Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

mahavatar babaji रहस्यमयी महावतार बाबा, हजारों वर्षों से जिंदा हैं...

हमें फॉलो करें mahavatar babaji रहस्यमयी महावतार बाबा, हजारों वर्षों से जिंदा हैं...

अनिरुद्ध जोशी

महावतार बाबा कौन हैं? कहां रहते हैं और क्या सचमुच ही वे 5,000 वर्षों से जिंदा हैं? सचमुच महावतार बाबा का रहस्य बरकरार है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिशंकराचार्य को क्रिया योग की शिक्षा दी थी और बाद में उन्होंने संत कबीर को भी दीक्षा दी थी। इसके बाद प्रसिद्ध संत लाहिड़ी महाशय को उनका शिष्य बताया जाता है।
 
दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सुपरस्टार रजनीकांत भी महावतार बाबा के भक्त हैं। उन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनी है। रजनीकांत द्वारा लिखित 2002 की तमिल फिल्म 'बाबा' बाबाजी पर आधारित थी।
 
लाहिड़ी महाशय के शिष्य स्वामी युत्तेश्वर गिरि थे और उनके शिष्य परमहंस योगानंद ने अपनी किताब 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' (योगी की आत्मकथा, 1946) में महावतार बाबा का जिक्र किया है। कहते हैं कि 1861 और 1935 के बीच महावतार बाबा ने कई संतों से भेंट की थी। लाहिड़ी महाशय और उनके शिष्य इस बारे में कहते आए हैं।
 
सदा जवान नजर आते हैं बाबा
आधुनिक काल में सबसे पहले लाहड़ी महाशय ने महावतार बाबा से मुलाकात की फिर उनके शिष्य युत्तेश्वर गिरि ने 1894 में इलाहाबाद के कुंभ मेले में उनसे मुलाकात की थी। युत्तेश्वर गिरि की किताब 'द होली साइंस' में भी उनका वर्णन मिलता है। उनको 1861 से 1935 के दौरान कई लोगों के द्वारा देखे जाने के सबूत हैं। जिन लोगों ने भी उन्हें देखा है, हमेशा उन्होंने उनकी उम्र 25 से 30 साल की ही बताई है।
 
 
योगानंद ने जब उनसे मिले थे तो वे सिर्फ 19 साल के नजर आ रहे थे। योगानंद ने किसी चित्रकार की मदद से उन्होंने महावतार बाबा का चित्र भी बनवाया था, वही चित्र सभी जगह प्रचलित है। परमहंस योगानंद को बाबा ने 25 जुलाई 1920 में दर्शन दिए थे इसीलिए इस तिथि को प्रतिवर्ष बाबाजी की स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
 
वर्तमान में पूना के गुरुनाथ भी महावतार बाबाजी से मिल चुके हैं। उन्होंने बाबाजी पर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम 'द लाइटिंग स्टैंडिंग स्टील' है। दक्षिण भारत के श्री एम. भी महावतार बाबाजी से कई बार मिल चुके हैं। सन् 1954 में बद्रीनाथ स्‍थित अपने आश्रम में 6 महीने की अवधि में बाबाजी ने अपने एक महान भक्त एसएए रमैय्या को संपूर्ण 144 क्रियाओं की दीक्षा दी थी।
 
कृष्ण के अवतार थे बाबा?
लाहिरी महाशय ने अपनी डायरी में लिखा कि महावतार बाबाजी भगवान कृष्ण थे। योगानंद भी अक्सर जोर से 'बाबाजी कृष्ण' कहकर प्रार्थना किया करते थे। परमहंस योगानंद के दो शिष्यों ने लिखा कि उन्होंने भी कहा कि महावतार बाबाजी पूर्व जीवनकाल में कृष्ण थे। 
webdunia
महा अवतार बाबा की गुफा
महावतार बाबा की एक गुफा भी है। महावतार बाबा की गुफा आज भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कुकुछीना से 13 किलोमीटर दूर दूनागिरि में स्थित है। कुकुछीना के निकट पांडुखोली में स्थित महावतार बाबा की पवित्र गुफा तमाम संतों और महापुरुषों की ध्यान स्थली रही है। फिल्म अभिनेता रजनीकांत और जूही चावला भी बाबा की गुफा के दर्शन को आते रहे हैं। ये माना जाता है कि महावतार बाबाजी शिवालिक की इन पहाड़ियों में रहते हैं और बहुत से योगियों को उन्होंने यहीं दर्शन भी दिए
 
बाबा से जुड़ी दो घटनाएं
परमहंस योगानंद ने बाबा से जुड़ीं दो घटनाओं का अपनी किताब में जिक्र किया है। योगानंद ने लिखा है कि बाबाजी एक बार रात में अपने शिष्यों के साथ धूने के पास बैठे थे। धूने में से एक जलती हुई लकड़ी को उठाकर बाबाजी ने एक शिष्य के कंधे पर दे मारी जिसका शिष्यों ने विरोध किया। तब बाबा ने बताया कि ऐसा करके मैंने आज होने वाली तुम्हारी मृत्यु को टाल दिया है।
 
इसी तरह की दूसरी घटना का जिक्र करते हुए योगानंद लिखते हैं कि एक बार बाबाजी के पास एक व्यक्ति आया और वह बाबाजी से दीक्षा लेने की जिद करने लगा। बाबाजी ने जब मना कर दिया तो उसने पहाड़ से कूद जाने की धमकी थी। बाबा ने कहा कि जाओ कूद जाओ और वह व्यक्ति तुरंत ही कूद गया। यह दृश्य देख वहां मौजूद लोग सकते में आ गए। तब बाबाजी ने कहा कि पहाड़ी से नीचे जाओ और उसका शव लेकर आओ। शिष्य गए और शव लेकर आए। शव क्षत-विक्षत हो चुका था। बाबाजी ने शव के ऊपर जैसे ही हाथ रखा, वह धीरे धीरे करके ठीक होने लगा और जिंदा हो गया। तब बाबा ने कहा कि यह तुम्हारी अंतिम परीक्षा थी। आज से तुम भी मेरी टोली में शामिल हुए।
 
 
क्या सच में वे हजारों वर्षों से जीवित है?
एम. गोविंदन के अनुसार बाबाजी के माता-पिता ने उनका नाम नागराज रखा था। वे 30 नवंबर 203 ईस्वी को श्रीलंका में जन्मे थे। यह जानकारी योगी एएसएए रामैय्या और वीटी नीलकंठन को 1953 में बाबाजी नागराज ने दी थी। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म तमिलनाडु के परान्गीपेट्टै में हुआ था और उनके गुरु का नाम बोगर था।
 
कौन है लाहड़ी महाशय?
परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युत्तेश्वर गिरि लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। योग में पारंगत पिता गौरमोहन लाहिड़ी जमींदार थे। मां मुक्तेश्वरी शिवभक्त थीं। काशी में उनकी शिक्षा हुई। विवाह के बाद नौकरी की। 23 साल की उम्र में इन्होंने सेना की इंजीनियरिंग शाखा के पब्लिक वर्क्स विभाग में गाजीपुर में क्लर्क की नौकरी कर ली।
 
 
23 नबंबर 1868 को इनका तबादला हेड क्लर्क के पद पर रानीखेत (अल्मोड़ा) के लिए हो गया। प्राकृतिक छटा से भरपूर पर्वतीय क्षेत्र उनके लिए वरदान साबित हुआ। एक दिन श्यामाचरण निर्जन पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे थे तभी अचानक किसी ने उनका नाम लेकर पुकारा। श्यामाचरण ने देखा कि एक संन्यासी पहाड़ी पर खड़े थे। वे नीचे की ओर आए और कहा- डरो नहीं, मैंने ही तुम्हारे अधिकारी के मन में गुप्त रूप से तुम्हें रानीखेत तबादले का विचार डाला था। उसी रात श्यामाचरण को द्रोणागिरि की पहाड़ी पर स्थित एक गुफा में बुलाकर दीक्षा दी। दीक्षा देने वाला कोई और नहीं, कई जन्मों से श्यामाचरण के गुरु महावतार बाबाजी थे।
 
 
श्यामाचरण लाहिड़ी ने 1864 में काशी के गरूड़ेश्वर में मकान खरीद लिया फिर यही स्थान क्रिया योगियों की तीर्थस्थली बन गई। योगानंद को पश्‍चिम में योग के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने ही चुना। कहते हैं कि शिर्डी सांईं बाबा के गुरु भी लाहिड़ी बाबा थे। लाहिड़ी बाबा से संबंधित पुस्तक 'पुराण पुरुष योगीराज श्यामाचरण लाहिड़ी' में इसका उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक को लाहिड़ीजी के सुपौत्र सत्यचरण लाहिड़ी ने अपने दादाजी की हस्तलिखित डायरियों के आधार पर डॉ. अशोक कुमार चट्टोपाध्याय से बांग्ला भाषा में लिखवाया था। बांग्ला से मूल अनुवाद छविनाथ मिश्र ने किया था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

होली और होलिका दहन की कथा, इतिहास और मुहूर्त