संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
ऐसे बहुत सारे खेल हैं जिनका जन्मदाता देश भारत है, लेकिन कम ही भारतीय यह जानते होंगे कि कौन-कौन से खेल भारतीयों ने खोजे। लेकिन अंग्रेजों और अरबों के विजयी अभियान के बाद भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को नष्ट किया गया और खुद के झूठे इतिहास को महिमामंडित कर प्रचारित किया गया, क्योंकि उन्हें नया धर्म स्थापित करना था। इसलिए अंग्रेजों ने खुद को सभ्य और संपूर्ण विश्व को असभ्य घोषित कर दिया। ओलिंपिक इतिहास के पहले भारत में भी ओलंपिक होता था। ओलंपिक के अधिकतर खेल भारत में आविष्कृत हैं।
गौरतलब है कि क्षत्रियों को शारीरिक विकास के लिए रथ दौड़, धनुर्विद्या, तलवारबाजी, घुड़सवारी, मल्ल-युद्ध, कुश्ती, तैराकी, भाला फेंक, आखेट आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके अलावा अन्य वर्ग भी बैलगाड़ियों और दक्षिण में नौका की दौड़ में भाग लेते थे। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के अवशेषों से ज्ञात होता है कि ईसा से 2500-1550 वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी सभ्यता में कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और खेल के उपकरण प्रयोग किए जाते थे।
यह सभी जानते हैं कि बलराम, भीम, हनुमान, जामवंत और जरासंध आदि के नाम मल्ल-युद्ध में प्रख्यात हैं। विवाह के क्षेत्र में भी शारीरिक बल के प्रमाणस्वरूप स्वयंवर में भी शारीरिक शक्ति और दक्षता का प्रदर्शन किसी न किसी रूप में शामिल किया जाता था। राम ने शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर और अर्जुन ने मछली की आंख का प्रतिबिम्ब देखकर प्रतियोगिता में खुद की क्षमता का प्रदर्शन किया था। गौतम बुद्ध स्वयं सक्षम धनुर्धर थे और रथ दौड़, तैराकी तथा गोला फेंकने आदि की स्पर्द्धाओं में भाग ले चुके थे। ‘विलास-मणि-मंजरी’ ग्रंथ में त्र्युवेदाचार्य ने इस प्रकार की घटनाओं का उल्लेख किया है।
युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई। योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है।
इसके अतिरिक्त जनजातियां भी जिम्नास्टिक की तरह के प्रदर्शनकारी खेलों में पारंगत थीं। बाजीगर चलते-फिरते सरकस करते थे। उनके लिए बांस की सहायता से अपना शारीरिक संतुलन नियंत्रित करके रस्सों के ऊपर चलना साधारण-सी बात है और वे आजकल भी ऐसा ही करते हैं। केवल हाथों के बल पर चलना-फिरना, बांस की सहायता से ऊंची छलांग (हाई जंप) भरना आदि के आधुनिक खेल वे बिना किसी सुरक्षा आडंबरों के दिखा सकते हैं।
निम्न खेलों के अलावा छिपाछई, पिद्दू, चर-भर, शेर-बकरी, अस्टा-चंगा, चक-चक चालनी, समुद्र पहाड़, दड़ी दोटा, गो, किकली (रस्सीकूद), मुर्ग युद्ध, बटेर युद्ध, अंग-भंग-चौक-चंग, गोल-गोलधानी, सितौलिया, अंटी-कंचे, पकड़मपाटी आदि सैकड़ों खेल हैं जिनमें से कुछ का अब अंग्रेजीकरण कर दिया गया है। आओ जानते हैं कि ऐसे कौन से टॉप 12 खेल हैं जिनका जन्म भारत में हुआ...
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शतरंज : दुनियाभर में शतरंज को दिमाग वालों का खेल माना जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शतरंज का आविष्कार रावण की पत्नी मंदोदरी ने सबसे पहले किया था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इस खेल का आविष्कार लंका के राजा रावण की रानी मंदोदरी ने इस उद्देश्य से किया था कि उसका पति रावण अपना सारा समय युद्ध में व्यतीत न कर सके। एक पौराणिक मत यह भी है कि रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी ने इस खेल का प्रारंभ किया था।'
अमरकोश’ के अनुसार इसका प्राचीन नाम ‘चतुरंगिनी’ था जिसका अर्थ 4 अंगों वाली सेना था। गुप्त काल में इस खेल का बहुत प्रचलन था। पहले इस खेल का नाम चतुरंग था लेकिन 6ठी शताब्दी में फारसियों के प्रभाव के चलते इसे शतरंज कहा जाने लगा। यह खेल ईरानियों के माध्यम से यूरोप में पहुंचा तो इसे चैस (Chess) कहा जाने लगा।छठी शताब्दी में यह खेल महाराज अन्नुश्रिवण के समय (531-579 ईस्वी) भारत से ईरान में लोकप्रिय हुआ। तब इसे ‘चतुरआंग’, ‘चतरांग’ और फिर कालांतर में अरबी भाषा में ‘शतरंज’ कहा जाने लगा। 7
वीं शती के सुबंधु रचित 'वासवदत्ता' नामक संस्कृत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। बाणभट्ट रचित हर्षचरित्र में भी चतुरंग नाम से इस खेल का उल्लेख किया गया है।
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सांप-सीढ़ी (Snakes and Ladders) : इसे मोक्ष-पट भी कहते हैं। बच्चों का खेल सांप-सीढ़ी विश्वभर में प्रचलित है और लगभग यह हर बच्चे ने खेला है, लेकिन क्या भारतीय बच्चे यह जानते हैं कि इस खेल का आविष्कार भारत में हुआ है? इस खेल को सारिकाओं या कौड़ियों की सहायता से खेला जाता था।
सांप-सीढ़ी के खेल का वर्तमान स्वरूप 13वीं शताब्दी में कवि संत ज्ञानदेव द्वारा तैयार किया गया था।
यह खेल हिन्दुओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाता था। 17वीं शताब्दी में यह खेल थंजावर में प्रचलित हुआ। बाद में इसके आकार में वृद्धि की गई तथा कई अन्य बदलाव भी किए गए। तब इसे ‘परमपद सोपान-पट्टा’ कहा जाने लगा। इस खेल की नैतिकता विक्टोरियन काल के अंग्रेजों को भी भा गई और वे इस खेल को 1892 में इंग्लैंड ले गए। वहां से यह खेल अन्य योरपीय देशों में लुड्डो अथवा स्नेक्स एंड लेडर्स के नाम से फैल गया।
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कबड्डी : कबड्डी एक सामूहिक खेल है, जो प्रमुख रूप से भारत में खेला जाता है। इस खेल को दक्षिण भारत में चेडुगुडु और पूरब में हु तू तू के नाम से भी जानते हैं। भारत में इस खेल का उद्भव प्रागैतिहासिक काल से माना जाता। यह खेल लोगों में आत्मरक्षा या शिकार के गुणों को सिखाए जाने के लिए किया जाता था। महाभारत काल में भगवान कृष्ण और उनके साथियों द्वारा कबड्डी खेली जाती थी। इस बात का उल्लेख एक ताम्रपत्र में है। अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाया जाना इसी खेल का एक उदाहरण है।
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खो-खो (kho-kho) : खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्रचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
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चौपड़ पासा (Dice dice) : इसे चेस, पचीसी और चौसर भी कहते है। यह पलंग आदि की बुनावट का वह प्रकार है जिसमें चौसर की आकृति बनी होती है। दरअसल, यह खेल जुए से जुड़ा खेल है। महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बीच यह खेल खेला गया था और उसमें पांडव हार गए थे।
मुस्लिम काल में यह खेल शासकीय वर्ग तथा सामान्य लोगों के घरों में ‘पांसा’ के नाम से खेला जाता था। यह खेल आज भी लोकप्रिय है।
पोलो या सगोल कंगजेट : आधुनिक पोलो की तरह का घुड़सवारीयुक्त यह खेल 34 ईस्वीं में भारतीय राज्य मणिपुर में खेला जाता था। इसे ‘सगोल कंगजेट’ कहा जाता था। सगोल (घोड़ा), कंग (गेंद) तथा जेट (हॉकी की तरह की स्टिक)। कालांतर में मुस्लिम शासक उसी प्रकार से ‘चौगान’ (पोलो) और अफगानिस्तानवासी घोड़े पर बैठकर ‘बुजकशी’ खेलते थे, लेकिन बुजकशी का खेल अति क्रूर था। सगोल कंगजेट का खेल अंग्रेजों ने पूर्वी भारत के चाय बागानवासियों से सीखा और बाद में उसके नियम आदि बनाकर 19वीं शताब्दी में इसे पोलो के नाम से योरपीय देशों में प्रचाररित किया।
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फुटबॉल (Football) : फुटबॉल का खेल आज सबसे लोकप्रिय खेल है। फुटबॉल में ब्राजील, स्पेन, अर्जेंटीना आदि देशों की बादशाहत है और भारत सबसे निचले पायदान पर कहीं नजर आता है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि फुटबॉल खेल का जन्मदाता देश भारत है। चूंकि इतिहास अंग्रेजों ने लिखा इसलिए उन्होंने ओलंपिक को महान बना दिया।
कुछ लोग चीन, ग्रीक और कुछ लोग इटली को इसका जन्मदाता देश मानते हैं, लेकिन इसका सबसे प्राचीन उल्लेख महाभारत में मिलता है। महाभारत में जिक्र है कि कृष्ण अपने साथियों के साथ यमुना किनारे फुटबॉल खेलते थे।
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तीरंदाजी (Archery) : तीरंदाजी का आविष्कार भारत में हुआ। इसके असंख्य प्रमाण हैं। इसे अंग्रेजी में bow and arrow भी कहते हैं। हालांकि विदेशी इतिहासकार इसकी उत्पत्ति मिस्र और चीन से जोड़ते हैं। भारत में एक से एक धनुर्धर थे। धनुर्वेद नाम से एक प्राचीन वेद भी है जिसमें इस विद्या को विस्तार से बताया गया है। यह विद्या सिखाने के दौरान गुरुकुल में इसकी प्रतियोगिता होती थी।
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कुश्ती (Wrestle) : रामायण काल में हनुमान और महाभारत काल में भीम का अपने साथियों के साथ कुश्ती लड़ने का जिक्र आता है। कुश्ती एक अतिप्राचीन खेल, कला एवं मनोरंजन का साधन है। यह प्राय: दो व्यक्तियों के बीच होती है जिसमें खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी को पकड़कर एक विशेष स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। कुश्ती में दारासिंह, गामा पहलवान और गुरु हनुमान की मिसाल दी जाती है। कुश्ती की प्रतियोगिता को दंगल भी कहते हैं। इसके खिलाड़ियों को पहलवान कहते हैं और इसके मैदान को अखाड़ा कहते हैं। भारत के शैवपंथी संत प्राचीनकाल से ही इस खेल को खेलते आए हैं जिसके माध्यम से उनका शरीर पुष्ट रहता है।
अखाड़ों का इतिहास लगभग 2500 ईपू से ताल्लुक रखता है, लेकिन अखाड़े 8वीं सदी से अस्तित्व में आए, जब आदि शंकराचार्य ने महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद अखाड़े की स्थापना की। बाद में छत्रपति शिवाजी के गुरु ने देश भरत के अखाड़ों का पुनर्जागरण किया।
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हॉकी (Hockey) : हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। हॉकी का जन्म 2000 वर्ष पूर्व ईरान में हुआ था, तब ईरान को पारस्य देश कहा जाता था और यह आर्यावर्त का एक हिस्सा था। मूलत: हॉकी का जन्म उस इलाके में हुआ, जहां भारत का प्राचीन कम्बोज देश था। यह खेल भारत से ही ईरान (फारस) गया और वहां से ग्रीस। ग्रीस के लोगों ने इसको उनके यहां होने वाले ओलिंपिक खेलों में शामिल किया। भारत में मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहते हैं।
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गिल्ली-डंडा (Gilli-Danda) : गिल्ली-डंडा भी बहुत ही प्राचीन भारतीय खेल है। लकड़ी की एक 5 से 7 इंची एक गिल्ली बनती है और एक हाथ का एक डंडा। अधिकतर यह खेल मकर संक्रांति पर खेला जाता है। इस खेल का प्रचलन केवल भारत में ही है। यह बहुत ही मनोरंजक खेल है। संक्रांति के अलावा भी इस खेल को खेलते हुए भारत के गली-मुहल्लों में देखा जा सकता है। गिल्ली-डंडा से ही प्रेरित होकर गोल्फ का आविष्कार हुआ।
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गंजिफा : सामान्यतया ताश जैसे इस खेल का भी धार्मिक और नैतिक महत्व था। ताश की तरह के पत्ते गोलाकार शक्ल के होते थे, उन पर लाख के माध्यम से या किसी अन्य पदार्थ से चित्र बने होते थे। गरीब लोग कागज या कंजी लगे कड़क कपड़े के कार्ड भी प्रयोग करते थे। सामर्थ्यवान लोग हाथी दांत, कछुए की हड्डी अथवा सीप के कार्ड प्रयोग करते थे। उस समय इस खेल में लगभग 12 कार्ड होते थे जिन पर पौराणिक चित्र बने होते थे। खेल के एक अन्य संस्करण ‘नवग्रह-गंजिफा’ में 108 कार्ड प्रयोग किए जाते थे। उनको 9 कार्ड की गड्डियों में रखा जाता था और प्रत्येक गड्डी सौरमंडल के नवग्रहों को दर्शाते थे। यही गंजिफा बाद में बन गया ताश का खेल।
इस खेल में पहले राजा-रानी होते थे, बाद में मुगलकाल में बेगम-बादशाह होने लगे और अंग्रेज काल में क्वीन और किंग होने लगे। जिस देश में भी ताश पहुंचा, उसे देश के रंग में ढाला गया। ताश के पत्तों के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। भारत में ज्योतिष ताश के पत्तों से लोगों का भविष्य भी बताते थे और आज भी बताते हैं। ताश के कई तरह के जादू भी बताए जाते हैं।
भारतीय ज्योतिषियों के अनुसार 1 साल के अंदर 52 सप्ताह होते हैं और 4 ऋतुएं। इसी आधार पर ताश के पत्तों का निर्माण किया गया। 52 सप्ताह को यदि 4 भागों में विभाजित किया जाए तो एक भाग में 13 दिन आएंगे। भारतीय मान्यता के अनुसार एक भाग में धर्म, दूसरे में अर्थ, तीसरे में काम और चौथे में मोक्ष। ताश के पत्तों के भी 4 प्रकार होते हैं:- लाल पान, काला पान, लाल चीड़ी और काली चीड़ी। अंत में एक जोकर। पहला बादशाह, दूसरा बेगम, तीसरा इक्का और चौथा गुलाम। ये जिंदगी के 4 रंग हैं। यदि गुलाम को 11, बेगम को 12, बादशाह को 13 और जोकर को 1 माना जाए तो अंकित चिह्नों का योग 365 के बराबर होता है।
इसके अलावा भाला फेंक, तैराकी, दौड़, बैटलदौड़ (बैडमिंटन) आदि कई खेलों का जन्म भारत में हुआ।