Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

गुरुवार के व्रत से मिलता है यह लाभ, पढ़िए इसकी पौराणिक कथा

हमें फॉलो करें गुरुवार के व्रत से मिलता है यह लाभ, पढ़िए इसकी पौराणिक कथा
बृहस्पतिवार (गुरुवार) व्रत का महत्व : गुरुवार का व्रत बड़ा ही फलदायी माना जाता है। गुरुवार के दिन श्री हरि विष्णुजी की पूजा का विधान है। कई लोग बृहस्पतिदेव और केले के पेड़ की भी पूजा करते हैं। बृहस्पतिदेव को बुद्धि का कारक माना जाता है। केले के पेड़ को हिन्दू धर्मानुसार बेहद पवित्र माना जाता है। बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। 
 
कैसे करें पूजन :अग्नि पुराण के अनुसार गुरुवार का व्रत अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से आरंभ करके लगातार 7 गुरुवार करना चाहिए। इस दिन प्रात: उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। बृहस्पतिदेव का ध्यान करना चाहिए। इस दिन पीले वस्त्रों, पीले फलों का प्रयोग करना चाहिए। 
 
इसके बाद फल, फूल, पीले वस्त्रों से भगवान बृहस्पतिदेव और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद कथा सुननी चाहिए। प्रसाद के रूप में केले चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन इन केलों को दान में ही दे देना चाहिए। शाम के समय बृहस्पतिवार की कथा सुननी चाहिए और मान्यतानुसार इस दिन एक बार बिना नमक का पीला भोजन करना चाहिए। भोजन में चने की दाल का भी प्रयोग किया जा सकता है।
 
 
बृहस्पतिवार व्रत कथा: प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी। 
 
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती। 
 
बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं।

 
तब बृहस्पतिदेव बोले 'यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए। 
 
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
 
 
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पतिदेव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले 'हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?'
 
तब व्यापारी बोला 'हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।' इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पतिदेव बोले 'देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।'

 
साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला 'महाराज। मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं।' इस पर साधु जी बोले 'तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।'
 
उसने लकड़ियां काटीं और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया। 
 
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोज करने गया। लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे, अत: उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया। जब वे दोनों लौटकर आए तब रानी ने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है।

रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर दिया गया। कैद में पड़कर दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहां उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया। बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।

 
बृहस्पतिवार को कैदखाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकार गुड़ और चने लाने को कहा। इसपर वह स्त्री बोली 'मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं, मेरे पास समय नहीं है।' इतना कहकर वह चली गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली, व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा कि हे बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड़-चना ला दो। 
 
बृहस्पतिदेव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली 'भाई, मैं तुम्हें अभी गुड़-चना लाकर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी लेकिन मैं पहले तुम्हारा काम करूंगी, उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफन लाऊंगी।'
 
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़-चना ले आई और स्वयं भी बृहस्पतिदेव की कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर अपने घर गई। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को 'राम नाम सत्य है' कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री बोली 'मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो।' अपने पुत्र का मुख देखकर उस स्त्री ने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया। 
 
पहली स्त्री जिसने बृहस्पतिदेव का निरादर किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी कि वह घोड़ी से गिरकर मर गया। यह देख स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देव से क्षमा याचना करने लगी। 
 
उस स्त्री की याचना से बृहस्पतिदेव साधु वेश में वहां पहुंचकर कहने लगे 'देवी। तुम्हें अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। यह बृहस्पतिदेव का अनादार करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कथा सुनो, तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।'

 
जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कथा सुनी। कथा के उपरांत वह प्रसाद और चरणामृत लेकर अपने घर वापस गई। घर आकर उसने चरणामृत अपने मृत पुत्र के मुख में डाला। चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र भी जीवित हो उठा। उसी रात बृहस्पतिदेव राजा के सपने में आए और बोले 'हे राजन। तूने जिस व्यापारी और उसके पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिलकुल निर्दोष हैं। तुम्हारी रानी का हार वहीं खूंटी पर टंगा है।'

 
दिन निकला तो राजा रानी ने हार खूंटी पर लटका हुआ देखा। राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाकर दहेज़ में हीरे-जवाहरात दिए। 
 
कथा का लाभ : यह व्रत अत्यंत फलदायी है। गुरुवार को व्रत-उपवास करके यह कथा पढ़ने से बृहस्पति देवता प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से व्रत आरंभ करके 7 गुरुवार उपवास करने से बृहस्पति ग्रह की हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है। 
 
गुरुवार का व्रत पूरे श्रद्धाभाव से करने पर व्यक्ति को गुरु ग्रह का दोष खत्म हो जाता है तथा गुरु कृपा प्राप्त होती है। इन दिन व्रत करने से व्यक्ति को सारे सुखों की प्राप्ति होती है। 
 
इस बात का रखें ध्यान : व्रत करने वाले जातक को यह ध्यान रखना चाहिए कि इस दिन बाल न कटाएं और ना ही दाढ़ी बनवाएं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अमरनाथ यात्रा को सकुशल संपन्न करवाने के लिए CRPF के जिम्मे है अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा