महाभारत को महापुराण नहीं कहते हैं। इसे पंचम वेद का दर्जा मिला हुआ है और यह भारत का इतिहास ग्रंथ है। कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था।
महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों सहित कुछ विदेशी राज्यों ने भी भाग लिया था। कुरुक्षेत्र में ही महाभारत का युद्ध क्यों हुआ, इस संबंध में तीन कहानियां प्रचलित है।
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छोटे भाई का वध : भगवान श्रीकृष्ण को डर था कि भाई-भाइयों के, गुरु-शिष्यों के व संबंधी कुटुंबियों के इस युद्ध में एक दूसरे को मरते देखकर कहीं ये संधि न कर बैठें। इसलिए ऐसी भूमि युद्ध के लिए चुनने का फैसला लिया गया जहां क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। तब श्रीकृष्ण ने कई दूत अनेकों दिशाओं में भेजे और उन्हें वहां की घटनाओं का जायजा लेने को कहा।
एक दूत ने सुनाया कि कुरुक्षेत्र में बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ टूटने पर बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। उसने साफ इनकार कर दिया। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को छुरे से गोद डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहां से पानी निकल रहा था वहां उस लाश को पानी रोकने के लिए लगा दिया। इस कहानी को सुनकर श्रीकृष्ण ने तय किया कि यही भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है।
जब श्रीकृष्ण आश्वस्त हो गए कि इस भूमि के संस्कार यहां पर भाइयों के युद्ध में एक दूसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होने देंगे तब उन्होंने युद्ध कुरूक्षेत्र में करवाने की घोषणा की।
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कुरु का क्षेत्र : दूसरी कहानी अनुसार कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए।
ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।
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श्रवण कुमार की कहानी : मातृ और पितृ भक्त श्रवण कुमार की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। श्रवण कुमार जैसे पितृभक्त खोजना मुश्किल है। वे अपने अंधे माता-पिता की सेवा पूरी तत्परता से करते थे, उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देते थे।
एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की और वे उन्हें कांवर में बिठाकर तीर्थ यात्रा को चल दिए। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आया कि पिता-माता को पैदल क्यों न चलाया जाए? उन्होंने कांवर जमीन पर रख दी और उन्हें पैदल चलने को कहा।
अंधे माता और पिता पैदल चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा- बेटा इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता के साथ इस तरह का व्यवहार करने पर बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों में गिरकर क्षमा मांगी तथा फिर से दोनों को कांवर में बिठा लिया।
उनके अंधे पिता ने कहा- पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं। उस भूमि पर किसी समय मय नामक एक असुर रहता था उसने जन्मते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था, उसी के संस्कार उस भूमि में अभी तक बने हुए हैं इसीसे उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी।
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कुरुक्षेत्र का महत्व : महाभारत के वनपर्व के अनुसार, कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और जो ऐसा कहता है कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊंगा और वहीं निवास करुंगा। यहां तक कि यहां की उड़ी हुई धूल के कण पापी को परम पद देते हैं।
नारद पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन:जन्म नहीं लेते। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।