गांधार, सौवीर, कैकेय, मद्र, यदु, कंबोज, आभीर, वृत्सु, बल्हिक, यवन कुरु आदि जनपद के कुछ हिस्से को मिलाकर आज का पाकिस्तान है। मतलब यह कि गांधार जनपद के कुछ हिस्से पाकिस्तान में है और कुछ अफगानिस्तान में। उसी तरह सौवीर के कुछ हिस्से सिंध में और कुछ बलूचिस्तान में है। आज पाकिस्तान में आधा पंजाब, आधा जम्मू-कश्मीर, सिंध, बलूचिस्तान और पख्तून शामिल है।
कहते हैं कि पंजाब का प्राचीन नाम पंचनद था। इसका पंचनद नाम यहां की झेलम (वितिस्ता), चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास नदी नदियों के कारण हुआ था। उक्त नदियों के आसपास ही प्रारंभ में प्राचीन भारतीय लोग बसते थे। यह सभी नदियां हिमालय ने निकलती है। इन नदियों की प्रमुख नदियां सिंधु और सरस्वती है। उक्त दोनों नदियों के आसपास ही प्रारंभ में ययाति के पांचों पुत्र निवास करते थे, जिन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है।
ययाति प्रजापति ब्रह्मा की 10वीं पीढ़ी में हुए थे। ययाति ने कई स्त्रियों से संबंध बनाए थे इसलिए उनके कई पुत्र थे, लेकिन उनकी 2 पत्नियां देवयानी और शर्मिष्ठा थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी, तो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु, पुरु तथा अनु हुए।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की।
ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पश्चिम में पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। ययाति के राज्य का क्षेत्र अफगानिस्तान के हिन्दूकुश से लेकर असम तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक था। उल्लेखनीय है कि यदु और तुर्वसु को हिब्रू बाइबिल में यहुदह् और तुरबजु के रूप में सृष्टि-खण्ड (Genesis) में आंशिक रूप से वर्णित किया गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि यहूदियों का संबंध यदु कुल से है। यादव जाति के विषय में सबसे पहले प्रमाण ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62वें सूक्त के श्लोकांश में है।
अनु का वंश : अनु को ऋग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।
द्रुहु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं? को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए।
सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत का था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे। तुर्वस और द्रुह्यु से ही यवन और मलेच्छों का वंश चला।
पुरु का साम्राज्य मूलत: पंचनद के आसपास था। पुरु के वंशजों को ही पौरव कहा गया। पंजाब और उसके आसपास के अधिकतर लोग इसी वंश से संबंध रखते हैं। महाभारत काल में यदुवंशी लोग पंजाब के आसपास भी बस गए थे और वे गांधार में जाकर भी बसे थे। शोधकर्ता मानते हैं कि पाकिस्तान के अधिकतर लोग पौरव, सौवीर, कैकेय और मद्र के वंश से संबंध रखते हैं।
एक अन्य शोध के अनुसार पश्तून है। पश्तून, पख़्तून या पठान मुख्य रूप में अफगानिस्तान में हिन्दुकुश पर्वतों और पाकिस्तान में सिन्धु नदी के दरमियानी क्षेत्र में रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह भारत की प्राचीन आभीर कबीले से ताल्लुक रखते हैं। संस्कृत और यूनानी स्रोतों के अनुसार उनके वर्तमान इलाकों में कभी पृक्ता नामक जाति रहा करती थी संभवतः यही पठानों के पूर्वज हैं। ॠग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन 'पृक्त्याकय'/ पृक्तकाय नाम से मिलता है। इसी तरह तीसरे खंड का 91वां श्लोक आफरीदी कबीले का जिक्र 'आपर्यतय' के नाम से करता है। माना जाता है कि आभीर रूप से यही शब्द बाद में अबीर अथवा अहीर हो गया। हालांकि इस पर अभी भी शोध किए जाने की जरूर है।