टेलीपैथी को हिन्दी में दूरानुभूति कहते हैं। 'टेली' शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। आदमी के मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। भविष्य भी वर्तमान से थोड़ा दूर ही है इसे भी समय का अतिक्रमण करके पकड़ा जा सकता है। इस विद्या को सम्मोहन विद्या के माध्यम से अच्छे से सिखा जा सकता है और अपने एवं दूसरे के भविष्य में झांका जा सकता है।
कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारतकाल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कह सुनाया था। भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। आओ जानते हैं इसे सिखने के तीन तरीके।
पहला तरीका योग द्वारा : योग में मन: शक्ति योग के द्वारा इस शक्ति हो हासिल किया जा सकता है। ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के चित्त का ज्ञान होता है। यदि चित्त शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी। योग में त्राटक विद्या, प्राण विद्या के माध्यम से भी आप यह विद्या सिख सकते हैं। योग के विभूतिपाद में मन:शक्ति योगा के बारे में बताया गया है।
दूसरा तरीका ध्यान द्वारा : लगातार ध्यान करते रहने से चित्त स्थिर होने लगता है। चित्त के स्थिर और शांति होने से साक्षीभाव घटित होता है। यह संवेदनशिल अवस्था टेलीपैथी के लिये जरूरी होती है। ध्यानसंपन्न व्यक्ति किसी के भी मन की बात समझ सकता है। कितने ही दूर बैठे व्यक्ति की स्थिति और वार्तालाप का वर्णन कर सकता है।
तीसरा आधुनिक तरीके द्वारा : आधुनिक तरीके के अनुसार ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। इस विद्या में सम्मोहन का भी सहरा लिया जाता है। सम्मोहन के माध्यम से हम अपने चेतन मन को सुलाकर अवचेतन मन को जाग्रत करते हैं और फिर इस अवचेतन मन के माध्यम से हम दूसरे व्यक्ति के मन बात, विचार आदि पढ़ लेते हैं और यदि वह हजारों किलोमीटर भी बैठा है तो इस मन के माध्यम से व्यक्ति को वह उसके सामने ही नजर आता है।