प्राचीनकाल में देव, नाग, किन्नर, असुर, गंधर्व, भल्ल, वराह, दानव, राक्षस, यक्ष, किरात, वानर, कूर्म, कमठ, कोल, यातुधान, पिशाच, बेताल, चारण आदि जातियां हुआ करती थीं। देव और असुरों के झगड़े के चलते धरती के अधिकतर मानव समूह दो भागों में बंट गए। पहले बृहस्पति और शुक्राचार्य की लड़ाई चली, फिर गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र की लड़ाई चली। इन लड़ाइयों के चलते समाज दो भागों में बंटता गया।
हजारों वर्षों तक इनके झगड़े के चलते ही पहले सुर और असुर नाम की दो धाराओं का धर्म प्रकट हुआ, यही आगे चलकर यही वैष्णव और शैव में बदल गए। लेकिन इस बीच वे लोग भी थे, जो वेदों के एकेश्वरवाद को मानते थे और जो ब्रह्मा और उनके पुत्रों की ओर से थे। इसके अलावा अनीश्वरवादी भी थे। कालांतर में वैदिक और चर्वाकवादियों की धारा भी भिन्न-भिन्न नाम और रूप धारण करती रही।
शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया। इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के धर्म) के समन्वय का कार्य भी किया। बाद में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय बना जिसे स्मार्त संप्रदाय कहते हैं।
इस तरह वेद और पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदायों माने जा सकते हैं:- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय। वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं, शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। हालांकि आजकल सब कुछ होचपोच।
हालांकि सभी संप्रदाय का धर्मग्रंथ वेद ही है। सभी संप्रदाय वैदिक धर्म के अंतर्गत ही आते हैं लेकिन आजकल यहां भेद करना जरूर हो चला है, क्योंकि बीच-बीच में ब्रह्म समाज, आर्य समाज और इसी तरह के प्राचीनकालीन समाजों ने स्मृति ग्रंथों का विरोध किया है। जो ग्रंथ ब्रह्म (परमेश्वर) के मार्ग से भटकाए, वे सभी अवैदिक माने गए हैं।
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*वैष्णव संप्रदाय के उप संप्रदाय : वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि। वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है। भगवान विष्णु का वर्णन भी वेदों में मिलता है। पुराणों में विष्णु पुराण प्रमुख है। विष्णु का निवास समुद्र के भीतर माना गया है।*विष्णु के अवतार : शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। 24
अवतारों का क्रम निम्न है-1. आदि परषु, 2. चार सनतकुमार, 3. वराह, 4. नारद, 5. नर-नारायण, 6. कपिल, 7. दत्तात्रेय, 8. याज्ञ, 9. ऋषभ, 10. पृथु, 11. मत्स्य, 12. कच्छप, 13. धन्वंतरि, 14. मोहिनी, 15. नृसिंह, 16. हयग्रीव, 17. वामन, 18. परशुराम, 19. व्यास, 20. राम, 21. बलराम, 22. कृष्ण, 23. बुद्ध और 24. कल्कि।*वैष्णव ग्रंथ : ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है। ईश्वर संहिता, पाद्मतन्त, विष्णु संहिता, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण आदि।*वैष्णव पर्व और व्रत : एकादशी, चातुर्मास, कार्तिक मास, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, होली, दीपावली आदि।*वैष्णव तीर्थ : बद्रीधाम (badrinath), मथुरा (mathura), अयोध्या (ayodhya), तिरुपति बालाजी, श्रीनाथ, द्वारकाधीश।*वैष्णव संस्कार : 1. वैष्णव मंदिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं। एकेश्वरवाद के प्रति कट्टर नहीं है। 2. इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं। 3. इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं। 4. ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं। 5. ये सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं। 6. जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं। 7. वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। 8. वैष्णव दाह-संस्कार की रीति है। 9. यह चंदन का तिलक खड़ा लगाते हैं। 10. वैष्णव साधु-संत : वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है।
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*शैव संप्रदाय के उप संप्रदाय : शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के 4 संप्रदाय बतलाए गए हैं- शैव, पाशुपत, कालदमन और कापालिक। शैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है। शिव का निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है।*शिव के अवतार : शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5.भैरव, 6.छिन्नमस्तक गिरिजा, 7.धूम्रवान, 8.बगलामुखी, 9.मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।शिव के अन्य 11 अवतार : 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10. चण्ड तथा 11. भव का उल्लेख मिलता है।इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।*शैव ग्रंथ : वेद का श्वेताश्वतरा उपनिषद (Svetashvatara Upanishad), शिव पुराण (Shiva Purana), आगम ग्रंथ (The Agamas) और तिरुमुराई (Tiru-murai- poems)।शैव व्रत और त्योहार : चतुर्दशी, श्रावण मास, शिवरात्रि, रुद्र जयंती, भैरव जयंती आदि।*शैव तीर्थ : 12 ज्योतिर्लिंगों में खास काशी (kashi), बनारस (Benaras), केदारनाथ (Kedarnath), सोमनाथ (Somnath), रामेश्वरम (Rameshvaram), चिदम्बरम (Chidambaram), अमरनाथ (Amarnath) और कैलाश मानसरोवर (kailash mansarovar)।*शैव संस्कार : 1. शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। 2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं। 3. इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। 4. इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। 5. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। 6. ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। 7. शैव चन्द्र पर आधारित व्रत-उपवास करते हैं। 8. शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। 9. शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। 10. ये भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।शैव साधु-संत : शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा जाता है।नोट : मान्यता है कि हिन्दू धर्म में आमजनों को अग्निदाह और साधुओं को समाधि दी जाती है। उक्त जानकारी आमजनों के समझने हेतु संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत की गई है। इसे पूर्ण न समझा जाए।
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शाक्त धर्म : मां पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर मां प्रकृति है। जहां भी सृजन की शक्ति है, वहां प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए मां को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।
शाक्त संप्रदाय को शैव संप्रदाय के अंतर्गत माना जाता है। शाक्तों का मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रैण है इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त संप्रदाय प्राचीन संप्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।
मां पार्वती : मां पार्वती का मूल नाम सती है। ये 'सती' शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। पुराणों के अनुसार सती के पिता का नाम दक्ष प्रजापति और माता का नाम मेनका है। पति का नाम शिव और पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हैं। यज्ञ में स्वाहा होने के बाद सती ने ही पार्वती के रूप में हिमालय के यहां जन्म लिया था।
इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मार्केण्डेय पुराण में मिलती है। उन्होंने विष्णु के साथ मिलकर मधु और कैटभ का भी वध किया था।
भैरव, गणेश और हनुमान : अकसर जिक्र होता है कि मां दुर्गा के साथ भगवान भैरव, गणेश और हनुमानजी हमेशा रहते हैं। प्राचीन दुर्गा मंदिरों में आपको भैरव और हनुमानजी की मूर्तियां अवश्य मिलेंगी। दरअसल, भगवान भैरव दुर्गा की सेना के सेनापति माने जाते हैं और उनके साथ हनुमानजी का होना इस बात का प्रमाण है कि राम के काल में ही पार्वती के शिव थे।
प्रमुख पर्व नवदुर्गा : मार्कण्डेय पुराण में परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों की रक्षार्थ बताया गया है। जो देवी की 9 मूर्तियांस्वरूप हैं जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।
धर्म ग्रंथ : शाक्त संप्रदाय में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है जिसमें 108 देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशती भी है।
शाक्त धर्म का उद्देश्य : सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त संप्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियां प्राप्त करते रहते हैं।
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वेदों को श्रुति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात जिस ज्ञान को परमेश्वर से सुनकर जाना गया। वेदों को छोड़कर सभी ग्रंथ स्मृति ग्रंथ कहलाते हैं अर्थात जिस ज्ञान को परंपरा के माध्यम से जाना या जिसे स्मृतियों के आधार पर जाना। अधिकतर लोग इस संप्रदाय का नाम शंकराचार्य से जोड़ते हैं। शंकराचार्य ने तो दसनामी संप्रदाय की स्थापना की थी, जो सभी शिव के उपासक शैव पंथ से हैं।
धर्मग्रंथ : सभी पुराण, स्मृतियां।
प्रमुख देवता : शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य एवं गणेश।
स्मृति ग्रंथों में मनु स्मृति सहित सभी स्मृतियां और पुराण आते हैं। वेदों को छोड़कर जो इन ग्रंथों पर आधारित जीवन-यापन करते हैं उनको स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है। जैसे जो विष्णु को भी माने और शिव को भी, दुर्गा को भी और अन्य देवी-देवताओं का भी पूजन करें, वे सभी स्मार्त संप्रदाय के हैं। अधिकतर हिन्दू स्मार्त संप्रदाय के ही हैं जिसमें एकनिष्ठता का अभाव है।
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वैदिक संप्रदाय : हालांकि सभी संप्रदाय का धर्मग्रंथ वेद ही है। सभी संप्रदाय वैदिक धर्म के अंतर्गत ही आते हैं लेकिन आजकल यहां भेद करना जरूर हो चला है, क्योंकि बीच-बीच में ब्रह्म समाज, आर्य समाज और इसी तरह के प्राचीनकालीन समाजों ने स्मृति ग्रंथों का विरोध किया है।
संत मत : भारत के संत मत को भी वैदिक संप्रदाय का माना जाता है जैसे कबीर, दादू आदि सभी एकेश्वरवाद पर ही जोर देते हैं।
वैदिक धर्म-कर्म पर आधारित हैं। इसमें एक परमेश्वर को ही सर्वोपरि शक्ति माना जाता है।