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कुंभ नगरी हरिद्वार का प्राचीन इतिहास

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अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 15 जनवरी 2021 (14:49 IST)
उत्तररांचल प्रदेश में हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार है। हरि याने भगवान विष्णु। हरिद्वार नगरी को भगवान श्रीहरि (बद्रीनाथ) का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। इसे गंगा द्वार और पुराणों में इसे मायापुरी क्षेत्र कहा जाता है। यह भारतवर्ष के सात पवित्र स्थानों में से एक है। हरिद्वार में हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। इसी विश्वप्रसिद्ध घाट पर कुंभ का मेला लगता है। कहा जाता है समुद्र मंथन से प्राप्त किया गया अमृत यहां गिरा था। हरिद्वार के पास ही बेहद खूबसूरत धार्मिक स्थल है ऋषिकेश।
 
 
हरिद्वार के दर्शनीय स्थल : ब्रह्मकुंड, हर की पौड़ी और मनसादेवी का मंदिर। इसके अलावा भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव, गंगा, दुर्गा के खूबसूरत मंदिर हैं। इन मंदिरों में संगमरमर के पत्थरों पर सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं।
 
1. गंगा के उत्तरी भाग में बसे हुए 'बदरीनारायण' तथा 'केदारनाथ' नामक भगवान विष्णु और शिव के पवित्र तीर्थों के लिए इसी स्थान से आगे मार्ग जाता है। इसीलिए इसे 'हरिद्वार' तथा 'हरद्वार' दोनों ही नामों से पुकारा जाता है। वास्तव में इसका नाम 'गेटवे ऑफ़ द गॉड्स' है।
 
2. महाभारत में हरिद्वार को 'गंगाद्वार' कहा गया है, क्योंकि यहां पहाड़ियों से निकल कर भागीरथी गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में आती हैं। 
 
3. हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम 'माया' या 'मायापुरी' है, जिसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी। 
 
4. कपिल मुनि ने भी यहां तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है।
 
5. कहते हैं कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी पर भगवान ब्रह्मा की तपस्या की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के जल को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाने लगा।
 
6. हरिद्वार में ही राजा धृतराष्ट्र के मंत्री और सौतेले भाई विदुर ने मैत्री मुनि के यहां अध्ययन किया था।
 
7. हर की पौड़ी वह घाट हैं जिसे विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। किवदन्ती है कि हर की पौड़ी में स्नान करने से जन्म जन्म के पाप धुल जाते हैं।
 
8. हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर सर्पों की देवी मनसा देवी का मंदिर बना है। यह माता भगवान शिव की पुत्र हैं। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।
 
9. गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर यह चंडी देवी मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। किवदंतियों के अनुसार चंडी देवी ने शुंभ निशुंभ के सेनापति चंद और मुंड को यहीं मारा था। यहीं पर आदिशंकराचार्य ने चंडी देवी की मूल प्रतिमा स्थापित करवाई थी।
 
10. हरिद्वार में भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक माया देवी का मंदिर है। यहां माता सती का हृदय और नाभि गिरे थे। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है।
 
11. यहां सप्त सागर नामक एक स्थान हैं जहां पर गंगा नदी सात धाराओं में बहती है। इसी के पास सप्तऋषि आश्रम है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहां सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्‍त धारा' भी कहा जाता है।
 
12. यहां पर माता सती के पिता राजा दक्ष की याद में बनवाया गया एक मंदिर भी है जो प्राचीन नगर के साऊथ में स्थित है। किवदंतियों के अनुसार यहीं पर राजा दक्ष ने वह यज्ञ किया था जिसमें कूदकर माता सती ने आत्मदाह कर लिया था। इससे शिव के अनुयायी वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया था। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
 
13. कुंभ मेले का आयोजन चार नगरों में होता है:- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। चारों नगरों के आने वाले कुंभ की स्थिति विशेष होती है। एक ओर जहां नासिक और उज्जैन के कुंभ को आमतौर पर सिंहस्थ कहा जाता है तो अन्य नगरों में कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है। अर्ध का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।  कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। 
 
प्रत्येक 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। जैसे मान लो कि उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। इसी तरह जब हरिद्वार, नासिक या प्रयागराज में 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होगा तो उसे पूर्णकुंभ कहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है।

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