आपको विश्वामित्र और मेनका की कथा तो मालूम ही होगी। मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दी थी। विश्वामित्र मेनका पर मोहित हो गए थे और फिर उन्होंने उससे विवाह कर अपना अगल संसार बसा लिया था। लेकिन मार्कण्डेय ऋषि जब तपस्या करने लगे तो इंद्र को फिर से अपना सिंहासन खतरे में नजर आया। तब उन्होंने मार्कण्डेय की तपस्या भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा।
उर्वशी तपस्या स्थल पर पहुंच गई और उसने अपनी सिद्धि शक्ति से सुहावना मौसम बनाया तथा हर तरह का कामुक नृत्य और गान किया लेकिन मार्कण्डेय ऋषि टस से मस नहीं हुए। कहते हैं कि तब अंत में उर्वशी को निर्वस्त्र होना पड़ा। फिर मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी आंखें खोलकर कहा कि हे देवी! आप यहां किसलिए आई?
इस पर उर्वशी ने कहा कि हे ऋषि। आप जीत गए मैं हार गई। आप टस से मस नहीं हुए। आप सचमुच ब्रह्मज्ञानी हैं। लेकिन यदि में आपसे हारकर स्वर्ग गई तो मेरा मजाक उड़ाया जाएगा। इन्द्र की उलाहना का सामना करना होगा। उर्वशी ने कहा कि मैं इन्द्र की पटरानी हूं।
इस पर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि जब इन्द्र मरेगा तब तुम क्या करेगी? उर्वशी बोली मैं 14 इन्द्र तक बनी रहूंगी। मेरे सामने 14 इन्द्र अपनी-अपनी इन्द्र पदवी भोगकर मर जाएंगे। मेरी आयु स्वर्ग की पटरानी के रूप में है। इसी तरह एक ब्रह्मा के दिन (एक कल्प) की आयु एक इन्द्र की पटरानी शचि की है।
अंत में इस संवाद के बीच ही फिर इन्द्र आया तथा कहने लगा कि हे ऋषि, आप जीत गए, हम हार गए। चलो आप अब इन्द्र के सिंहासन पर विराजमान होओ। इस पर मार्कण्डेय ऋषि बोले- रे इन्द्र, क्या कह रहा है? इन्द्र का राज मेरे किस काम का। मैं तो ब्रह्मज्ञान की साधना कर रहा हूं। वहां पर तेरे जैसे लाखों इन्द्र हैं। तू भी अनन्य मन से ब्रह्म की साधना कर ले। ब्रह्मलोक में साधक कल्पों तक मुक्त हो जाता है।
इस पर इन्द्र ने कहा कि ऋषिजी, फिर कभी देखेंगे। यदि आप मेरे सिंहासन पर नहीं बैठना चाहते तो ठीक है यह अच्छी बात है। आप साधना करते रहें। अब यह तो कम से कम स्पष्ट हो गया कि आप इन्द्र पद के लिए साधना नहीं कर रहे हैं तो मैं निश्चिंत हूं।