हिन्दू धर्म में सैंकड़ों त्योहार है। धनतेरस, दीपावली, होली, नवरात्रि, दशहरा, महाशिवरात्री, गणेश चतुर्थी, रक्षाबंधन, कृष्णजन्माष्टमी, करवां चौथ, रामनवमी, छठ, वसंत पंचमी, मकर संक्रांति, दुर्गा पूजा, भाईदूज, उगादि, ओणम, पोंगल, लोहड़ी, हनुमान जयंती, गोवर्धन पूजा, काली पूजा, विष्णु पूजा, कार्तिक पूर्णिमा, नरक चतुर्थी, रथ यात्रा, गौरी हब्बा उत्सव, महेश संक्रांति, हरतालिका तीज, थाईपुसम, श्राद्ध, कुंभ, ब्रह्मोत्सव, आदि।...लेकिन इनमें से कुछ त्योहार है, कुछ पर्व, कुछ व्रत, पूजा और कुछ उपवास। उक्त सभी में फर्क करना चाहिए।
हिंदू त्योहार कुछ खास ही हैं लेकिन भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीतिरिवाज हो चले हैं। यह लंबे काल और वंश परम्परा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिंदू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है। कुछ समाजों ने मांस और मदिरा के सेवन हेतु उत्सवों का निर्माण कर लिया है। रात्रि के सभी कर्मकांड निषेध माने गए हैं।
उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।
मकर संक्रांति : मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। लोग भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेने के लिए गंगा और प्रयाग जैसी पवित्र नदियों में डुबकियां लगाते हैं, पतंग उड़ाते हैं गाय को चारा खिलाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ खाने का महत्व है। जनवरी में मकर संक्रांति के अलावा शुक्ल पक्ष में बसंत पंचमी को भी मनाया जाता।
श्रावण मास : इसके अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवताओं के पर्व को मनाया जाता है उनमें शिव के लिए महाशिवरात्रि और श्रावण मास प्रमुख है और उनकी पत्नी पार्वती के लिए चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा शिव पुत्र भगवान गणेश के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व गणेशोत्सव का नाम से मनाया जाता है जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है।
कार्तिक मास : भगवान विष्णु के लिए कार्तिक मास नियुक्त है। इसके अलावा सभी एकादशी, चतुर्थी और ग्यारस को विष्णु के लिए उपवास रखा जाता है। देवोत्थान एकादशी उनमें प्रमुख है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत संपन्न होता है। इसी माह में विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के लिए दीपावली का त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है।
पुरुषोत्तम मास : इसे अधिक मास भी कहते हैं। धार्मिक शास्त्र और पुराणों के अनुसार हर तीसरे साल अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्ण, भगवद्गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह भर में उपासना करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है।
राम नवमी : यह त्योहार भगवान विष्णु के सातवें जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान श्रीराम जो चैत्र मास के नौवें दिन पैदा हुए थे। श्रीराम ने दानव राजा रावण को मारा था। यह त्योहार अप्रैल में आता है।
कृष्ण जन्माष्टमी : यह त्योहार कृष्ण जयंती और कृष्णाष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है, यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त में आता है।
हनुमान जयंती : पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान राम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था। इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस दिन का हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।
श्राद्ध-तर्पण : परमेश्वर, देवी-देवताओं के अलावा हिन्दू धर्म में पितृ पूजन नहीं, श्राद्ध करने का महत्व है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।
गुरुपूर्णिमा : परमेश्वर, देवी-देवता, पितर के अलावा हिन्दू धर्म में गुरु का भी महत्व है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।
त्योहार और मौसम का संबंध : वेदों में प्रकृति को ईश्वर का साक्षात रूप मानकर उसके हर रूप की वंदना की गई है। इसके अलावा आसमान के तारों और आकाश मंडल की स्तुति कर उनसे रोग और शोक को मिटाने की प्रार्थना की गई है। धरती और आकाश की प्रार्थना से हर तरह की सुख-समृद्धि पाई जा सकती है। इसीलिए ऋषियों ने प्रकृति अनुसार जीवन-यापन करने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने वर्ष में होने वाले ऋतु परिवर्तन चक्र को समझकर व्यक्ति को उस दौरान उपवास और उत्सव करने के नियम बनाए ताकि मौसम परिवर्तन के नुकसान से बचकर उसका लुत्फ उठाया जा सके।
वर्ष में 6 ऋतुएं होती हैं- 1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर। ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है।
वसंत से नववर्ष की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु चैत्र और वैशाख माह अर्थात मार्च-अप्रैल में, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ और आषाढ़ माह अर्थात मई जून में, वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्रपद अर्थात जुलाई से सितम्बर, शरद ऋतु अश्विन और कार्तिक माह अर्थात अक्टूबर से नवम्बर, हेमन्त ऋतु मार्गशीर्ष और पौष माह अर्थात दिसंबर से 15 जनवरी तक और शिशिर ऋतु माघ और फाल्गुन माह अर्थात 16 जनवरी से फरवरी अंत तक रहती है।
जिस तरह इन मौसम में प्रकृति में परिवर्तन होता है उसी तरह हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है। और, जिस तरह प्रकृति के तत्व जैसे वृक्ष-पहाड़, पशु-पक्षी आदि सभी उस दौरान प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयास करते हैं उसी तरह मानव को भी ऐसा करने की ऋषियों ने सलाह दी। उस दौरान ऋषियों ने ऐसे त्योहार और नियम बनाए जिनका कि पालन करने से व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत कर सके।
बसंत ऋतु : हिन्दू धर्म के पहले माह की शुरुआत चैत्र माह से होती है। प्राचीन समय से ही यह माह सभी सभ्यताओं में नववर्ष की शुरुआत का माह माना जाता है। चैत और बैसाख में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च और अप्रैल में रहती है।
इस ऋतु में होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, बसंत पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती और गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से रंगपंचमी और बसंत पंचमी जहां मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं वहीं नव-संवत्सर से नए वर्ष की शुरुआत होती है। इसके अलावा होली-धुलेंडी जहां भक्त प्रहलाद की याद में मनाई जाती हैं वहीं नवरात्रि मां दुर्गा का उत्सव है तो दूसरी ओर रामनवमी, हनुमान जयंती और बुद्ध पूर्णिमा के दिन दोनों ही महापुरुषों का जन्म हुआ था।
ग्रीष्म ऋतु : ज्येष्ठ और आषाढ़ 'ग्रीष्म ऋतु' के मास हैं। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणीमात्र के लिए कष्टकारी अवश्य है, पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार मई और जून में रहती है।
ग्रीष्म माह में अच्छा भोजन और बीच-बीच में व्रत करने का प्रचलन रहता है। इस माह में निर्जला एकादशी, वट सावित्री व्रत, शीतलाष्टमी, देवशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा आदि त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के बाद से श्रावण मास शुरू होता है और इसी से ऋतु परिवर्तन हो जाता है और वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है।
वर्षा ऋतु : श्रावण और भाद्रपद 'वर्षा ऋतु' के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है। मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। संपूर्ण श्रावण माह में उपवास रखा जाता है। यह माह उसी तरह है जिस तरह की मुस्लिमों में रोजों के लिए रमजान होता है। यह माह जुलाई-सितंबर में पड़ता है। इस ऋतु के तीज, रक्षाबंधन और कृष्ण जन्माष्टमी सबसे बड़े त्योहार हैं।
शरद ऋतु : आश्विन और कार्तिक के मास 'शरद ऋतु' के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृष्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रूप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखाई पड़ता है। यह ऋति अक्टूबर से नवंबर के बीच रहती है। इस ऋतु के त्योहार हैं- श्राद्ध पक्ष, नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ।
इस ऋतु में ही शारदीय नवरात्रि की धूम रहती है। जगह-जगह उत्सव का माहौल रहता है। इस ऋतु के अन्य व्रत और उत्सव- छठ पूजा, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, बैकुंठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा, उत्पन्ना एकादशी, विवाह पंचमी, स्कंद षष्ठी आदि व्रत-त्योहार भी आते हैं।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योग निद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत इसी ऋतु में संपन्न होता है।
हेमंत ऋतु : प्राचीनकाल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। यह दिसंबर से लगभग 15 जनवरी तक रहती है।
यह ऋतु हिन्दू माह के मार्गशीर्ष और पौष मास मास के बीच रहती है। इस ऋतु में शरीर प्राय: स्वस्थ रहता है। पाचनशक्ति बढ़ जाती है। हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ेंगे। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार पड़ेंगे, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होगा।
शिशिर ऋतु : यह ऋतु हिन्दू माह के माघ और फाल्गुन के महीने अर्थात पतझड़ माह में आती है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस ऋतु से ऋतु चक्र के पूर्ण होने का संकेत मिलता है और फिर से नववर्ष और नए जीवन की शुरुआत की सुगबुगाहट सुनाई देने लगती है।
अंग्रेजी माह अनुसार यह ऋतु 15 जनवरी से पूरे फरवरी माह तक रहती है। इस ऋतु में मकर संक्रांति का त्योहार आता है, जो हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होना शुरू होता है। इसी ऋतु में हिन्दू मास फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।