डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
मचलती तमन्नाओं ने आजमाया भी होगा
बदलती रुत में ये अक्स शरमाया भी होगा
पलट के मिलेंगे अब भी रूठ जाने के बाद
लड़ते रहे पर प्यार कहीं छुपाया भी होगा
अंजाम-ए-वफ़ा हसीं हो यही दुआ मांगी थी
इन जज्बातों ने एहसास जगाया भी होगा
सोचना बेकार जाता रहा बेवजह के शोर में
तुम आए हो तो किसी ने बुलाया भी होगा
किस तरह अब आकर तुम से मिल जाऊं
तुझे हाल-ए-दिल किसी ने बताया भी होगा
छुप-छुप के सबसे, पढ़ता है कोई बार-बार
किताब में बारहा मेरा नाम आया भी होगा
ये उलझी हुई कहानी यूं बोल न पड़े 'राहत'
उसने मेरी याद का दिया जलाया भी होगा