सोलह संस्कारों में उपनयन संस्कार को दसवां संस्कार कहा गया है। उपनयन संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। उपनयन संस्कार में जनेऊ पहनाया जाता है। मुख्य रूप से इसे जनेऊ पहनाने का संस्कार कहा जाता है। कहा जाता है शादी होने से पहले जनेऊ धारण करना बहुत जरूरी होता है।
अक्षय तृतीया पर उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार करना चाहिए या नहीं,यह सवाल अक्सर पूछा जाता है। बहुत सी जगह पर इस संबंध में आधी-अधूरी जानकरी प्रचारित कर अक्षय तृतीया पर इस संस्कार को करने का निषेध ही कह दिया गया है जो कि उचित नहीं है।
कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन उपनयन संस्कार नहीं करना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। इस दिन आपको पहली बार जनेऊ बिल्कुल नहीं धारण करना चाहिए। कुछ लोग इस संबंध में गरुड़ पुराण का भी हवाला देते हैं, लेकिन यह जानकारी अधूरी है।
दरअसल, अक्षय तृतीया पर उपनयन संस्कार किया जाता है, लेकिन उस वक्त यह देखा जाता है कि कृतिका नक्षत्र तो नहीं है। यदि कृतिका नक्षत्र है तो यह संस्कार किसी योग्य पंडित या ज्योतिष से पूछकर ही करना चाहिए। कुछ विद्वानों के अनुसार, तीनों उत्तरा, रेवती और अनुराधा में भी यज्ञोपवीत करना शुभ होता है।
जिस भी बटुक का उपनयन संस्कार किया जा रहा है उसका चंद्र और गुरु बल देखा जाता है। उपनयन संस्कार कभी भी करें लेकिन योग और मुहूर्त देखा जाना जरूरी है। सावित्र मुहूर्त में सभी प्रकार के यज्ञ, विवाह, चूडाकर्म, उपनयन, देवकार्य आदि संस्कार किए जाते हैं। लग्न से नौवें, पांचवें, पहले, चौथे, सातवें, दसवें स्थान में शुभग्रह के रहने पर भी उपनयन संस्कार करना शुभ होता है।
इस वर्ष 2019 को अक्षया तृतीया पर कृतिका नक्षत्र नहीं है तो इसलिए उपनयन संस्कार किए जा सकते हैं। 7 मई 2019 को मंगलवार के दिन रोहणी नक्षत्र है। इसी तीन तृतीया तिथि है।