बहुत कम लोग जानते हैं कि क्षेत्रपाल कौन होते हैं। जब वास्तु पूजा की जाती है तो उसके अंतर्गत क्षेत्रपाल की पूजा भी होती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी आपको क्षेत्रपाल के मंदिर मिल जाएंगे। खासकर राजस्थान और उत्तराखंड में क्षेत्रपाल के कई मंदिर मिलेंगे। आओ जानते हैं कि क्षेत्रपाल कौन है।
क्षेत्रपाल क्षेत्र विशेष के एक देवता होते हैं जिनके अधिन उक्त क्षेत्र की आत्माएं रहती हैं। भरत के अधिकतर गांवों में भैरवनाथ, खेड़ापति (हनुमानजी), सतीमाई, कालीमाई, सीतलामाई और क्षेत्रपाल आदि के मंदिर होते हैं। यह सभी ग्राम देवता होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य माने गए हैं।
क्षेत्रपाल भी भगवान भैरवनाथ की तरह दिखाई देते हैं संभवत: इसीलिए बहुत से लोग क्षेत्रपाल को कालभैरव का एक रूप मानते हैं। लोक जीवन में भगवान कालभैरव को क्षेत्रपाल बाबा, खेतल, खंडोवा, भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से जाना जाता है। अनेक समाजों के ये कुल देवता हैं।
क्षेत्रपाल को खेतपाल भी कहा जाता है। खेतपाल, जो कि खेत का स्वामी है। दक्षिण भारत में एक देवता है जो मूल रूप से लोगों के खेत की रक्षा करता है। यह खेतों का तथा ग्राम सरहदों का छोटा देवता है। मान्यता अनुसार यह बहुत ही दयालु देवता है। जब अनाज बोया जाता है या नवान्न उत्पन्न होता है, तो उससे इसकी पूजा होती है, ताकि यह बोते समय ओले या जंगली जन्तुओं से उनका बचाव करे और भंडार में जब अन्न रखा जाए तो कीड़े और चूहों से उसकी रक्षा करें।
इसके अलावा यह यह न्याय करने वाला देवता भी है। यह गांव की भलाई चाहता है इसीलिए यह अच्छे को पुरस्कार तथा धूर्त को दंड देता है। इसे रोट व भेंट चढाई जाती है। कुछ जगहों पर क्षेत्रपाल को पशु बलि भी दी जाती है। क्षेत्रपाल के लिए गांवों में या वास्तु पूजा के समय विशेष पूजा होती है। कहते हैं कि आप जिस भी क्षेत्र में रहने जा रहे हैं उस क्षेत्र का एक अलग ही क्षेत्रपाल होता है अत: वहां रहने से पहले उसकी पूजा करके उसकी अनुमति से रहा जाता है ताकि किसी भी प्रकार का कोई संकट ना हो।