पौराणिक मान्यता अनुसार एक युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। कलयुग का प्रारंभ कब हुआ था इस संबंध में मतभेद हैं।
1.कहते हैं कि युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के बाद कलिकाल का प्रारंभ हुआ था तो कुछ उनके स्वर्ग में सशरीर चले जाने के बाद कलिकाल का प्रारंभ हुआ था।
2 . राजा परीक्षित से जुड़ी है कलयुग के प्रारंभ संबंधी घटना। कहते हैं कि कलयुग उनके मुकुट में छुपा हुआ था। उसने बाहर निकलकर राजा परीक्षित से जो वार्तालाप की उसका पुराणों में उल्लेख मिलता है।
3 . आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत के युद्ध 3136 ईसा पूर्व को हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था।
कलियुग संवत के विषय में सबसे प्राचीन संकेत आर्यभट्ट द्वारा दिया गया है। उन्होंने कहा है कि जब वे 23 वर्ष के थे तब कलियुग के 3600 वर्ष व्यतीत हो चुके थे अर्थात वे 476 ई. में उत्पन्न हुए। पश्चात्कालीन ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थों के अनुसार कलियुग संवत के 3719 वर्षों के उपरान्त शक संवत का आरम्भ हुआ। मध्यकाल के भारतीय ज्योतिषियों ने माना है कि कलियुग एवं कल्प के प्रारम्भ में सभी ग्रह, सूर्य एवं चन्द्र को मिलाकर चैत्र शुक्ल-प्रतिपदा को रविवार के सूर्योदय के समय एक साथ एकत्र थे।
अधिकतर विद्वानों के अनुसार कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व हुआ था। इस मान से कलियुग का काल 4,36,000 साल लंबा चलेगा। अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति और शनि, मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे। इसका मतलब 3102+2020= 5122 वर्ष कलियुग के बित चुके हैं और 426882 वर्ष अभी बाकी है।
वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है। यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में श्वेतवराह नाम के कल्प में और वैवस्वत मनु के मन्वंतर में चल रहा है। इसका प्रथम चरण ही चल रहा है।
श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहते हैं जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में विचरण कर रहे थे तब कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। कलयुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से 1200 वर्ष की अर्थात मनुष्य की गणना अनुसार 4 लाख 32 हजार वर्ष की है।- 12.2.31-32
इस तरह होती गई धर्म की हानि:-
1.सतयुग : सतयुग में मनुष्य की लंबाई 32 फिट अर्थात लगभग 21 हाथ बतायी गई है। इस युग में पाप की मात्र 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है। पुण्य की मात्रा 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है।
2.त्रेतायुग : त्रेतायुग में मनुष्य की लंबाई 21 फिट अर्थात लगभग 14 हाथ बतायी गई है। इस युग में पाप की मात्रा 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है और पुण्य की मात्रा 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है।
3.द्वापर : द्वापरयुग में मनुष्य की लंबाई 11 फिट अर्थात लगभग 7 हाथ बतायी गई है। इस युग में पाप की मात्रा 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है जबकि पुण्य की मात्रा 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है।
4.कलियुग : कलियुग में मनुष्य की लंबाई 5 फिट 5 इंच अर्थात लगभग साढ़े तीन हाथ बतायी गई है। इस युग में धर्म का सिर्फ एक चैथाई अंश ही रह जाता है। इस युग में पाप की मात्रा 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है, जबकि पुण्य की मात्रा 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है।