एक दिन की बात है, पांडव और संत लोग आश्रम में बैठे थे। उसी समय द्रौपदी और सत्यभामा भी आपस में मिलकर एक जगह बैठी थीं। दोनों ही आपस में बातें करने लगीं।
सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- बहिन, तुम्हारे पति पांडवजन तुमसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। मैं देखती हूं कि वे लोग सदा तुम्हारे वश में रहते हैं, तुमसे संतुष्ट रहते हैं। तुम मुझे भी ऐसा कुछ बताओ कि मेरे श्यामसुंदर भी मेरे वश में रहें।
तब द्रौपदी बोली- सत्यभामा, ये तुम मुझसे कैसी दुराचारिणी स्त्रियों के बारे में पूछ रही हो। जब पति को यह मालूम हो तो वह अपनी पत्नी के वश में नहीं हो सकता।
इस संबंध में देखीए एक खास वीडियो...
तब सत्यभामा ने कहा- तो आप बताएं कि आप पांडवों के साथ कैसा आचरण करती हैं?
उचित प्रश्न जानकर तब द्रौपदी बोली-
*सुनो, मैं अहंकार और काम, क्रोध को छोड़कर बड़ी ही सावधानी से सब पांडवों की स्त्रियों सहित सेवा करती हूं।
*मैं ईर्ष्या से दूर रहती हूं। मन को काबू में रखकर कटु भाषण से दूर रहती हूं।
*किसी के भी समक्ष असभ्यता से खड़ी नहीं होती हूं।
*बुरी बातें नहीं करती हूं और बुरी जगह पर नहीं बैठती।
*पति के अभिप्राय को पूर्ण संकेत समझकर अनुसरण करती हूं।
*देवता, मनुष्य, सजा-धजा या रूपवान कैसा ही पुरुष हो, मेरा मन पांडवों के सिवाय कहीं नहीं जाता।
*उनके स्नान किए बिना मैं स्नान नहीं करती। उनके बैठे बिना स्वयं नहीं बैठती।
*जब-जब मेरे पति घर में आते हैं, मैं घर साफ रखती हूं। समय पर भोजन कराती हूं।
*सदा सावधान रहती हूं। घर में गुप्त रूप से अनाज हमेशा रखती हूं।
*मैं दरवाजे के बाहर जाकर खड़ी नहीं होती हूं।
*पतिदेव के बिना अकेले रहना मुझे पसंद नहीं।
*साथ ही सास ने मुझे जो धर्म बताए हैं, मैं सभी का पालन करती हूं और सदा धर्म की शरण में रहती हूं।