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भगवान परशुराम जयंती पर जानिए भृगुवंश की वंशावली

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WD Feature Desk

, सोमवार, 28 अप्रैल 2025 (18:15 IST)
Parshuram Jayanti 2025: भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था। इस बार 29-30 अप्रैल 2025 को उनकी जयंती मनाई जा रही है। भगवान परशुराम भृगुवंशी थे। उनके कुल के लोगों को भार्गव भी कहते हैं। इस कुल में ब्राह्मण के कई वंश परंपरा से आगे कई शाखाओं में विभक्त होते गए। यदि हम ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु की बात करें तो इनके बड़े भाई का नाम अंगिरा था। अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं। ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षि मंडल में स्थान मिला है।ALSO READ: अक्षय तृतीया पर परशुराम जयंती, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
 
पिता : ब्रह्मा
पत्नी : ख्याति
भृगु के पुत्र : धाता और विधाता
पुत्री : लक्ष्मी (भार्गवी)
रचना : भृगु संहिता, ऋग्वेद के मंत्र रचयिता।
 
महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो उनके भाई दक्ष की कन्या थी। इसका मतलब ख्याति उनकी भतीजी थी। दक्ष की दूसरी कन्या सती से भगवान शंकर ने विवाह किया था। ख्याति से भृगु को दो पुत्र दाता और विधाता मिले और एक बेटी लक्ष्मी का जन्म हुआ। लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से कर दिया था।
 
भृगु पुत्र धाता के आयती नाम की स्त्री से प्राण, प्राण के धोतिमान और धोतिमान के वर्तमान नामक पुत्र हुए। विधाता के नीति नाम की स्त्री से मृकंड, मृकंड के मार्कण्डेय और उनसे वेद श्री नाम के पुत्र हुए। पुराणों में कहा गया है कि इनसे भृगु वंश बढ़ा।
 
भृगु के और भी पुत्र थे जैसे उशना, च्यवन आदि। ऋग्वेद में भृगुवंशी ऋषियों द्वारा रचित अनेक मंत्रों का वर्णन मिलता है जिसमें वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि का नाम आता है। भार्गवों को अग्निपूजक माना गया है। दाशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे। 
 
दूसरा विरोधाभाष : पुराणों में विरोधाभाषिक उल्लेख के कारण यह फर्क कर पाना कठिन है कि कितने भृगु थे या कि एक ही भृगु थे। माना जाता है कि प्रचेता ब्रह्मा की पत्नी वीरणी के गर्भ से भृगु का जन्म हुआ था।ALSO READ: भगवान परशुराम और श्री राम एक ही काल में साथ-साथ थे तो दोनों विष्णु के अवतार कैसे हो सकते हैं?
 
माता-पिता : वरुण और चार्षिणी
पत्नी : दिव्या और पुलोमा
दिव्या के पुत्र : शुक्राचार्य और त्वष्टा (विश्वकर्मा)।
पौलमी के पुत्र : ऋचीक व च्यवन और पुत्री रेणुका।
प्रपौत्र : परशुराम
 
महर्षि भृगु की उत्पत्ति के संबंध में अनेक मत हैं। कुछ विद्वानों द्वारा इन्हें अग्नि से उत्पन्न बताया गया है, तो कुछ ने इन्हें ब्रह्मा की त्वचा एवं हृदय से उत्पन्न बताया है। कुछ विद्वान इनके पिता को वरुण बताते हैं। कुछ कवि तथा मनु को इनका जनक मानते हैं। कुछ का मानना है कि ब्रह्मा के बाद प्रचेता नाम से एक ब्रह्मा हुए थे जिनके यहां भृगु का जन्म हुआ।
 
वरुण के भृगु : भागवत के अनुसार वरुणदेव की चार्षिणी पत्नी से भृगु, वाल्मीकि और अगस्त्य नामक 3 पुत्रों का जन्म हुआ। इस मान से भृगु ब्रह्मा के पुत्र न होकर असुरदेव वरुण के पुत्र थे। वरुण का निवास स्थान अरब तट पर माना गया है।
 
भृगु की दो पत्नियां : महर्षि भृगु के भी दो विवाह हुए। इनकी पहली पत्नी दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या थी। दूसरी पत्नी दानवराज पुलोम की पुत्री पौलमी थी।
Parshuram Jayanti
पहली पत्नी : पहली पत्नी दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या देवी से भृगु मुनि के दो पुत्र हुए जिनके नाम शुक्र और त्वष्टा रखे गए। आचार्य बनने के बाद शुक्र को शुक्राचार्य के नाम से और त्वष्टा को शिल्पकार बनने के बाद विश्वकर्मा के नाम से जाना गया। इन्हीं भृगु मुनि के पुत्रों को उनके मातृवंश अर्थात दैत्यकुल में शुक्र को काव्य एवं त्वष्टा को मय के नाम से जाना गया है।
 
नोट : ऋग्वेद की अनुक्रमणिका से ज्ञात होता है कि असुरों के पुरोहित भृगु के पौत्र और कवि ऋषि के सुपुत्र थे। महर्षि भृगु के प्रपौत्र, वैदिक ऋषि ऋचीक के पौत्र, जमदग्नि के पुत्र परशुराम थे। भृगु ने उस समय अपनी पुत्री रेणुका का विवाह विष्णु पद पर आसीन विवस्वान (सूर्य) से किया। 
 
दूसरी पत्नी पौलमी : पौलमी असुरों के पुलोम वंश की कन्या थी। पुलोम की कन्या की सगाई पहले अपने ही वंश के एक पुरुष से, जिसका नाम महाभारत शांतिपर्व अध्याय 13 के अनुसार दंस था, से हुई थी। परंतु उसके पिता ने यह संबंध छोड़कर उसका विवाह महर्षि भृगु से कर दिया।
 
जब महर्षि च्यवन उसके गर्भ में थे, तब भृगु की अनुपस्थिति में एक दिन अवसर पाकर दंस (पुलोमासर) पौलमी का हरण करके ले गया। शोक और दुख के कारण पौलमी का गर्भपात हो गया और शिशु पृथ्वी पर गिर पड़ा, इस कारण यह च्यवन (गिरा हुआ) कहलाया। इस घटना से दंस पौलमी को छोड़कर चला गया, तत्पश्चात पौलमी दुख से रोती हुई शिशु (च्यवन) को गोद में उठाकर पुन: आश्रम को लौटी। पौलमी के गर्भ से 5 और पुत्र बताए गए हैं।
 
शुक्राचार्य : शुक्र के दो विवाह हुए थे। इनकी पहली स्त्री इन्द्र की पुत्री जयंती थी जिसके गर्भ से देवयानी ने जन्म लिया था। देवयानी का विवाह चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजा ययाति से हुआ था और उसके पुत्र यदु और मर्क तुर्वसु थे। दूसरी स्त्री का नाम गोधा (शर्मिष्ठा) था जिसके गर्भ से त्वष्ट्र, वतुर्ण शंड और मक उत्पन्न हुए थे।
 
च्यवन ऋषि : च्यवन का विवाह मुनिवर ने गुजरात के भड़ौंच (खम्भात की खाड़ी) के राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से किया। भार्गव च्यवन और सुकन्या के विवाह के साथ ही भार्गवों का हिमालय के दक्षिण में पदार्पण हुआ। च्यवन ऋषि खम्भात की खाड़ी के राजा बने और इस क्षेत्र को भृगुकच्छ-भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
 
सुकन्या से च्यवन को अप्नुवान नाम का पुत्र मिला। द‍धीच इन्हीं के भाई थे। इनका दूसरा नाम आत्मवान भी था। इनकी पत्नी नाहुषी से और्व का जन्म हुआ। और्व कुल का वर्णन ब्राह्मण ग्रंथों में ऋग्वेद में 8-10-2-4 पर, तैत्तरेय संहिता 7-1-8-1, पंच ब्राह्मण 21-10-6, विष्णुधर्म 1-32 तथा महाभारत अनु. 56 आदि में प्राप्त है। 
 
ऋचीक: पुराणों के अनुसार महर्षि ऋचीक, जिनका विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती के साथ हुआ था, के पुत्र जमदग्नि ऋषि हुए। जमदग्नि का विवाह अयोध्या की राजकुमारी रेणुका से हुआ जिनसे परशुराम का जन्म हुआ।
 
उल्लेखनीय है कि गाधि के एक विश्वविख्‍यात पुत्र हुए जिनका नाम विश्वामित्र था जिनकी गुरु वशिष्ठ से प्रतिद्वंद्विता थी। परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वामित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई। च्यवन ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से विवाह किया। 
 
तीसरा विरोधाभाष : मरीचि कुल में एक और भृगु हुए जिनकी ख्याति ज्यादा थी। इनका जन्म ब्रह्मलोक-सुषा नगर में हुआ था। इनके परदादा का नाम मरीचि, दादाजी का नाम कश्यप ऋषि, दादी का नाम अदिति था। इनके पिता प्रचेता-विधाता जो ब्रह्मलोक के राजा बनने के बाद प्रजापिता ब्रह्मा कहलाए, अपने माता-पिता अदिति-कश्यप के ज्येष्ठ पुत्र थे। महर्षि भृगुजी की माता का नाम वीरणी देवी था। अपने माता-पिता से सहोदर दो भाई थे। आपके बड़े भाई का नाम अंगिरा ऋषि था। इनके पुत्र बृहस्पतिजी हुए, जो देवगणों के पुरोहित-देव गुरु के रूप में जाने जाते हैं।
 
यदि दोनों ही भृगु एक ही है तो फिर उनकी तीन पत्नियां थी- ख्या‍ति, दिव्या और पौलमी। इनसे जो पुत्र हुए वे सभी भृगुवंशी भार्गव कहलाएं।
 
भृगु ऋषि के 3 प्रमुख पुत्र थे उशना, शुक्र एवं च्यवन। उनमें से शुक्र एवं उनका परिवार दैत्यों के पक्ष में शामिल होने के कारण नष्ट हो गया। इस प्रकार च्यवन ऋषि ने भार्गव वंश की वृद्धि की। महाभारत में च्यवन ऋषि का वंश क्रम इस प्रकार है। च्यवन (पत्नी मनुकन्या आरुषी), और्व, और्व से ऋचीक, ऋचीक से जमदग्नि, जमदग्नि से परशुराम। भृगु ऋषि के पुत्रों में से च्यवन ऋषि एवं उसका परिवार पश्चिम हिन्दुस्तान में आनर्त देश से संबंधित था। उशनस् शुक्र उत्तर भारत के मध्य भाग से संबंधित था। इस वंश ने नि‍म्नलिखित व्यक्ति प्रमुख माने जाते हैं- ऋचीक और्व, जमदग्नि, परशुराम, इन्द्रोत शौनक, प्राचेतस और वाल्मीकि। वाल्मीकि वंश के कई लोग आज ब्राह्मण भी हैं और शूद्र? भी। ऐसा कहा जाता है कि मुगलकाल में जिन ब्राह्मणों ने मजबूरीवश जनेऊ भंग करके उनका मैला ढोना स्वीकार किया उनको शूद्र कहा गया। जिन क्षत्रियों को शूद्रों के ऊपर नियुक्त किया गया उन्हें महत्तर कहा गया, जो बाद में बिगड़कर मेहतर हो गया।
 
भार्गव वंश में अनेक ब्राह्मण ऐसे भी थे, जो कि स्वयं भार्गव न होकर सूर्यवंशी थे। ये ब्राह्मण 'क्षत्रिय ब्राह्मण' कहलाए। इमें निम्नलिखित लोग शामिल हैं जिनके नाम से आगे चलकर वंश चला। 1. मत्स्य, 2. मौद्गलायन, 3. सांकृत्य, 4. गाग्यावन, 5. गार्गीय, 6. कपि, 7. मैत्रेय, 8. वध्रश्च, 9. दिवोदास। -(मत्स्य पुराण 149.98.100)। क्षत्रिय जो भार्गव वंश में सम्मिलित हुआ, वह भरतवंशी राजा दिवोदास का पुत्र मित्रयु था। मित्रयु के वंशज मैत्रेय कहलाए और उनसे मैत्रेय गण का प्रवर्तन हुआ। भार्गवों का तीसरा क्षत्रिय मूल का गण वैतहव्य अथवा यास्क कहलाता था। यास्क के द्वारा ही भार्गव वंश अलंकृत हुआ। खैर...। भृगु की संतान होने के कारण ही उनके कुल और वंश के सभी लोगों को भार्गव कहा जाता है। हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य भी भृगुवंशी थे।
 

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