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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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क्या सचमुच ही ये लोग मनुष्य थे?

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अनिरुद्ध जोशी

भारत रहस्यों से भरा देश रहा है। शोधानुसार लगभग 35 से 40 हजार वर्ष पहले से भारत में एक समृद्ध सामाजिक परंपरा रही है। प्राचीनकाल में सुर, असुर, देव, दानव, दैत्य, रक्ष, यक्ष, दक्ष, किन्नर, निषाद, वानर, गंधर्व, नाग और मानव आदि जातियां होती थीं। प्राचीन भारत में कुछ इस तरह के मानव और जीव हुए हैं जिनके बारे में आज भी शोध जारी है।
 
 
इस बात का सबूत है कि प्राचीनकाल में दो भिन्न-भिन्न प्रजातियों के मेल से विचित्र किस्म के जीव-जंतुओं और मानवों का जन्म हुआ होगा। रामायणकाल और महाभारत काल में जहां विचित्र तरह के मानव और पशु-पक्षी होते थे, वहीं उस काल में तरह-तरह के सुर और असुरों का साम्राज्य और आतंक था। हालांकि बहुत कम ही लोग होंगे, जो इस बात से सहमत हैं कि दुनिया में विचित्र प्राणी होते हैं? सच में जिनके मानवरूप होने की संभावनाओं को नकारना मुश्किल है लेकिन विश्वास भी नहीं होता। आओ हम जानते हैं कि भारत के प्राचीन काल में ऐसे कौन-कौन से मानव हुए जो सामान्यफ: मानव से भिन्न थे।
 
 
कुंभकर्ण- यह रावण का भाई था, जो 6 महीने बाद 1 द‌िन जागता और भोजन करके फ‌िर सो जाता, क्‍योंक‌ि इसने ब्रह्माजी से इंद्रासन की जगह न‌िद्रासन का वरदान मांग ल‌िया था। इसका शरीर विशालकाय था। युद्ध के दौरान क‌िसी तरह कुंभकर्ण को जगाया गया। कुंभकर्ण ने युद्ध में अपने व‌िशाल शरीर से वानरों पर प्रहार करना शुरू कर द‌िया इससे राम की सेना में हाहाकार मच गया। सेना का मनोबल बढ़ाने के ल‌िए राम ने कुंभकर्ण को युद्ध के ल‌िए ललकारा और भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण वीरगत‌ि को प्राप्त हुआ।
 
 
विशालकाय मानव घटोत्कच- भीम के पुत्र घटोत्कच और पौत्र बर्बरीक के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों की सामान्य मानवों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई थी। माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था। घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक था। घटोत्कच का वध कर्ण ने किया था।
 
 
रीछ मानव- क्या इंसानों के समान कोई पशु हो सकता है? जैसे रीछ प्रजाति। रामायण में जामवंत को एक रीछ मानव की तरह दर्शाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अर्सिडी कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालों वाला बड़ा जानवर है। यह लगभग पूरी दुनिया में कई प्रजातियों में पाया जाता है। मुख्‍यतया इसकी 5 प्रजातियां हैं- काला, श्वेत, ध्रुवीय, भूरा और स्लोथ भालू। अमेरिका और रशिया में आज भी भालू मानव के किस्से प्रचलित हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि कभी इस तरह की प्रजाति जरूर अस्तित्व में रही होगी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि भूरे रंग का एक विशेष प्रकार का भालू है जिसे नेपाल में 'येति' कहते हैं।
 
 
संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। अग्नि पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। जामवंतजी को अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था, जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
 
 
कबंध- सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं थे। उसके मस्तक पर केवल एक आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था। कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर पूछा- आप कौन वीर हैं? परिचय जानकर कबंध बोला- यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने कहा- मैं दनु का पुत्र कबंध बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था।
 
 
वानर मानव- शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में ही हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है।
 
 
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूंछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।
 
 
पक्षी मानव- माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे। काकभुशुण्डि एक कौआ था जिसने गरूड़ भगवान को रामायण सुनाई थी।
 
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मत्स्य कन्या- भारतीय रामायण के थाई व कम्बोडियाई संस्करणों में रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जलपरी) का उल्लेख किया गया है। वह हनुमान का लंका तक सेतु बनाने का प्रयास विफल करने की कोशिश करती है, पर अंततः उनसे प्यार करने लगती है। भारतीय दंतकथाओं में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का उल्लेख है जिसके शरीर का ऊपरी भाग मानव का व निचला भाग मछली का है।
 
 
सर्प मानव- क्या शेषनाग, वासुकि और तक्षक ये सभी सर्प मानव थे? शेषनाग के बारे में सभी जानते हैं जिसके ऊपर भगवान विष्णु को लेटे हुए बताया जाता है। कश्यप-कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग था। शिव के गले में लटके उसके भाई का नाम वासुकि और कर्कोटक था। शेषनाग को ही अनंत कहते थे। पौराणिक कथाओं अनुसार पाताललोक में कहीं एक जगह नागलोक था जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि सात तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे।
 
 
कुंति पुत्र अर्जुन ने पाताललोक की एक नाग कन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। यह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूढ़ ने खा लिया था। अर्जुन और नाग कन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच विवाह भी एक नाग कन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था। भगवान कृष्ण ने कालिया नाग के अलावा अगासुर नामक विशालकाय नाग को भी मारा था।
 
 
अश्व मानव- लोककथाओं और जनश्रुतियों में अश्व मानवों के कई किस्से-कहानियां पढ़ने को मिलते हैं। नरतुरंग या अश्‍व मानव नाम से एक तारामंडल का नाम भी है। पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि कश्यप की पत्नी सुरभि से भैंस, गाय, अश्व तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति हुई थी। माना जाता है कि घोड़ा, गेंडा और दुनिया के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला टैपीर नामक जानवर एक ही पूर्वज की संतानें हैं। इस जीव समूह को वैज्ञानिक शब्दावली में 'पैरिसोडैक्टिला' कहते हैं जिसका अर्थ है अंगुलियों की अनिश्चित संख्या वाले जीव।
 
 
माना जाता है कि आयुर्वेद के जन्मदाता अश्वि‍नी कुमार अपनी आकृति घोड़े के समान कर लेते थे। यह धारणा संभवत: इसलिए जन्मी हो क्योंकि वे अश्व विज्ञान में पारंगत थे। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र थे। सूर्य घोड़ा बनकर प्रभा के पास गए थे। इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है।
 
 
बकरा मानव- भगवान शंकर ने अपने श्‍वसुर प्रजापति राजा दक्ष का जब सिर काट दिया था जो उनके सिर पर बकरे का सिर लगा कर जीवित कर दिया था। दरअसल, राजा दक्ष ने सती और शंकर को अपने वाजपेयी यज्ञ में नहीं बुलाया था, लेकिन सती माता फिर भी उनके यज्ञ में चली गई था और उन्हें वहां अपमान का सामना करना पड़ा इसी से क्षुब्ध होकर उन्होंने उसी यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। इस आत्मदाह के बाद भगवान शंकर ने अपने गण वीरभद्र को भेज। वीरभद्र ने वहां पहुंचकर न केवल यज्ञ मंडप को तहस नहस कर दिया बल्कि उन्हों प्राजापति दक्ष का सिर काटकर भगवान शंकर के चरणों में रख दिया था। लेकिन ब्रह्मा के विनय के बाद भगवान शंकर ने दक्ष पर बकरे का सिर लगा कर उन्हें फिर से जीवित कर दिया था। प्राजापति दक्ष ब्रह्मा के पुत्र थे।
 
 
हथी मानव- भगवान गणेश की कथा सभी को मालूम है। भगवान गणेश की उत्पत्ति माता पार्वती ने की थी। उन्होंने उन्हें वहां का द्वारपाल नियुक्ति क्या था जहां वे स्नान करने जाती थी। द्वारपाल नियुक्त करने के बाद कहा था कि आप किसी को भी अंदर न आने देना। भगवान गणेश ने माता की आज्ञा से ही भगवान शंकर का मार्ग रोक दिया था। भगवान शंकर ने क्रोध लीला दिखाते हुए उनका सिर काट दिया था। बाद में माता पार्वती के विलाप करने के बाद उन्होंने उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का सिर लगाकर उन्हें पुन: जीवित कर दिया था।
 
 
नंदी- शिलाद ऋषि के पुत्र नंदी भुवन अपनी अल्पायु को जानकर नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
 
 
इसी तरह ऐसे कई लोग हैं जिनका हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।

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