध- खर मास, क्षय तिथि, हरिशयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्म मास (चन्द्र मास) सम वर्ष (द्वितीय, चतुर्थ) इत्यादि को कर्ण-वेध संस्कार में त्याज्य किया जाना चाहिए। चन्द्र शुद्धि एवं तारा शुद्धि अवश्य की जानी चाहिए।
 
कान छिदवाने के बाद क्या करें-
कान छिदवाने के बाद उसमें चांदी या सोनी की तार पहनें। कान पके नहीं इसके लिए हल्दी को नारियल के तेल में मिलकर तब तक लगाएं तब तक की छेद अच्छे से फ्री ना हो जाए।
 
 
कान छिदवाने के फायदे-
- कहते हैं कि कान छिदवाने से सुनने की क्षमता बढ़ जाती है।
- कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
- कान छिदने से तनाव भी कम होता है।
- कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
- इससे बुरी शक्तियों का प्रभाव दूर होता है और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
- इससे मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे दिमाग तेज चलता है।
- पुरुषों के द्वारा कान छिदवाने से उनमें होने वाली हर्निया की बीमारी खत्म हो जाती है।
- यह भी कहा जाता है कि पुरुषों के अंडकोष और वीर्य के संरक्षण में भी कर्णभेद का लाभ मिलता है।
- मान्यता अनुसार कान छिदवाने से व्यक्ति के रूप में निखार आता है।
- कान छिदवाने से मेधा शक्ति बेहतर होती है तभी तो पुराने समय में गुरुकुल जाने से पहले कान छिदवाने की परंपरा थी।
- लाल किताब अनुसार कान छिदवाने से राहु और केतु के बुरे प्रभाव का असर खत्म होता है। जीवन में आने वाले आकस्मिक संकटों का कारण राहु और केतु ही होते हैं अत: कान छिदवाना जरूरी है।
 

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