भाईदूज के दिन श्री चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। इस दिन पर कलम-दवात की करते हैं। दीपावली के पांच दिनी उत्सव में यम के निमित्त दीपदान किया जाता है परंतु इन पांच दिनों में सबसे ज्यादा महत्व भगवान चित्रगुप्त की पूजा का ही है और वह भी खासकर भाईदूज के दिन। आओ जानते हैं उनके संबंध में वह रहस्य जो आप शायद नहीं जानते होंगे।
कालांतर में चित्रगुप्त की जगह यमराज को ज्यादा महत्व दिया जाने लगे जिसके चलते यह गलत धारण विकसित हो गई की चित्रगुप्त भगवान यमराज के मुंशी हैं या लेखा-जोखा लिखने वाले हैं परंतु पुराणों को पढ़ने के बाद यह समझ में आता हैं कि यह बात सही नहीं है।
पुराणों अनुसार भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति ब्रह्माजी की काया से हुई है। पुराणों के अनुसार उन्होंने उज्जैन की क्षिप्रा नदी के तट पर पंचकोश क्षेत्र में कठोर तप किया। तप के बाद उनके पिता ब्रह्मा ने उनका विवाह वैवस्वत (कश्यप ऋषि के पौत्र) की 4 कन्याओं से और नागों (नागर ब्राह्मण) की 8 कन्याओं से कर दिया। उक्त बारह कन्याओं से उनके 12 पुत्र उत्पन्न हुए। तत्पश्चायत ब्रह्माजी ने उन्हें सभी प्राणियों का भाग्य लिखने का जिम्मा सौंपा और ब्रह्माजी की आज्ञा से यमलोक में विराजमान होकर दण्डदाता कहलाने लगे।
ब्रह्मा के 18 मानस संतानों में से एक चित्रगुप्त को महाकाल भी कहा गया है। सनातनी श्राद्ध में पितरों की मुक्ति हेतु इनका पूजन किया जाता है और गुरूढ़ पुराण इन्हीं को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है। भगवान चित्रगुप्त यमराज के मुंशी या उनके आदेश पर लेखा-जोखा लिखने वाले नहीं है। यमराज की उत्पत्ति या जन्म तो बहुत बाद में हुआ है। ब्रह्मा के मन से मरीचि, मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य, सूर्य से वैवस्वत मनु, यम और यमुना का जन्म हुआ। यम को ही यमराज कहा गया।
यमराज तो ब्रह्मा के दशांश हैं जबकि चित्रगुप्त तो ब्रह्मा के पुत्र ही है और अपनी कठिन तपस्या से वह ब्रह्मा के समान ही हैं। वे यमराज से 10 गुना अधिक शक्ति के हैं। भगवान चित्रगुप्त तो यमराज के स्वामी हैं। भगवान चित्रगुप्त ने ही अनुशासन और दण्डविधान को बनाया है। उनके बनाए दण्ड विधान का पालन ही उनकी आज्ञा से यमराज और उनके यमदूत कराते हैं। चित्रगुप्त को सभी प्राणियों के 'न्याय ब्रह्म एवं धर्माधिकारी' हैं। भगवान चित्रगुप्त ही लोगों को उनके पाप का दंड देते या पुण्य का फल देते हैं।
अन्य मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चित्रगुप्त के अम्बष्ट, माथुर तथा गौड़ आदि नाम से कुल 12 पुत्र माने गए हैं। कायस्थों को मूलत: 12 उपवर्गों में विभाजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्री चित्रगुप्त की पत्नियों देवी शोभावती और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है। भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय)।
श्री चित्रगुप्तजी के 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंशी मानी जाती है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था। जय चित्रगुप्त भगवान की जय।