10 पॉइंट में जानें हिन्दू धर्म को

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म, दर्शन, इतिहास और योग को यूं तो 10 पॉइंट में नहीं समेटा जा सकता लेकिन मोटे तौर पर आप इन 10 पॉइंट में ही बहुत कुछ जान सकते हैं।
 
1. धर्मग्रंथ : पवित्र ग्रंथों के 2 भाग- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अंतर्गत वेद और स्मृति के अंतर्गत पुराण, महाभारत, रामायण एवं स्मृतियां आदि हैं। वेद ही है धर्मग्रंथ, जो 4 हैं:- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों का सार उपनिषद, उपनिषदों का सार गीता है। ईश्वर से सुनकर हजारों वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाए, वही संस्थापक हैं।
 
2. एकेश्वरवाद : ईश्वर एक ही है जिसे ब्रह्म कहा गया है। वेदों का एकेश्वरवाद दुनिया के अन्य धर्मों से भिन्न है। देवी, देवता और भगवान असंख्य हैं, लेकिन ब्रह्म ही सत्य है और उससे बढ़कर कोई नहीं। भगवान शंकर और हनुमानजी को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
 
 
3. मोक्ष : ब्रह्मांड में आत्माएं असंख्य हैं, जो शरीर धारण कर जन्म-मरण के चक्र में घूमती रहती हैं। आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। मोक्ष सिर्फ भक्ति, ज्ञान और योग से ही प्राप्त होता है। यही सनातन पथ है।
 
4. प्रार्थना : संध्यावंदन हिन्दू प्रार्थना का एक तरीका है। संधिकाल में ही संध्यावंदन की जाती है। संधि 8 वक्त की होती है। उसमें से सूर्य उदय और अस्त अर्थात 2 वक्त की संधि महत्वपूर्ण है।
 
 
5. तीर्थ : तीर्थों में चारधाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, कैलाश मानसरोवर, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है। अयोध्या, मथुरा, काशी, जगन्नाथ और प्रयाग तीर्थों में सर्वोच्च है।
 
6. त्योहार : चन्द्र और सूर्य की संक्रांतियों के अनुसार कुछ त्योहार मनाए जाते हैं। मकर संक्रांति और कुंभ श्रेष्ठ हैं। पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, नवरात्रि, शिवरात्रि, दीपावली, होली, वसंत पंचमी, ओणम, गणेश चतुर्थी, छठ, रक्षाबंधन आदि प्रमुख हैं।
 
 
7. व्रत-उपवास : सूर्य संक्रांतियों में उत्सव, तो चन्द्र संक्रांति में व्रतों का महत्व है। व्रतों में एकादशी, प्रदोष और श्रावण मास ही प्रमुख व्रत हैं। साधुजन चातुर्मास अर्थात श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।
8. दान-पुण्य : पुराणों में अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है। वेदों में 3 प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1. उत्तम, 2. मध्यम और 3. निकृष्‍टतम।
 
 
8. यज्ञ : यज्ञ के 5 प्रकार- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेवयज्ञ और अतिथियज्ञ। वेदपाठ से ब्रह्मयज्ञ, सत्संग एवं अग्निहोत्र कर्म से देवयज्ञ, श्राद्धकर्म से पितृयज्ञ, सभी प्राणियों को अन्न-जल देने से वैश्वदेवयज्ञ और मेहमानों की सेवा करने से अतिथियज्ञ संपन्न होता है।
 
9. सोलह संस्कार : गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातक्रम, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और वानप्रस्थ, परिव्राज्य या सन्न्यास, पितृमेध या अन्त्यकर्म। कुछ जगहों पर विद्यारंभ, वेदारंभ और श्राद्धकर्म का भी उल्लेख है। संस्कार से ही धर्म कायम है। 
 
 
10. मंदिर : प्रति गुरुवार को मंदिर जाना जरूरी है। पुराणों में उल्लेखित देवताओं के मंदिरों को ही मंदिर माना गया है, किसी बाबा की समाधि आदि को नहीं। मंदिर का अर्थ है- मन से दूर एक स्थान। मंदिर में आचमन के बाद संध्योपासना की जाती है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Tula Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: तुला राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

Job and business Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों के लिए करियर और पेशा का वार्षिक राशिफल

मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का महत्व, इस दिन क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए?

क्या आप नहीं कर पाते अपने गुस्से पर काबू, ये रत्न धारण करने से मिलेगा चिंता और तनाव से छुटकारा

Solar eclipse 2025:वर्ष 2025 में कब लगेगा सूर्य ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा और कहां नहीं

सभी देखें

धर्म संसार

मार्गशीर्ष माह के हिंदू व्रत और त्योहारों की लिस्ट

श्रीयंत्र को सही विधी से स्थापित करने से हो सकते हैं मालामाल वर्ना जरा सी गलती से हो सकता है भारी नुकसान

Malmas : दिसंबर में कर लें विवाह नहीं तो लगने वाला है मलमास, जानें क्या करें और क्या नहीं

घर के मंदिर में कितनी होनी चाहिए मूर्तियों की ऊंचाई? पूजा घर के इन नियमों की जानकारी है बेहद ज़रूरी

कछुआ रिंग पहनते समय भूलकर भी ना करें ये गलती, फायदे की जगह हो सकता है नुकसान, जानें इसे पहनने के नियम

अगला लेख
More