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हम्पी डम्पी के विध्वंस की कहानी, जानिए

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अनिरुद्ध जोशी

विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1350 ई. से 1565 ई.) की स्थापना राजा हरिहर ने की थी। 'विजयनगर' का अर्थ होता है 'जीत का शहर'। मध्ययुग के इस शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के बाद से ही इस पर लगातार आक्रमण हुए लेकिन इस साम्राज्य के राजाओं से इसका कड़ा जवाब दिया। यह साम्राज्य कभी दूसरों के अधीन नहीं रहा। इसकी राजधानी को कई बार मिट्टी में मिला दिया गया लेकिन यह फिर खड़ा कर दिया गया। हम्पी के मंदिरों और महलों के खंडहरों के देखकर जाना जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा। इसे यूनेस्को ने विश्‍व धरोहर में शामिल किया है।
 
हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा 'विश्व विरासत स्थलों' की सूची में भी शामिल है। यहां दुनिया के सबसे बेहतरीन और विशालकाय मंदिर बने थे, जो अब खंडहर में बदल चुके हैं। यह माना जाता है कि एक समय में हम्पी रोम से भी समृद्ध नगर था। यहां मंदिरों की खूबसूरत शृंखला है, इसलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।
 
कृष्णदेव राय ने 1509 से 1529 के बीच हम्पी में शासन किया था। कृष्णदेव राय जब तक जिंदा थे जब तक इस राज्य पर और इसी राजधानी पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आई। विजयनगर साम्राज्य के अर्न्‍तगत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के राज्य आते थे। कृष्णदेवराय की मृत्यु के बाद इस विशाल साम्राज्य को बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में क्रूरतम हमला करके नष्ट कर दिया। भयंकर लूटपाट और कत्लेआम हुआ और संपूर्ण शहर को खंडहर और लाशों के ढेर में बदल दिया गया। यह इतिहास का सबसे क्रूरतम हमला था। जैसा कि दिल्ली में नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली ने क्रूरतम हमला किया था।
 
कृष्ण देवराय की मृत्यु के बाद अंत में केवल एक बिरार की मुस्लिम रियासत को छोड़कर बीजापुर, बीदर, गोलकोण्‍डा तथा अहमदनगर के क्रूर मुस्लिम शासकों ने एक साथ विजयनगर पर आक्रमण कर दिया। तब राजा सदाशिव राय गद्दी पर था लेकिन उसके साथ राज्य के मुसलमानों और उसकी ही सेना की एक मुस्लिम टुकड़ी ने गद्दारी की। यह युद्ध तालिकोट में हुआ था।
 
सेनापति राय ने इस संयुक्त मुस्लिम आक्रमण में विजयनगर की सेना का नेतृत्व किया। घमासान युद्ध के दौरान विजयनगर की सेना जीतने ही वाली थी कि उसके मुस्लिम कमांडर अपने-अपने सैनिक जत्थे लेकर हमलावर सेना के साथ जा मिले। इससे युद्ध का नजारा ही बदल गया। सेनापति आलिया राय कुछ सोच पाते उससे पूर्व ही उन्हें पकड़ लिया गया। आलिया राय को पकड़कर तत्काल मार दिया गया। सदाशिव जानता था कि जीत हमारी सेना की ही होनी है, लेकिन जब उसको विजयनगर की सेना की हार की खबर मिली तो वह जितना संभव हुआ, उतनी धन संपत्ति समेटकर हम्पी नगर से पलायन कर गया।
 
विजयनगर की सेना उस समय दक्षिण की अजेय सेना मानी जाती थी, लेकिन भारतीय हिन्दू राजाओं की उदारता अक्सर उनके लिए घातक बन जाती थी। तालिकोट के युद्ध में भी यही हुआ। 25 दिसंबर 1564 विजयनगर के पतन की तिथि बन गई। सदाशिव राय का शाही परिवार तब तक पेनुकोंडा (वर्तमान अनंतपुर जिले में स्थित) पहुंच गया था। पेनुकोंडा को उसने अपनी नई राजधानी बनाया, लेकिन वहां भी नवाबों ने उसे चैन से नहीं रहने दिया। बाद में वहां से हटकर चंद्रगिरि (जो चित्तूर जिले में है) को राजधानी बनाया। वहां शायद किसी ने उनका पीछा नहीं किया। विजयनगर साम्राज्य करीब 80 वर्ष और चला। गद्दारों के कारण विजयनगर साम्राज्य 1646 में पूरी तरह इतिहास के कालचक्र में दफन हो गया। इस वंश के अंतिम राजा रंगराय (तृतीय) थे, जिनकी शायद 1680 में मौत हुई।
 
आलिया राय के मारे जाते ही विजयनगर की सेना तितर-बितर हो गई। मुस्लिम सेना ने विजयनगर पर कब्जा कर लिया। उसके बाद वैभव, कला तथा विद्वता की इस ऐतिहासिक नगरी में लूट, हत्या और ध्‍वंस का जो तांडव शुरू हुआ, उसकी नादिर शाह की दिल्ली लूट और कत्लेआम से ही तुलना की जा सकती है। हत्या, बलात्कार तथा ध्वंस का ऐसा नग्न नृत्य किया गया कि जिसके निशान आज भी हम्पी में देखे जा सकते हैं।
 
बीजापुर, बीदर, गोलकोंडा तथा अहमदनगर की सेना करीब 5 महीने उस नगर में रही। इस अवधि में उसने इस वैभवशाली नगर की ईंट से ईंट बजा दी। ग्रंथागारों व शिक्षा केंद्रों को आग की भेंट चढ़ा दिया गया। मंदिरों और मूर्तियों पर लगातार हथौड़े बरसते रहे। हमलावरों का एकमात्र लक्ष्य था विजयनगर का ध्वंस और उसकी लूट। शायद साम्राज्य हथियाना उनका प्रथम लक्ष्य नहीं था।

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