26 जनवरी गणतंत्र दिवस : लोकतंत्र इन 5 के बिना मनमानी तंत्र है

अनिरुद्ध जोशी
हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व है। हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। हम पहले से कहीं ज्यादा समझदार होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमें लोकतंत्र की अहमियत समझ में आने लगी है। सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही व्यक्ति खुलकर जी सकता है। स्वयं के व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और अपनी सभी महत्वाकांक्षाएं पूरी कर सकता है। गणतंत्र, लोकतंत्र या जनतंत्र सभी का मतलब होता है लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन। मतलब यह कि जनता द्वारा स्थापित शासन जो जनता के मूल अधिकारों की रक्षा करे। क्या है मूल अधिकार? आओ जानते हैं कि कोई गणतंत्र कब सफल गणतंत्र कहलाता है।
 
 
हर देश का संविधान अलग है किसी का राजशाही, किसी का लोकशाही, किसी का तानाशाही, किसी का साम्यवादी और किसी का धर्मिक कानून। सभी के पक्षधर आपको मिल जाएंगे, परंतु इनमें से सिर्फ लोकशाही एक एसा तंत्र है जहां व्यक्ति खुली सांस ले सकता है। दुनिया में राजशाही, तानाशाही, साम्यवाद, सभी को असफल होते हुए देखा है परंतु लोकतंत्र का असफल होना सबसे ज्यादा घातक सिद्धि होता है क्योंकि इसके बाद अराजकता का लंबा दौर चलता है। इसीलिए जरूरी है यह जानता की लोकतंत्र के लिए या गणतंत्र के लिए 5 खास बातें क्या जरूरी है। हालांकि विद्वान लोगों की नजर में तो और भी बहुत सारी मोटी मोटी बातें हो सकती है।
 
1. न्यायपालिका : गणतंत्र का सबसे मजबूत आधार है न्यायपालिका। इसका मजूबत, निष्पक्ष, निडर और स्वतंत्र होना बहुत जरूरी है। लोगों का यदि न्यायालय से भरोसा उठ जाता तो एक नए तरह का समाज निर्मित होने लगता है जो अपने फैसले खुद करने लगता है। यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। बिना भेदभाव के सभी के साथ न्याय हो यही लोकतंत्र की मांग है।
 
2. गुण तंत्र : गणतंत्र में गुणी नेताओं और नौकरशाहों का होना जरूरी है। कलेक्टर, इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिए व्यक्ति को बहुत कुछ पढ़ना, खपना और प्रतियोगी परीक्षाओं को फेस करना होता है परंतु एक नेता बनने के लिए समाज सेवा, देश सेवा करके कर्मवीर बनना होता है और जब एक नेता यह सब कार्य नहीं करके जुगाड़कर करके या साम, दाम, दंड से सत्ता में बैठ जाता है तो तब ऐसे अयोग्य नेता से लोकतंत्र को खतरा महसूस होने लगता है। यह शपथ तो लेते हैं कि मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को कायम रखूंगा परंतु क्या ये सभी नेता ऐसा करने में सक्षम हैं? प्राचीनकाल के हमारे संतों ने गुणतंत्र के आधार पर गणतंत्र की कल्पना की थी, लेकिन हमारे इस गणतंत्र में कोई अंगूठा टेक भी प्रधानमंत्री बनकर हमारी छाती पर मूंग दल सकता है। यह हालात किसी तानाशाही तंत्र से भी बुरे हैं।
 
3. फ्रीडम ऑफ स्पीच : फ्रीडम ऑफ स्पीच अर्थात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग की दुहाई देकर मीडिया या सोशल मीडिया को आजकल बहुत भला-बुरा कहा जाने लगा है। हालांकि यह कुछ हद तक सही भी है। इसे रोके जाने के उपाय ढूंढना चाहिए ना कि यह कहें कि सभी से बोलने की स्वतंत्रता छीन ली जाए। बहुत से लोग मानने लगे होंगे कि फ्रीडम ऑफ स्पीच की सीमाएं होना चाहिए या यह कि यह नहीं होना चाहिए। कई लोग प्रेस पर लगाम लगाने की बात भी करते हैं और कई लोग मानते हैं कि सोशल मीडिया पर बैन लगाया जाना चाहिए।
 
एक दौर था जबकि ईसाई जगत में कट्टरता फैली हुई थी। उस दौर में सबकुछ चर्च ही तय करता था। उस दौर में कोई भी व्यक्ति चर्च या राज्य के खिलाफ सच या झूठ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था। परंतु इस फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए कई लोगों को बलिदान देना पड़ा और तब जाकर ईसाई जगत को समझ में आया कि व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता, मानवाधिकार और मनुष्‍य के विचार की रक्षा कितनी जरूरी है। उन्होंने धर्म से ज्यादा मानवाधिकार और लोकतंत्र को महत्व दिया। इसीलिए वोटतंत्र नहीं गुणतंत्र हो।
 
4. व्यक्तिगत स्वंत्रता : लोकतंत्र या गणतंत्र इसीलिए है क्योंकि व्यक्ति स्वतंत्र है। व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता बहुत जरूरी है। कोई व्यक्ति किस तरह से जीना चाता है यह राज्य तय नहीं कर सकता। वह किसी भी धर्म का बनकर जी सकता है या नास्तिक बनकर भी मजे से जी सकता है। यह उसकी स्वतंत्रता है कि वह देश में कहीं भी रहकर अपना जीवन यापन कर सकता है। उसकी मर्जी की वह कैसे कपड़े पहने या कैसे नहीं। हां, व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता तभी तक जायज है जब तक की आप दूसरे की व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता में दखल ना दें। आप स्वतंत्र है समाज के विरुद्ध जाकर अपना जीवन यापन करने के लिए परंतु आपको समाज को डेमेज करने का काम नहीं दिया जा सकता। एक सामाजिक और सभ्य मनुष्य बने रहने के जो नियम है आपको उसका पालन तो करना ही होगा अन्यता व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता के नाम पर आप अराजक संस्कृति को ही जन्म देंगे। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
 
5. राष्ट्रीय सोच जरूरी : भीड़तंत्र के चलते कानून असफल हो रहे हैं। लोग, नेता, पुलिस और मीडिया मनमानी करने लगे हैं। फेक न्यूज का जमाना है। राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, वकीलों और माननीय उद्योगपतियों के हाथों में शक्ति है जिसका वे अच्छे और सभ्य तरीके से दुरुपयोग करना सीख गए हैं। वे सीधे-सीधे तानाशाह नहीं है, लेकिन अघोषित रूप से सब कुछ है। सभी मिलकर हवा का रुख बदलना अच्छी तरह जानते हैं, क्योंकि सभी जानते हैं कि भीड़ को जो समझा दिया जाएगा वह वे समझ जाएगी। भीड़ का तो दिमाग होता ही नहीं है। अभी नए तरह की भीड़ अस्तित्व में आई है जिसे सोशल मीडिया कहते हैं। धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रवाद और साम्यवाद तो सिर्फ शब्द भर हैं। ऊपर जाकर सभी की सोच मध्ययुगीन बन जाती है। मीडिया अब पुलिस, जज और वकीलों का काम भी करने लगी है। नेता अपने हित के लिए कुछ भी करने को तैयार है। चुनाव में लाखों रुपया खर्च होता है। जातियां ब्लैकमेल करने लगी है। सभी को चाहिए आरक्षण, सुविधा, धन, ऋण, शक्ति और पद।
 
लोकतंत्र को मजबूत बनाना है तो जरूरी है कि हम भीड़तंत्र और जातिवादी राजनीति और सोच से मुक्त हो। इसके लिए लोगों को समझना होगा कि जातिवाद हमारे लोकतंत्र के लिए कितना बड़ा खतरा है। किसी भी जाति, धर्म, संगठन या समाज का नेता आपको हांककर सड़क पर ले आता है और आपके दिमाग को एक भीड़ में बदल देता है। फिर उसे भीड़ की भावना को भड़काकर बहुत कुछ किया जा सकता है। सत्ता का खेल इसी तरह संचालित होता है, परंतु इससे आम आदमी का कभी हित नहीं हुआ है।
 
सोचे जरा इस पर : समझने वाली बात यह है कि लादी गई व्यस्था या तानाशाह कभी दुनिया में ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। माना कि लोकतंत्र की कई खामियां होती हैं, लेकिन तानाशाही या धार्मिक कानून की व्यवस्था व्यक्ति स्वतंत्रता का अधिकार छीन लेती है, यह हमने देखा है। जर्मन और अफगानिस्तान में क्या हुआ सभी जानते हैं। सोवियत संघ क्यों बिखर गया यह भी कहने की बात नहीं है।
 
सवाल यह है कि कब हम गणतंत्र की अहमियत समझेंगे? कब हम इसे गुणतंत्र में बदलेंगे? कब हम जातिवादी सोच से बाहर निकलकर एक राष्ट्रीय सोच को अपनाएंगे? वह दिन कब आएगा जबकि अच्छा काम करने वाले सत्तापक्ष को विपक्ष का समर्थन मिलेगा? वह दिन कब आएगा जबकि शिक्षा के बारे में जानने वाला ही शिक्षामंत्री और रक्षा के बारे में ज्ञान रखने वाला ही रक्षामंत्री बनेगा? निश्चित ही कभी तो 26 जनवरी जैसी गणतंत्र में भी सुहानी सुबह होगी।

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