Krishnapingal Sankashti Chaturthi vrat katha:प्रत्येक माह 2 चतुर्धी आती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं। हर माह की चतुर्थी के नाम भी अलग होते है। जैसे आषाढ़ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। यह चतुर्थी 25 जून 2024 को रहेगी। आओ जानते हैं इसकी पौराणिक कथा क्या है।
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कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Krishnapingal Sankashti Chaturthi fasting story
इस चतुर्थी की कथा को भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कही थी। उन्होंने कहा कि हे कुन्तीपुत्र! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के गणेश जी का नाम लम्बोदर है। द्वापर युग में माहिष्मति नगरी में महीजित नामक राजा था। वह बड़ा प्रतापी और पुण्यवान था। वह प्रजा का पालन संतान की तरह करता था परंतु वह खुद सन्तानहीन था।
समय व्यतीत होता चला गया और राजा की आयु क्षीण होती गई। राजा वृद्ध हो गया, किन्तु उसे सन्तान न प्राप्त हुई। तदोपरान्त राजा ने विद्वान ब्राह्मणों, ज्ञानीजनों एवं प्रजा से इस विषय पर विचार-विमर्श किया। विद्वान् ब्राह्मणों और प्रजाओं ने कहा कि, "हे राजन! हम लोग वह सभी प्रयत्न करेंगे, जिससे आपके वंश की वृद्धि हो।" ऐसा कहकर सभी ब्राह्मण चले गए।
वन में प्रजा और ब्रह्मणों को एक मुनिश्रेष्ठ तपस्या में लीन नजर आए। उनका नाम लोमश ऋषि था। प्रजा एवं ज्ञानीजन त्रिकालदर्शी महर्षि लोमश के दर्शन करने लगे और उनका आदर सत्कार करने लगे। इसके बाद प्रजा ने कहा, "हे ऋषिवर! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए, अपने कष्ट के निवारण हेतु हम लोग आपके समक्ष आए हैं।
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महर्षि लोमश ने पूछा, "सज्जनों! आप लोग यहां किस कामना से उपस्थित हुए हैं?
प्रजाजनों ने उत्तर दिया, "हे मुनिवर! हम माहिष्मति नगरी के निवासी हैं। हमारे राजा का नाम महीजित है। वह राजा प्रजापालक है, परन्तु ऐसे उत्तम राजा को आज तक सन्तान प्राप्ति नहीं हुई है। हे महर्षि! आप कोई ऐसी युक्ति बताइए, जिससे राजा को सन्तान की प्राप्ति हो।
प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमश ने कहा, "हे प्रजाजनों! आप लोग ध्यानपूर्वक सुनो। मैं संकट नाशन व्रत का वर्णन कर रहा हूं। यह व्रत नि:सन्तान को सन्तान और निर्धनों को धन प्रदान करता है। आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को एकदन्त गजानन नामक गणेशजी की पूजा करें। पूर्वोक्त विधि से राजा व्रत करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र दान करें। गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।'
महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए। नतमस्तक होकर दण्डवत प्रणाम करके समस्त प्रजा जन नगर में लौट आए। प्रजाजनों ने वन में घटित सभी घटनाओं का वर्णन राजा के समक्ष किया।
प्रजाजनों की बात सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए तथा उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्रादि का दान दिया। बाद में रानी सुदक्षिणा को गणेश जी कृपा से सुन्दर एवं सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा, हे राजन! इस व्रत का ऐसा ही दिव्य प्रभाव हैं। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है, वह समस्त प्रकार के सांसारिक सुखों को भोगता है। हे महाराज! आप भी इस व्रत को विधिपूर्वक कीजिए। श्री गणेश जी की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। आपके सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश होगा तथा आपको अचल राज्य की प्राप्ति होगी।