भस्म, भस्मी, भभूत, भभूति या विभूति, जनिए 10 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 23 जनवरी 2020 (11:03 IST)
हिन्दू धर्म में भभूति या भस्म, विभूति आदि को राख भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में इसका प्रचलन कब से है यह कहना कठिन है लेकिन कहा जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म रमाते थे। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ के समय में भभूति का प्रचलन व्यापक स्तर पर प्रारंभ हुआ। शिरडी के साईं बाबा जिस भभूति को लोगों को देते थे उसे उदी भी कहा जाता है।
 
 
1. भस्म तिलक : तिलक कई प्रकार के पदार्थों से बनाकर लगाया जाता है जैसे- मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, केसर, सिंदूर, कुंकुम, गोपी आदि। इसमें से भस्म तिलक का अधिकतर प्रयोग दक्षिण भारत में होता है जबकि नागा साधु, नाथपंथी साधु भी भभूति का तिलक लगाते हैं। नागा साधु मस्तक पर आड़ा भभूतलगा तीनधारी तिलक लगा कर धुनी रमाकर रहते हैं।
 
2. भस्म के प्रकार : श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती है। विरजा हवन की भस्म सर्वोत्कृष्ट मानी है। 
 
3. भस्म का आध्यात्मिक रहस्य : किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता है। किसे भी जलाओ तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा। मिट्टी को भी जलाओ तो वह भस्म रूप में होगी। सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है। भस्म इस बात का संकेत भी है कि सृष्टि नश्वर है।
 
4. भस्मी स्नान : कहते हैं कि भस्म का स्नान करने के कई चमत्कारिक फायदे हैं। नवनाथ पंथ में कहते हैं कि उलटन्त बिभूत पलटन्त काया। अर्थात यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। चढ़ी भभूत घट हुआ निर्मल। अर्थात भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है।
 
5. साधुओं की भस्म : नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या‍‍ फिर यह राख धुनी की होती है। कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। कहते हैं कि यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है। रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं।  
 
6. भस्म ही है वस्त्र : हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।
 
7. रोगनाशक भस्म : कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलां जगह मंदिर आश्रम आदि की भभूत खाकर लोग चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। दरअसल, आयुर्वेद में कई तरह की भस्म का उल्लेख किया गया है। जैसे जड़ी-बूटियों या स्वर्ण, रजत, शंख, हीरक, मुक्ताशुक्ति गोदंती, अभ्रक आदि कई तरह की भस्म होती है। उक्त भस्म को खाने से लाभ मिलता है। यज्ञ या हवन की सामग्री से बनी भभूत को भी कई तरह के रोग का नाशक माना गया है, लेकिन इस तरह की भभूत खाने से पहले यह जानना जरूरी है कि वह विश्वसनीय स्थान की है या नहीं।
 
8. भभूत का साबर मंत्र : ॐ गुरु जी। भभूत माता भभूत पिता, भभूत पीर उस्ताद। भभूत में लिपटे शंकर शम्भू, काशी के कोतवाल। नवनाथों ने भभूत रमाई। प्रकटी उसमें काली माई। रिद्धि ल्याई सिद्धि ल्याई। काल कंटक को मार भगाई। अस्तक मस्तक लिंगा कार, मस्तक भभूत जय जय कार। भभूति में त्रिदेव विराजे। बजरंगी नाचे गोरख गाजे। खोले भाग्य के बन्द दरवाजे। सिद्धो आदेश धुना लगाया। उपजी भभूती मन हर्षाया। भभूती भस्म का जपो जाप। उतरे जन्म जन्म के पाप। आदेश गुरुजी नाथजी को आदेश भटनेर काली को आदेश।
 
9. माथे पर विभूति लगाने के लाभ : माथे पर विभूति लगाने से आपके भीतर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और आज्ञाचक्र सक्रिय होता है। इससे मानसिक रूप से शांति मिलती है और विचार शुद्ध होते हैं। गले में लगाने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। छाती के मध्य में लगाने से अनाहत चक्र जागृत होता है। उपरोक्त बिंदुओं पर भभूति लगाने से विवेक जागृत होता है।
 
10. आम भस्म : माथे पर लगाई जाने वाली भस्म मूलत: चावल की भूसी से तैयार होती है जिसे दक्षिण भारत के लोग उपयोग करते हैं। दूसरी गोबर और कुछ अन्य मिश्रण से तैयार भस्म को उत्तर भारत के लोग उपयोग में लाते हैं। तीसरी गुग्गल, लकड़ी आदि की भस्म भी होती है। इसके अलावा श्‍मशान भूमि की भस्म का उपयोग शैवपंथी लोग करते हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

धनतेरस पर इस समय करते हैं यम दीपम, पाप और नरक से मिलती है मुक्ति, नहीं रहता अकाल मृत्यु का भय

Dhanteras 2024 Date: धनतेरस पर करें नरक से बचने के अचूक उपाय

Dhanteras ki katha: धनतेरस की संपूर्ण पौराणिक कथा

Dhanteras 2024 date and time: धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि और यमदेव की पूजा का शुभ मुहूर्त

Dhanteras kab hai 2024: वर्ष 2024 में कब है धनतेरस का त्योहार, 29 या 30 अक्टूबर को?

सभी देखें

धर्म संसार

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि मंत्रों सहित

30 अक्टूबर 2024 : आपका जन्मदिन

30 अक्टूबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Govardhan katha: गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव की पौराणिक कथा

Bhai dooj katha: भाई दूज की पौराणिक कथा

अगला लेख
More