• हनुमान जी की कथाएं हिन्दी में।
• शनिदेव से जुड़ी हनुमान जी की कथा।
• हनुमान और शनिदेव युद्ध की कहानी।
Hanuman and Shanidev war : यूं तो हनुमान जी की कई महान कथाएं हैं लेकिन हम आपको यहां बताने जा रहे हैं हनुमान जी और शनिदेव से जुड़ी कुछ कथाएं। भगवान शनि खुद को बहुत शक्तिशाली मानते थे और उन्हें इस बात का घमंड भी बहुत था, लेकिन जब हनुमान जी से हुआ उनका सामना तो क्या हुआ? यहां जानिए 5 रोचक कथाएं...
1. कहते हैं कि बचपन में शनिदेव अपने माता-पिता से रूठ कर घर से भाग जाते हैं और अपनी शक्ति के बल पर लोगों को परेशान करने लगते हैं। इस तरह शनिदेव एक गांव में इसलिए आग लगा देते हैं, क्योंकि उस गांव के लोग उन्हें पानी नहीं पीने देते हैं।
सभी गांव वाले शनिदेव को घेरकर मारने का प्रयास करते हैं तो हनुमान जी उन्हें बचा लेते हैं। लेकिन शनिदेव इस एहसान को नहीं मानते हैं और हनुमान जी से कहते हैं कि तुम्हें मेरे रास्ते में नहीं आना चाहिए था। हनुमान जी कहते हैं अब तुम सीधे अपने पिता के पास जाओ, लेकिन शनिदेव उनसे वाद-विवाद करने लगते हैं। फिर दोनों में गदा युद्ध होता है तब हनुमान जी उन्हें अपनी पूंछ में लपेटकर उनके पिता के पास ले जाकर छोड़ देते हैं।
2. शनिदेव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी तो वे उनसे युद्ध करने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस समय हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन थे। तभी अपने बल के घमंड में चूर शनिदेव आ पहुंचे और उन्होंने हनुमान जी की रामभक्ति में विघ्न डाला और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।
इसके बाद मजबूर होकर हनुमान जी को उनसे युद्ध करना पड़ा और फिर उन्होंने शनिदेव को अपनी पूंछ में बांध लिया और रामभक्ति में लीन हो गए। शनिदेव ने बहुत प्रार्थना की तब उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया और फिर घायल शनिदेव को देखकर हनुमान जी को दया आ गई तो उन्होंने पीड़ा से मुक्त करने के लिए उनके घावों के लिए सरसों का तेल दिया, जिसे लगाकर शनिदेव को आराम मिला।
3. एक बार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया। जब तक हनुमान जी लंका नहीं पहुचें तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे। जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान शनिदेव जेल में कैद मिले।
हनुमान जी ने तब शनि भगवान को कैद से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद उन्होंने हनुमान जी का धन्यवाद दिया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन दिया।
4. गुजरात के भावनगर में स्थित सारंगपुर गांव में कष्टभंजन हनुमान मंदिर अकेला ऐसा मंदिर हैं, जहां बजरंगबली के पैर के नीचे शनिदेव बैठे हैं। खास बात तो यह है कि यहां शनिदेव नारी रूप में विराजे हैं। यहां कि कथा के अनुसार एक बार शनिदेव का धरती पर कोप इतना बढ़ गया कि सभी परेशान होने लगे। तब लोगों ने हनुमान जी की शरण ली। सभी ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु हमें बचाएं।
हनुमान जी को जब यह ज्ञात हुआ कि शनि उनके भक्तों को परेशान कर रहे हैं तो वह क्रोधित हो गए। क्रोध में उन्होंने अपनी गदा उठाई और गदा लेकर शनिदेव को खोजते लगे। शनिदेव को जब इस बात को पता चला तो वे घबरा गए और समझ गए कि अब तो मुझे कोई नहीं बचा सकता। उन्हें छुपने का और कोई उपाय समझ में नहीं आया तो, उनसे बचने के लिए शनिदेव ने तुरंत ही स्त्री रूप धारण कर लिया।
शनिदेव जानते थे कि हनुमान ब्रह्मचारी है और वो कभी किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठा सकते। इसलिए वे स्त्री रूप धारण करके उनके चरणों में बैठ गए और हनुमान जी के समक्ष क्षमा याचना करने लगे। हनुमान जी नारीरूप शनि पर हाथ नहीं उठाते थे, इसलिए उन्होंने शनि देव को क्षमा कर दिया। तभी से वे वहां उनके चरणों में बैठे हैं।
5. मान्यता अनुसार एक बार शनिदेव हनुमान जी के पास आते हैं और कहते हैं कि मैं आपको सावधान करने आया हूं कि कृष्ण लीला के समापन के बाद कलियुग का प्रारंभ हो चुका है। इस कलियुग में देवता धरती पर नहीं रह सकते, क्योंकि जो भी धरती पर है उस पर मेरी साढ़ेसाती का असर होगा। इसलिए आप पर भी इसका प्रभाव प्रारंभ होने वाला है।
इस पर हनुमान जी कहते हैं जो भी देवता या मनुष्य राम की शरण में रहता है उस पर तो काल का भी प्रभाव नहीं रहता। इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और जाइए। इस पर शनिदेव कहते हैं कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान के आगे विवश हूं। आपके ऊपर मेरी साढ़ेसाती अभी से प्रभावी हो रही है। इसलिए आज और अभी मैं शरीर पर आ रहा हूं, इसे कोई टाल नहीं सकता।
तब हनुमान जी कहते हैं- ठीक है आ जाइए। परंतु ये बताइएं कि मेरे शरीर पर कहां आ रहे हैं तो इस पर शनिदेव बड़े गर्व से कहते हैं कि ढाई साल आपके सिर पर बैठकर आपकी बुद्धि को विचलित करूंगा, अगले ढाई साल पेट में रहकर आपके शरीर को अस्वस्थ करूंगा और अंतिम ढाई साल पैर पर रहकर आपको भटकाता रहूंगा।
इतना कहकर शनिदेव हनुमान जी के माथे पर बैठ गए। माथे पर बैठते ही हनुमान जी को खुजली आई तो उन्होंने एक पर्वत उठाकर अपने माथे पर रख लिया। तब उस पर्वत से दबकर घबरा कर शनिदेव बोले कि ये क्या कर रहे हो आप? यह सुनकर हनुमान जी ने कहा कि आप अपना काम कीजिए, मुझे मेरा काम करने दीजिए। मैं अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं इसी प्रकार खुजली मिटाता हूं।
ऐसा कहकर हनुमान जी एक और पर्वत अपने सिर पर रख लेते हैं। जिससे शनिदेव और दब जाते हैं और हैरान-परेशान होकर कहते हैं आप इन पर्वतों को उतारिएं, मैं समझौता करने के लिए तैयार हूं। हनुमान जी कुछ नहीं सुनते हैं और तीसरा बड़ा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख देते हैं।
इस बोझ से शनिदेव चिल्लाने लगते हैं और कहते हैं- मुझे छोड़ दो, मैं आपके कभी नजदीक भी नहीं आऊंगा। लेकिन फिर भी हनुमान जी उनकी पुकार को सुना-अनसुना करके चौथा पर्वत रख देते हैं तब शनिदेव 'त्राहिमाम त्राहिमाम' करते हुए हनुमान जी से प्रार्थना करते हैं- मैं आप तो क्या आपके भक्तों के भी समीप भी कभी नहीं आऊंगा, कृपया करके मुझे छोड़ दें।... यह सुनकर हनुमान जी शनिदेव को पीड़ा से मुक्त कर देते हैं।
जय हनुमान।
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