भारतीय वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में यवन और मलेच्छ या म्लेच्छ शब्द बहुत पढ़ने में आता है। आखिर ये यवन कौन थे? कहते हैं कि आर्यावर्त के राजा ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु। उक्त पांचों को पंचनंद कहा जाता है। इन्हीं पांचों के कुल का संपूर्ण धरती पर विस्तार हुआ। आज जो संपूर्ण धरती पर हम मानव देखते हैं उनमें से अधिकतर इन्हीं पांचों के कुल से संबंध रखते हैं।
पुरु से पौरव हुए। पुरु के कुल में ही कुरु हुए। कुरु से कौरव हुए। यदु से यादव हुए। यदु कुल में ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। तुर्वस से तुर्वसु या भोज हुए जिन्हें यवन भी कहा गया। महाभारत के युद्ध में इनके वंशज कौरवों को साथ थे। अनु से आनव हुए। सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे। ये कबीले परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसे हुए थे। द्रुह्मु द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए। कहते हैं कि तुर्वस और द्रुह्म से ही यवन और मलेच्छों का वंश चला। यह दोनों ही एक ही कुल के होने के नाते एक ही माने गए।
कालयवन : यह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था और अरब के पास यवन देश में रहता था। पुराणों में इसे म्लेच्छों का प्रमुख कहा गया है। कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। गर्ग गोत्र के ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। श्री कृष्ण ने कालयवन को मारने के लिए एक मुचुकंद का सहारा लिया था।
गर्ग ऋषि : गर्ग ऋषि दो हुए हैं। यहां दूसरे ऋषि की बात है। एक गर्ग ऋषि महाभारत काल में भी हुए थे, जो यदुओं के आचार्य थे जिन्होंने 'गर्ग संहिता' लिखी। कहते हैं कि कोई एक ऋषि यवनी थे। बाद में ये मथुरा से जाकर उड़िसा में बस गए थे। गर्ग ऋषि को पुराणों में कहीं कहीं यवनाचार्य लिखा गया है। गर्ग ऋषि और अरब से आए रामानुज संस्था के एक अरबी को यवनाचार्य कहते थे।
*बैक्ट्रिया के यवन राज्य का अंत शक जाति के आक्रमण द्वारा हुआ था। संपूर्ण भारत पर शकों का कभी शासन नहीं रहा। भारत के जिस प्रदेश को शकों ने पहले-पहल अपने अधीन किया, वे यवनों के छोटे-छोटे राज्य थे। सिन्ध नदी के तट पर स्थित मीननगर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। भारत का यहां पहला शक राज्य था।
*यमन और यूनान का संबंध संभवत: यवनों से ही रहा हो। मनुस्मृति में जहां अन्य पतित क्षत्रियों के नाम गिनाते हैं वहां 'किराताः' यवनाः शकाः कहकर किरात भी गिनाए हैं। ये ही किरात नेपाल और भूटान में जाकर मंगोलियन जाति के मूल पुरुष भी बने हैं। बलोचिस्तान का एक स्थान है केलात यह पहले किरात था।
*यूनानी : यूनानियों ने भारत के पश्चिमी छोर के कुछ हिस्सों पर ही शासन किया था। भारत पर आक्रमण करने वाले सबसे पहले आक्रांता थे बैक्ट्रिया के ग्रीक राजा। इन्हें भारतीय साहित्य में यवन के नाम से जाना जाता है। यवन शासकों में सबसे शक्तिशाली सिकंदर (356 ईपू) था जिसे उसके देश में अलेक्जेंडर और भारत में अलक्षेन्द्र कहा जाता था। सिकंदर ने अफगानिस्तान एवं उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ भाग पर कब्जा कर लिया था। बाद में इस भाग पर उसके सेनापति सेल्यूकस ने शासन किया। हालांकि सेल्यूकस को ये भू-भाग चंद्रगुप्त मौर्य को समर्पित कर देने पड़े थे। बाद के एक शासक डेमेट्रियस प्रथम (ईपू 220-175) ने भारत पर आक्रमण किया।
उसके बाद युक्रेटीदस भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर उसने तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया। भारत में यवन साम्राज्य के दो कुल थे- पहला डेमेट्रियस और दूसरा युक्रेटीदस के वंशज। इसके बाद मीनेंडर (ईपू 160-120) ने भारत पर आक्रमण किया। मीनेंडर संभवतः डेमेट्रियस के कुल का था। जब भारत में नौवां बौद्ध शासक वृहद्रथ राज कर रहा था, तब ग्रीक राजा मीनेंडर अपने सहयोगी डेमेट्रियस (दिमित्र) के साथ युद्ध करता हुआ सिन्धु नदी के पास तक पहुंच चुका था।
*हिमालय निकलकर बहने वाली नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ, शाक्य और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं। अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का भारत में वर्चस्व था। यह सभी कश्यप वंशी थे और इन्ही से नागवंश चला। यह सभी आर्य थे।
महाभारत अनुसार में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।
मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। हालांकि ये दोनों ही आर्यों के कुल से ही थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। वेदों में उल्लेखित पंचनंद अर्थात पांच कुल के लोग ही यदु, कुरु, पुरु, द्रुहु और अनु थे। इन्हीं में से द्रहु और अनु के कुल के लोग ही आगे चलकर मलेच्छ और यवन कहलाए।