अमृत मंथन का पहाड़ कहां चला गया?

अनिरुद्ध जोशी
सांकेतिक चित्र
कहते हैं कि क्षीरसागर में ही समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन के दौरान मंदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया था। देवता और और दैत्यों ने मिलकर इस पहाड़ के द्वारा समुद्र को मंथन किया था। इस मंथन से पहले कालकूट नामक विष निकलने के बाद 14 तरह के अद्भुत चीजें प्राप्त हुई थी जिसमें अंतिम था अमृत। लेकिन जिस पहाड़ को मथनी बनाकर मंथन किया था वह पहाड़ वर्तमान में कहां है?
 
 
कहते हैं कि द्वारका नगरी के पास ही देवताओं और राक्षसों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन के लिए मन्दराचल पर्वत का उपयोग किया था।
 
27 अक्टूबर 2014 को प्रकाशित हुई एक खबर के अनुसार आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया था। आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के अनुसार बिहार के भागलपुर के पास स्थित भी एक मंदराचल पर्वत है, जो गुजरात के समुद्र से निकले पर्वत का हिस्सा है।
 
त्रिवेदी के अनुसार बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है। इस तरह ये दोनों पर्वत एक ही हैं। जबकि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते। खोजे गए पर्वत के बीचोबीच नाग आकृति है जिससे यह सिद्ध होता है कि यही पर्वत मंथन के दौरान इस्तेमाल किया गया होगा इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय जरूर है।
 
गौरतलब है कि पिंजरात गांव के समुद्र में 1988 में किसी प्राचीन नगर के अवशेष भी मिले थे। लोगों की यह मान्यता है कि वे अवशेष भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के हैं, वहीं शोधकर्ता डॉ. एसआर राव का कहना है कि वे और उनके सहयोगी 800 मीटर की गहराई तक अंदर गए थे। इस पर्वत पर घिसाव के निशान भी हैं।
 
ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने वेबसाइट पर लगभग 50 मिनट का एक वीडियो जारी किया है. इसमें पिंजरत गांव के समुद्र से दक्षिण में 125 किलोमीटर दूर 800 की गहराई में समुद्रमंथन के पर्वत मिलने की बात भी कही है।
 
हालांकि कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यह पर्वत बांका जिला के बौंसी में स्थित है जो बिहार राज्य में है। परंतु इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं। इस पर्वत की ऊंचाई लगभग 700 से 750 फुट है। 
 
जब हम पुराणों में सुमेरू पर्वत का वर्णन पड़ते हैं तो कुछ और ही समझ में आता है। सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देश में स्थित हैं।
 
इस सुमेरू पर्वत को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। 1. पूर्व में मंदराचल, 2. दक्षिण में गंधमादन, 3. पश्चिम में विपुल और 4. उत्तर में सुपार्श्व। इन पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है। सुमेरू के पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक नाम से आदि पर्वत हैं। सुमेरू के दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक और निषाद आदि पर्वत हैं। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि पर्वत हैं।
 
इस वर्णन अनुसार तो पूर्व में मंदराचल पर्वत होना चाहिए और भारत के पूर्वी राज्य में ही यह पर्वत कहीं होना चाहिए। यदि हम बिहार में स्थित मानते हैं तो फिर यह पर्वत समुद्र में कैसे पहुंचकर पुन: यहां आ गया?

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन करना चाहिए ये 9 अचूक उपाय, होगी धन की वर्षा

12 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

12 नवंबर 2024, मंगलवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadashi 2024 date: देव उठनी एकादशी की पूजा के शुभ मुहूर्त, तुलसी विवाह की विधि मंत्रों सहित

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

अगला लेख
More