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व्यापार 2010 : खुशियाँ ज्यादा, गम है कम

-नृपेंद्र गुप्ता

हमें फॉलो करें व्यापार 2010 : खुशियाँ ज्यादा, गम है कम
2010 की आगवानी करते समय आम आदमी की आँख में आँसू थे। दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में थी। बैंक दिवालिया हो रहे थे, कंपनियाँ घाटा पूरा करने में लगी थी, लोग रोजगार को लेकर परेशान थे और कुल मिलाकर खुशियाँ कम थी और गम ज्यादा। अवसाद के इन पलों में 2010 नया उजाला लेकर आया। आज जब 2010 विदा ले रहा है तो माहौल पिछले साल के ठीक उलट है। सबके चेहरों पर खुशी है। हालाँकि इस साल महँगाई का पारा भी चढ़ा रहा पर साथ ही बाजार में रौनक बरकरार रही।

ऐसा नहीं है कि इस बार कुछ भी नकारात्मक नहीं हुआ लेकिन राहत की बूँदों ने सब कुछ खुशनुमा बना दिया। टीस है उन घोटालों की जिन्होंने देश को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से नुकसान पहुँचाया।

महँगाई की मार, बिक्री भी अपार : 2010 में महँगाई ने अपने तेवर जमकर दिखाए। शक्कर, दाल जैसी आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दामों से सरकार परेशान नजर आई। साल के अंत में प्याज ने भी आम आदमी की आँख में आँसू ला दिए। उसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। आयात पर से प्रतिबंध हटाकर सरकार ने माँग और पूर्ति के अंतर को खत्म किया।

आरबीआई ने साल के अंत तक महँगाई पर काबू पाने का प्रयास भी चलता रहा और इसमें आंशिक सफलता भी मिली। कृषिमंत्री के बयानों ने महँगाई थामने के सरकारी प्रयासों को झटका दिया। अच्छे मानसून की वजह से किसानों के चेहरे खिल गए। बेहतर मानसून और बढ़ते रोजगार से लोगों की क्रय क्षमता बढ़ी और बाजार में इसका बाजार ने भी भरपूर फायदा उठाया।

आयात-निर्यात की बढ़ी रफ्तार : अप्रैल से सितंबर की छमाही के दौरान निर्यात 28 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 103.64 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। सितंबर में निर्यात 23.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 18.02 अरब डॉलर पर पहुँच गया, जो पिछले दो साल में किसी एक माह का सबसे ऊँचा आँकड़ा है। इससे ऐसा लग रहा है कि चालू वित्त वर्ष में 200 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा।

सितंबर में निर्यात की तुलना में आयात और भी ज्यादा तेजी से बढ़ा है। माह के दौरान आयात 26.1 फीसदी के इजाफे के साथ 27.14 अरब डॉलर पर पहुँच गया। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में अब तक आयात 29.9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 166.4 अरब डॉलर रहा है।

आर्थिक मंदी को कहा अलविदा : 2009 में दुनिया मंदी की चपेट थी, सब दूर हाहाकार मचा हुआ था लेकिन 2010 मानो एक नया संदेशा लेकर आया। दुनिया से मंदी छँटने लगी और भारत तथा चीन दुनिया को मंदी की गर्त से निकालने में सबसे आगे रहे। साल खत्म होते-होते तो देश का कार्पोरेट जगत पूरी तरह मंदी से बाहर आ चुका है। आज सारी दुनिया की नजर हम पर है। वे जानना चाहते हैं कि मंदी के दौर में जब बड़े-बड़े देश दिवालिया होने की कगार पर पहुँच गए तो हमने खुद को किस तरह मजबूती से थामे रखा। 2011 में हमें इसी फाइटिंग स्पिरीट के साथ बाजार में खड़े रहना है।

नए अवसर, नौकरियों की बहार : जैसे-जैसे मंदी का असर कम हो रहा है देश में नौकरियों की संख्या बढ़ रही है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि मंदी में पस्त हो चुके आईटी सेक्टर में जुलाई से सितंबर 2010 की अवधि में उतने ही कर्मचारियों की भर्ती की है जितनी कि वैश्विक वित्तीय संकट से पहले की जाती थी।

अन्य सेक्टरों में भी कर्मचारियों की माँग तेजी से बढ़ी है। निराशा के भँवर में डूबे नवप्रशिक्षित युवाओं में भी आशा का संचार हुआ। अब नौकरी पेशा वर्ग को नौकरी खोने का डर नहीं है और कंपनियाँ भी मंदी से सबक लेकर फिजुलखर्ची से बच रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी कई मंचों पर भारतीय प्रतिभा का लोहा माना। अधिकांश कंपनियाँ अपने पिछले वर्ष 2009 के घाटे को फायदे में बदलकर पुन: तरक्की के रास्ते पर चल पड़ी है। अगर 2007 को वैश्विक भर्ती का साल माना गया था संभावना जताई जा रही है कि आने वाला साल इस रिकॉर्ड को तोड़ सकता है।

चाँदी की चढ़ाई, सोना भी चमका : 2010 में चाँदी की चमक से निवेशकों की आँखें चौंधिया गई और यह रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाते हुए तेजी की हर सीमा पार कर गई। जनवरी में जहाँ चाँदी 27250 रु प्रतिकिलो थी वहीं साले के जाते जाते यह 46 हजार रु. प्रतिकिलो का आँकड़ा भी पार कर गई। पिछले साल की तरह इस साल भी सोने की की दौड़ ने निवेशकों पर अपना प्रभाव जमाए रखा।

साल की शुरुआत में सोना 16500 पर था और माना जा रहा था कि अब इसके दाम गिरेंगे लेकिन यह तमाम दावों को खोखला साबित करते हुए 21 हजारी हो गया है। दोनों धातुओं ने निवेशकों को नफे का आसमान दिखा दिया है। ये निवेशक अब दुआ करेंगे कि आने वाले वर्ष में वे इसी प्रकार चाँदी काटते रहे। हालाँकि इन मूल्यवान धातुओं के दाम बढ़ने के पीछे वायदा कारोबार है।

बढ़ता चला गया शेयर बाजार : 2009 में 8 हजार का आँकड़ा छूने के बाद निवेशकों में डर था कि जो थोड़े-बहुत पैसे उसने बचाए है कहीं वह बाजार की उथल-पुथल में गँवा न बैंठे। 2010 ने छोटे निवेशकों को फिर बाजार में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। सधी हुई चाल से सेंसेक्स ने साल भर में चार हजार अंकों की बढ़त प्राप्त की और दिवाली पर 21 हजारी का आँकड़ा एक बार फिर छूने में सफल रहा। निफ्टी भी सेंसेक्स के साथ-साथ पुन: 6 हजारी हुआ। 2009 में मंदी के कारण बाजार को झटका दे चुके एफडीआई एक बार फिर यहाँ शेयरों के खेल में शामिल हो चुके हैं। उम्मीद है इस बार सेबी की सर्तक आँखे छोटे निवेशकों का नुकसान नहीं होने देगी।

निवेश पर नजर : यह साल सेबी, एम्फी, इरडा आदि नियामक आयोगों की सख्ती के लिए भी जाना जाएगा। सेबी ने बाजार के उतार-चढ़ाव पर कड़ी नजर रखी। इसके लिए रोज 9 बजे से 15 मिनट का एक सेशन रखा जाता है और इसके बाद बाजार प्रारंभ होता है।

एम्फी ने म्यूचुअल फंड के सभी निवेशकों को 2011 से अपने पैन का ब्यौरा देना अनिवार्य कर दिया है। मनी लांडरिंग को रोकने के लिए यह नियम बहुत उपयोगी साबित होगा। इस समय, एक निवेशक को तभी पैन का ब्यौरा देना होता है जब उसका निवेश 50,000 रुपए या इससे अधिक हो। यद्यपि गैर व्यक्तिक निवेश को सभी निवेश राशि के लिए पैन का ब्यौरा देना होता है। इरडा ने भी यूलिप के नाम पर प्रलोभन देने वाली कंपनियों और उनके एजेंटों की जमकर खिचाईं की।

मोबाइल में 3जी क्रांति : मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए 3जी स्पेक्ट्रम नई सौगात लेकर आया। इस तकनीक ने आम आदमी को सपनों की दुनिया में पहुँचा दिया। मोबाइल उपभोक्ता को मानो मोबाइल में कंप्यूटर मिल गया तो सरकार के लिए भी यह फायदे का सौदा रहा। बीएसएनएल, एमटीएनएल तथा निजी क्षेत्र की भारती, वोडाफोन और रिलायंस कम्युनिकेशंस सहित कुल नौ दूरसंचार कंपनियों ने सरकार को 3जी स्पेक्ट्रम के लिए 67,719 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया।

सरकार ने 3जी स्पेक्ट्रम और ब्राडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) स्पेक्ट्रम की नीलामी से 35,000 करोड़ रुपए की राशि जुटने का अनुमान लगाया था, पर 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से ही सरकार को अनुमान से 33,000 करोड़ रुपए अधिक मिल गए हैं।

घोटालो का साल : 2010 को घोटालों का साल कहा जाए तो भी अतिश्यो‍क्ति नहीं होगी। देश में इस साल एक से बढ़कर एक घोटाले उजागर हुए। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, एलआईसी घोटाला, आईपीएल घोटाला, अनाज घोटाले ने देश को बुरी तरह प्रभावित किया।

इन घोटालों के माध्यम से हजारों करोड़ रुपयों का गबन किया गया। दूरसंचार मंत्री ए. राजा और भारतीय ओलिंपिक संघ के चेयरमैन सुरेश कल्माड़ी को अपने-अपने पदों से हाथ धोना पड़ा। आईपीएल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ललित मोदी पर भी गाज गिरी और उनके खिलाफ ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी किया गया। साल के अंत में उजागर हुए अनाज घोटाले को अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है।

यूलिप पर जंग : अप्रैल में शेयर बाजार नियामक सेबी और बीमा नियामक इरडा युलिप के मुद्दे पर उस समय आमने-सामने हो गए जब सेबी ने 14 बीमा कंपनियों को यूलिप जारी करने से रोक दिया। इन कंपनियों में एसबीआई लाइफ, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल और टाटा एआईजी जैसे दिग्गज नाम शामिल थे।

सेबी के इस निर्णय का इरडा ने जमकर विरोध किया और तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध समाप्त कर दिया। यूलिप पर अधिकारों को लेकर हुई इस जंग में आखिरकार इरडा की जीत हुई और सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि यूलिप बीमा उत्पाद है और इनका नियमन इरडा के अधिकार क्षेत्र में रहेगा।

पेट्रोल से नियंत्रण हटा : इस साल जून में सरकार ने पेट्रोल को नियंत्रणमुक्त कर तेल कंपनियों को राहत प्रदान की। सरकार को भी सब्सिडी से छुटकारा मिला। मुद्रास्फिति की बढ़ती दर पर लगाम कसने के प्रयासों को इससे तगड़ा झटका लगा। सड़क और हवाई यातायात महँगा हुआ। भाड़ा बढ़ने से वस्तुओं के दाम भी बढ़े। रिजर्व बैंक की सक्रियता ने हालाँकि पैसों की तरलता को बनाए रखा अन्यथा 2010 में महँगाई ने आम आदमी का जीवन दुष्वार कर ही दिया था।

पेट्रोल कंपनियों ने पिछले छह माह में पाँच बार दाम बढ़ाकर महँगाई पर नियंत्रण के सरकारी प्रयासों पर प्रभावित भी किया। इन कंपनियों ने डीजल को भी नियंत्रणमुक्त करने के लिए भी दबाव बनाया पर 2010 में ऐसा न हो सका। संभवत: 2011 में इस पर से भी सरकार का नियंत्रण समाप्त हो जाए।

भूख बढ़ी, सड़ा अनाज: देश में एक ओर गरीब भूख से मर रहा है और दूसरी सरकारी गोदामों में रखा अनाज सड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गरीबों को मुफ्त अनाज बाँटने के निर्देश के बाद भी सरकारी गोदामों में रखा अनाज गरीब तक न पहुँच सका। एक जुलाई 2010 तक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में 11,708 टन अनाज खराब हो गया है। एफसीआई गोदामों में पंजाब में सबसे अधिक 7,066 टन, पश्चिम बंगाल में 1,846 टन, गुजरात में 1,457 टन और बिहार में 485 टन अनाज खराब हुआ है। इसमें 2,486 टन गेहूँ, 9,141 टन चावल शामिल है।

मैक्सिको तेल रिसाव : मेक्सिको की खाड़ी में हुए तेल रिसाव ने दुनियाभर की नाक में दम कर दिया। इसमें लगभग दस करोड़ अमेरिकी डॉलर के नुकसान का आकलन किया गया। रिसाव को रोकने में 990 लाख डॉलर की लागत आई।

इसमें रिसाव को रोकने के लिए किए गए उपायों पर खर्च राशि, एक अलग से कुआँ को खोदना, खाड़ी देशों को दिया जाने वाला अनुदान, किए गए दावों का भुगतान और संघीय कर की राशि शामिल है। इस संकट ने मंदी से उभरने में लगे अमेरिका को तगड़ा झटका दिया। राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपना विदेश दौरा तक रद्द करना पड़ा लेकिन अंतत: अमेरिका की नाव भी इस साल पार लग ही गई। यह संकट तो टला ही साथ में उसे मंदी से भी छुटकारा मिल गया।

रुपए का मिला नया चिह्न : 2010 में अमेरिकी डॉलर, जापानी येन, ब्रिटिश पौंड, और यूरोपीय संघ के यूरो की तरह भारतीय रुपए को भी अपना चिह्न मिल गया है। इस चिह्न ने भारतीय मुद्रा की पहचान कायम की और यह भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी एवं मजबूती को रेखांकित करेगा।

आईआईटी के पोस्ट ग्रेजुएट डी उदय कुमार द्वारा डिजाइन किया गया यह चिह्न हिन्दी का अक्षर 'र' है, जिसमें एक समानान्तर लाइन और डाली गई है। यह अंग्रेजी के अक्षर 'आर' से भी काफी मिलता-जुलता है।

यूरोप की मंदी : आर्थिक मंदी ने इस बार यूरोप को अपना निशाना बनाया। मेक्सिको तेल रिसाव मामले में ब्रिटिश पेट्रोलियम की हालत पतली हो गई। उस पर अमेरिका ने भारी जुर्माना किया। कंपनी तेल रिसाव तो रोकने में कामयाब रही पर तब तक मंदी ने अपना नया ठिकाना ढूँढ लिया था। यूनान, स्पेन, पुर्तगाल और आयरलैंड खासी परेशानी में दिखे।

ग्रीस पर उसके जीडीपी का 114 परसेंट कर्ज हो गया। स्पेन, पुर्तगाल और आयरलैंड में भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हालाँकि संकट की घड़ी में यूरोपीय संघ ने इन देशों का साथ नहीं छोड़ा है और उम्मीद है कि इन देशों की अर्थव्यवस्था भी 2011 में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ लेगी।

चीन हुआ मजबूत : इस साल चीन जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। भारत चीन के व्यापारिक संबंधों में भी तेजी दर्ज की गई। साल के शुरुआती नौ महीनों में दोनों देशों के बीच 45.4 अरब डॉलर का द्वीपक्षीय व्यापार हुआ जो पिछले पूरे साल के कुल व्यापार से 2.2 अरब डॉलर अधिक है।

मुद्रा अवमूल्यन को लेकर अमेरिका और चीन में जमकर लड़ाई हुई। अमेरिका चाहता था कि चीन युआन की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसे पर चीन उसके लिए राजी न हुआ। हालाँकि अमेरिका को मंदी के भँवर से निकालने में चीन ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात को खुले दिल से स्वीकार भी किया।

इस तरह 2010 उद्योग जगत के लिए एक बेहतरीन साल रहा। महँगाई इस वर्ष चरम पर पहुँची पर दिसंबर आते-आते इसकी रफ्तार कम हो गई। आने वाले वर्ष में इस पर पुरी तरह कंट्रोल कर लिया जाएगा। यह वर्ष उम्मीद जता गया कि 2011 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर न सिर्फ बढ़ेगी बल्कि वह अर्थजगत में भी गुरु बनकर सबका मार्गदर्शन करेगा।

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