भारतीय धर्म और संस्कृति में हाथी का बहुत ही महत्व है। हाथी को पूज्जनीय माना गया है। हिन्दू धर्म में अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजाविधि व्रत रखा जाता है। इसके अलावा गजेंद्र मोक्ष कथा का वर्णन भी मिलता है। आओ जानते हैं हाथी के संबंध में 5 पौराणिक वर्णन।
1. ऐरावत : इंद्र के पास ऐरावत नामक हाथी है जिसकी वे सवारी करते हैं। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से 5वां रत्न था। ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है।
मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। इसीलिए इसका 'इंद्रहस्ति' अथवा 'इंद्रकुंजर' नाम भी पड़ा।चार दांतों वाला सफेद हाथी मिलना अब मुश्किल है। महाभारत, भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा। हालांकि उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा।
2. गजेंद्र : गजेंद्र मोक्ष की कथा का वर्ण श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है। कहते हैं कि क्षीरसागर में त्रिकुट पर्वत के घने जंगल में बहुत से हाथियों के साथ ही हाथियों का मुखिया गजेंद्र नामक हाथी भी रहता था। एक दिन धूप के कारण उसे बड़े जोर की प्यास लगी। तब वह समूह से साथ ही पास के सरोवर से पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने लगा। उसी समय एक बलवान मगरमच्छ ने उसका पैर अपने जबड़े में पकड़ लिया और उसे अंदर खींचने लगा।
गजेंद्र ने पूरी शक्ति लगा दी लेकिन वह उसके पैर को छुड़ा नहीं पाया। उसके साथियों ने भी उसका बहुत सहयोग किया लेकिन वह सभी असफल रहे। जब गजेंद्र ने खुद को मृत्यु के निकट पाया और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तो उसने द्रवित होकर प्रभु को पुकारा। वह आर्तनाद करते हुए श्रीहरि की स्तुति करने लगा। इस स्तुति को सुनकर श्रीहरि ने आकर उसकी जान बचाई।
कहते हैं कि यह गजेंद्र अपने पूर्व जन्म में इंद्रद्युम्न नाम का राजा था जो द्रविड़ देश का पांड्यवंशी राजा था। इस जन्म में इसने प्रभु की अपार भक्ति की थी। एक दिन यह राजपाट और घर को छोड़कर वन में तपस्या के लिए चले गए। अगस्त्य मुनि वहां से गुजरे और उन्होंने देखा कि यह राजा अपनी प्रजा और परिवार के प्रति कर्तव्यों को छोड़कर यहां तप कर रहा है। क्रोध में आकर उन्होंने राजा को श्राप दे दिया कि जा तू हाथी की योनि को प्राप्त करेगा। वह हाथी हो गया लेकिन भगवान की आराधना के चलते उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृति थी। उसने संकट के समय हरि को पुकारा और हरि ने उसका उद्दार किया। कहते हैं कि गजेंद्र को जिस मगरमच्छ ने पकड़ा था वह अपने पूर्वजन्म में हूहू नामक का गंधर्व था। एक बार इसने देवल ऋषि को डाराने के लिए जल में छुपकर उसना पैर पकड़ लिया था जिसके चलते ऋषि ने इसे श्राप दे दिया कि जा तू मगरमच्छ हो जा।
3. भगवान शंकर बने हाथी : पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनिदेव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे और कहने लगे प्रभु में कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। यह सुनकर भगवान शंकर घबरा गए और बोले आप कब तक अपनी अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे? शनिदेव बोले, ' प्रभु! कल सवा प्रहर तक के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी।
शनिदेव के वहां से चले जाने के बाद भगवान शंकर शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे। तब उन्होंने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। सवा प्रहर तक का समय व्यतीत हो जाने के बाद भगवान शंकर ने सोचा कि अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे, उन्होंने वहां शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले, आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। यह सुनकर शनिदेव मुस्कराकर बोले, प्रभु! मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देवयोनी को छोड़कर पशुयोनी में जाना पड़ा। इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए।
4. गणेश : गणेशजी को द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। इन गणेशजी की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा।
5. अन्य वर्णन : हाथी को दुनिया के सभी धर्मों में पवित्र प्राणी माना गया है। भारत में अधिकतर मंदिरों के बाहर हाथी की प्रतीमा लगाई जाती है। वास्तु और ज्योतिष के अनुसार भारतीय घरों में भी चांदी, पीतल और लकड़ी का हाथी रखने का प्रचलन है।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन में हाथियों में ऐरावत हूं। इसके अलावा हिंदुस्तान में प्राचीनकाल से ही राजा लोग अपनी सेना में हाथियों को शामिल करते आएं हैं। प्राचीन समय में राजाओं के पास हाथियों की भी बड़ी बड़ी सेनाएं रहती थीं जो शत्रु के दल में घुसकर भयंकर संहार करती थीं।