Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

उड़ता गुजरात थर्राता थार

विकास की नई रफ्तार : पश्चिम भारत

हमें फॉलो करें उड़ता गुजरात थर्राता थार
प्रमोद शर्मा
NDND
यदि कहा जाए कि गुजरात अब जमीन के 40 फुट ऊपर चल रहा है, नहीं-नहीं! उड़ रहा है, तो सहसा कोई विश्वास नहीं करेगा। लेकिन आज भी देश के अन्य सूबों में जहाँ रोडों पर अधिकतम गति सीमा 40 किमी प्रतिघंटा हो, वहीं ऐसी स्थिति में यदि गुजरात एक्सप्रेस हाइवे पर 100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार की इजाजत देता है, तो यह उक्ति ठीक जान पड़ती है। यही कारण है कि गुजरात कामयाबी की नई मंजिलें तलाश रहा है। बंगाल ने नैनो को टाटा कहा तो गुजरात ने बिना देरी किए उसके लिए नैन बिछा दिए। उद्योगपति अनिल अंबानी यदि गुजरात के सीएम को देश की बागडोर संभालने के काबिल बताते हैं तो उनकी बात में दम लगता है।

उड़ने की बात इसलिए भी की जा सकती है क्योंकि बड़ौदा और अहमदाबाद के बीच एक्सप्रेस-वे पर करीब 90 किमी के मार्ग में कोई तीन दर्जन फ्लाई ओवर बने हैं। सूरत और बड़ौदा को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे नंबर 8 पर पड़ने वाले हरेक गाँव में फ्लाई ओवर निर्माण प्रक्रिया में हैं। सौराष्ट्र की पठारी जमीन पर केमिकल्स, ऑटो पार्ट्स, प्लास्टिक उत्पाद, इलेक्ट्रिकल्स-इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो मोबाइल, शुगर, टेक्सटाइल, डायमंड कटिंग समेत सैकड़ों फैक्टरियों के माध्यम से पैसों की जो फसल गुजरात उगा रहा है, उससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था को सहारा मिला है। जहाँ देश ऊर्जा के भीषण संकट का सामना कर रहा है, वहीं गुजरात इस मायने में आत्मनिर्भर है। सौराष्ट्र अब ई-बाइक का 'हब' भी बनने जा रहा है। पर्यटन विकास के लिए भी गुजरात ने भरपूर काम किया है।

एक ओर जहाँ महाराष्ट्र में राज ठाकरे उत्तरप्रदेश और बिहार के 'भैया लोगों' को सूबे के लिए खतरा बताते हैं, वहीं गुजरात की प्रगति में सबसे अहम योगदान यूपी, बिहार और उड़ीसा के लोगों का है। यदि 'डायमंड व सिल्क सिटी' सूरत की बात करें तो यहाँ की 40 लाख आबादी में से करीब 30 लाख लोग दूसरे प्रदेशों के हैं। दक्षिण गुजरात चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष केतनभाई शाह कहते हैं- ' गुजरात लोगों का उपयोग करना जानता है। दूसरे प्रदेशों को इससे सीख लेनी चाहिए।' हालाँकि वे इसके दूसरे पक्ष को भी उजागर करते हैं- ' बाहरी लोग होने के कारण उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बाहर चला जाता है, यदि यह सारा पैसा गुजरात में लग जाए तो आप विकास की गति की कल्पना भी नहीं कर पाएँगे।'

दूसरी ओर उत्तरी सीमा से सटे राजस्थान की तस्वीर एकदम जुदा नजर आती है। गुजरात की सीमा पार कर आप जैसे ही बाड़मेर की ओर चलेंगे, ऐसा लगेगा पश्चिम में 644 किलोमीटर के विशाल भू-भाग पर पसरे 'थार' ने कँटीले पेड़-झाड़ियों और रेतीले टीलों के बोर्ड टाँग दिए हों- वसंत का प्रवेश निषेध! मीलों तक सिर्फ रेतीले मैदान, जहाँ पक्षी भी दिखाई नहीं देते। कई मीलों बाद एकाध खेत दिख जाता है, जिसमें किसी किसान ने थार की चेतावनी को चुनौती देकर गेहूँ, जीरा, अरंडी या ईसबगोल बो दिया है। सिंचाई के लिए ट्यूबवेल का सहारा है, लेकिन वह कब तक पानी देगा, इसका कोई ठिकाना नहीं। स्वतंत्रता के 62 साल बाद भी राजस्थान सरकार "ढाणियों" और छोटे गाँवों में पीने का पानी पहुँचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। अभावों की कोई कमी नहीं फिर भी हार मानना तो राजस्थान की फितरत में नहीं है।

मरूधरा भले ही रूखी हो, लोगों के दिल उतने ही रसीले हैं। पानी भले ही वे दो-चार किलोमीटर दूर से लाएँ या फिर पैसे खर्च करके खरीदें, लेकिन अतिथि को वहाँ एक गिलास पानी देकर नहीं टरकाया जाता। पानी मिलेगा लोटा भर, पूरे स्नेह के साथ। गौरवशाली वीरता के अतीत से हिम्मत और पर्यटन के सहारे हस्तकला-कौशल के दम पर ही राजस्थान आगे बढ़ रहा है। राजस्थानी स्थापत्य कला, काष्ठ शिल्प, जरदोजी वर्क, चर्म शिल्प, मृत्तिका शिल्प की धाक पूरी दुनिया में है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi