बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में 30 पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो और 27 यूरोपीय देशों वाले यूरोपीय संघ, दोनों के मुख्यालय हैं। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के ठीक एक महीने बाद रूस के प्रति अब उनकी साझी नीति क्या हो, इस पर विचार करने के लिए 25 मार्च को ब्रसेल्स में ही नाटो और यूरोपीय संघ के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार-प्रमुख एक शिखर सम्मेलन के लिए मिल बैठे। नाटो के महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग ने बहुत कम समय में इस आकस्मिक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन भी समय निकाल कर इस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे।
यूक्रेन को अपनी मुट्ठी में कसने की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेचैनी नाटो के भीतर इस चिंता को निरंतर बढ़ा रही है कि वे अपने सैनिकों को रासायनिक, जैविक या परमाणु हथियारों के उपयोग का भी आदेश दे सकते हैं। नाटो वाले देशों के नेताओं ने इस शिखर सम्मेलन के माध्यम से रूसी राष्ट्रपति को संदेश दिया कि "रासायनिक या जैविक हथियारों का कोई भी उपयोग अस्वीकार्य होगा और इसके बहुत ही गंभीर परिणाम होंगे।"
लेकिन, नाटो गठबंधन अपने आप को एक दुविधा में भी पाता है : यूक्रेन युद्ध में स्वयं कोई सैन्य हस्तक्षेप करने से वह अब तक बार-बार इन्कार करता रहा है। "हम यूक्रेन में रूस के खिलाफ नहीं लड़ेंगे," अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन बार-बार ज़ोर देकर कह चुके हैं। खुलकर यह भी कहते रहे हैं कि वे "तीसरे विश्व युद्ध" का जोखिम नहीं उठाना चाहते। बाइडन ने न केवल नाटो की बैठक में भाग लिया, बल्कि लगे हाथ ब्रसेल्स में ही G7 देशों और यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलनों में भी भाग लिया।
नाटो के महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग ने इस सैन्य संगठन के नेताओं से विचार-विमर्श के बाद इस बात पर तो बहुत ज़ोर दिया की कि नाटो, यूक्रेन में युद्ध के ऐसे किसी विस्तार को रोकना चाहता है, जो कहीं "अधिक खतरनाक और विनाशकारी" होगा। पर यह नहीं बताया कि यदि रूस ने युद्ध का अपनी तरफ़ से विस्तार किया, तो जिन "गंभीर परिणामों" की चेतावनी दी जा रही है, वे कैसे या कौन से परिणाम होंगे। नाटो के सदस्य देशों का कोई भी नेता यह नहीं बाताता कि किस तरह के "गंभीर परिणामों" की बात की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नीति के शब्दजाल में इसे "रणनीतिक अस्पष्टता" कहा जाता है। तात्पर्य होता है अपने विरोधी को इस तरह अंधेरे में रखो कि वह अनिश्चयता का शिकार बना रहे। विरोधी यदि अनिश्चयता में उलझा रहेगा, तो उसे मात देने या युद्ध को रोकने का कोई मौका भी शायद मिल जाएगा।
किंतु जर्मनी में 'हैम्बर्ग इंस्टीट्यूट फॉर पीस रिसर्च एंड सिक्योरिटी पॉलिसी' के सुरक्षा विशेषज्ञ उलरिश कून को संदेह है कि नाटो किसी आपात स्थिति में अहस्तक्षेप की अपनी नीति पर दृढ़ रहने में सक्षम सिद्ध होगा। वे कहते हैं: "यदि यूक्रेन से एक से एक वीभत्स तस्वीरें आती हैं या रूस रासायनिक हथियारों का उपयोग कर बैठता है, तो जनता की ओर से सरकारों पर 'कुछ न कुछ' करने का दबाव बढ़ता जाएगा। यह 'कुछ न कुछ' आनन-फ़ानन में उठाया गया कोई ऐसा क़दम भी हो सकता है, जिससे सारे किए-कराए पर पानी फिर जाए। तब रूस द्वारा परमाणु हथियारों के उपयोग को भी असंभव नहीं कहा जा सकेगा।
नाटो, रूसी सैनिकों द्वारा सामूहिक विनाश के हथियारों के इस्तेमाल को लेकर इतना अधिक चिंतित है कि उसने ऐसे हथियारों से बचाव के साधन देकर यूक्रेन की सहायता करने का फैसला किया है। ये साधन डिटेक्टर-उपकरणों, सुरक्षात्मक उपायों, चिकित्सा सहायता और संकटकाल में प्रबंधन-प्रशिक्षण के रूप में हो सकते हैं। नाटो के सदस्य देश परमाणु, जैविक व रासायनिक हथियारों (एबीसी हथियारों) के खिलाफ अपनी खुद की तैयारी भी बढ़ाएंगे। नाटो के रूस के पास वाले पूर्वी यूरोपीय हिस्से में बहुराष्ट्रीय सैनिक दस्तों को भी 'एबीसी' हथियारों से अपने बचाव की सुविधाओं से लैस किया जाएगा।
नाटो को डर है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का हर संभव बहाना ढूंढ रहे हैं। रूस का बार-बार यह दावा एक बहाना ही है कि यूक्रेन में जैविक हथियार विकसित किए जा रहे हैं। "हमने पहले देखा है कि दूसरों को दोष देने का यह तरीका वास्तव में वही काम खुद करने का बहाना बनाने का एक तरीका है," नाटो के महासचिव स्टोलटेनबर्ग ने कहा।
नाटो शिखर सम्मेलन की घोषणा में कहा गया है: "हम अपने गठबंधन की जनता और गठबंधन वाले भूक्षेत्र के हर इंच की सुरक्षा और बचाव के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना जारी रखेंगे।" साथ ही युद्ध को विस्तार देने वाली कोई पहल नहीं करेंगे। इसी कारण नाटो गठबंधन द्वारा यूक्रेन के अकाश को 'नो-फ्लाई ज़ोन' घोषित करने या वहां कोई शांति सेना तैनात करने जैसे सुझावों को भी ठुकरा दिया गया, क्योंकि इस का मतलब रूसी सैनिकों से सीधा टकराव होगा।
आलोचकों का कहना है कि ब्रसेल्स में हुए नाटो शिखर सम्मेलन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के इस कथन की ही पुष्टि की है कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन में जो चाहें सो करें, नाटो उन्हें रोकने नहीं आएगा। यही बात यदि 2014 में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्तोर यानुकोविच का तख्ता पलटे जाने के समय या उसके बाद इस तरह से कही गई होती कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बन सकता, तो आज यूक्रेन की वह दुर्दशा नहीं हो रही होती, जो इस समय हो रही है।
तब हमें आज रूस की ओर से किसी जैविक, रासायनिक या परमाणविक युद्ध की या तीसरे विश्वयुद्ध की बात भी नहीं करनी पड़ती। उस समय से लेकर फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमला होने तक, सारे पश्चिमी देश यही राग अलाप रहे थे कि यूरोप का "हर सार्वभौम स्वतंत्र देश नाटो का सदस्य बनने का अधिकारी है।" रूस के लिए इसका अर्थ था कि नाटो का मुखिया अमेरिका उसकी ड्योढ़ी पर अपने मिसाइल तैनात करना चाहता है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन इसे अपने देश के लिए स्थायी ख़तरा मान रहे थे, हर प्रकार से रोकना चाहते थे। इसे रोकने की चाह में आज वे स्वयं पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बन गए हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और 2010 तक डॉयचे वेले हिन्दी सेवा के प्रमुख रह चुके हैं)