एक असुर था तारकासुर। उसने कठोर तप किया। अन्न-जल त्याग दिया। उसकी इच्छा थी कि वह तीनों लोक में अजेय हो जाए। अजर हो जाए और अमर हो जाए। इसी उद्देश्य से उसने कठोर तप किया। ब्रह्मा जी ने साक्षात दर्शन दिए। पूछा-बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है। तारकासुर बोला- मुझे आप वरदान ही देना चाहते हैं तो यह दीजिए कि मेरी मृत्यु न हो। मैं अमर हो जाऊं। ब्रह्मा जी बोले- यह संभव नहीं। जो आया है, उसका अंत अवश्यंभावी है। तारकासुर ने कहा कि मुझे तो यही वरदान चाहिए। ब्रह्मा जी बिना वरदान के लौट गए। तारकासुर ने अपना तप जारी रखा। कुछ दिन बाद फिर ब्रह्मा जी आए। तारकासुर ने अपनी यही इच्छा दोहराई। इस तरह तीन बार यही हुआ। तारकासुर ने कुटिलता से विचार किया कि वह ऐसा वरदान मांगे, जिससे काम भी हो जाए और उस पर आंच भी न आए। ब्रह्मा जी से उसने कहा कि यदि उसकी मृत्यु हो तो शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न पुत्र के माध्यम से ही हो, अन्यथा नहीं।
उसने सोचा कि शंकरजी न विवाह करेंगे और न उनके पुत्र होगा तो वह अमर ही हो जाएगा। ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर चले गए। वरदान मिलने के बाद तारकासुर ने तीनों लोकों में आंतक मचा दिया। देवता परेशान। इंद्र परेशान। सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे। उधर माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप कर रही थीं। अत: भगवान शंकर ने लोकहित में पार्वती से विवाह किया। उनके पुत्र हुए कार्तिकेय।
कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। तारक कहते हैं नेत्रों को। असुर यानी बुरी प्रवृति। शंकर जी कहते हैं कि जिसने अपने नेत्रों को बस में कर लिया, वह मेरा हो गया। सावन मास शंकर जी को इसलिए प्रिय है क्यों कि इस महीने पार्वती से उनका मिलन हुआ था। तारकासुर का वध हुआ था। शंकर जी कहते हैं कि जो आया है, उसको अवश्य जाना है। कोई अमर नहीं है।