प्राचीनकाल में संध्योपासना या संध्यावंदन की जाती थी। आगे चलकर यह पूजा, आरती और तरह तरह की पूजा विधियों में बदल गई। अब मोटे तौर पर कह सकते हैं कि संध्योपासना के 5 प्रकार हैं- 1. प्रार्थना, 2. ध्यान-साधना, 3. भजन-कीर्तन 4. यज्ञ और 5. पूजा-आरती। इसमें से जानते हैं आरती के प्रकार।
आरती के प्रकार : पूजा के बाद आरती की जाती है। आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है।
1. मंगल आरती : Mangal Aarti : 6am
2. पूजा आरती : Puja Aarti 6:30am
3. श्रृंगार आरती : Shrigar Aarti 7:30 am
4. भोग आरती : Bhog Aarti 10:30 am
5. धूप आरती : Dhoop Aarti 12:00
6. संध्या आरती : Sandhya Aarti 7:15pm
7. शयन आरती : Shayan Aarti : 8:30
नोट : हर मंदिर में उपरोक्त आरती का समय भिन्न भिन्न होता है। यह अंतर परंपरा से या स्थानीय समयानुसार होता है। हालांकि इसमें समय से ज्यादा प्रहर का ध्यान रखा जाता है। कई जगहों पर धूप आरती और पूजा आरती नहीं होती। श्रृंगार के समय ही पूजा होती है। भोग आरती के समय ही धूप आरती हो जाती है।
मथुरा वृंदावन के मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की अष्ट प्रहर की आरती करते हैं। साधारणतया 5 बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है जिसे 'पंचप्रदीप' कहा जाता है। इसके अलावा 1, 7 अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जलाकर भी आरती करने का विधान है। सभी का अलग अलग महत्व है। शंख-ध्वनि और घंटे-घड़ियाल पूजा के प्रधान अंग हैं। किसी देवता की पूजा शंख और घड़ियाल बजाए बिना नहीं होती। आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है।