पांडवों द्वारा जुए में अपना राजपाट हार जाने के बाद श्रीकृष्ण से पूछा था कि दोबारा राजपाट प्राप्त हो और इस कष्ट से छुटकारा मिले इसका उपाय बताएं। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा था कि तुम लोगों ने जुआ खेला थे जिसके दोष के चलते तुम्हें यह सब भुगतना पड़ा। इस दोष और कष्ट से छुटकारा पाने और पुन: राजपाट प्राप्त करने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें सपरिवार सहित अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात फिरे थे।
श्रीकृष्ण ने सुनाई थी अनंत चतुर्दशी की कथा (anant chaturdashi katha in hindi) :
श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक तपस्वी ऋषि रहता था और उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की सुशीला नाम की एक सुशील पुत्री थी। सुशीला थोड़ी बड़ी हुई तो मां दीक्षा का स्वर्गवास हो गया। अब सुमंत ने बच्ची के लालन-पालन की चिंता के चलते दूसरा विवाह कर लिया। उसकी दूसरी पत्नी का नाम कर्कशा था। दूसरी पत्नी सचम में भी कर्कशा ही थी।
पुत्री सुशीला जब बड़ी हुई तो उसका विवाह कौंडिन्य नाम के ऋषि से कर दिया। विदाई के समय सुशीला की सौतेली मां कर्कशा ने कुछ ईंट और पत्थर बांधकर दामाद कौंडिन्य को दिए। दामाद को कर्कशा का ये व्यवहार बहुत बुरा लगा। वे दु:खी होकर अपनी पत्नी के साथ चल दिए।
रात में ऋषि कौंडिन्य एक नदी के किनारे रुककर संध्या वंदन करने लगे। इसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला ने उत्सुकता से उन महिलाओं से पूछा कि आप किस देव की पूजा कर रही हैं। महिलाओं ने कहा कि हम भगवान अन्नत कर रही हैं। सुशीला को उन महिलाओं ने इस पूजा और व्रत का महत्व भी बताया। यह सुनकर सुशीला ने भी उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया और 14 गांठों वाला सूत्र बांधकर कौंडिन्य के पास आ गई।
कौंडिन्य ऋषि ने सुशीला के बाजू पर बंधे अंनत सूत्र को जादू टोना समझकर उसे उतारकर फेंक दिया और वे वहां से अपने घर चले गए। जिसके बाद से ही कौंडिन्य ऋषि के संकट के दिन शुरु हो गए। धीरे-धीरे उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वे दरिद्र होकर दु:खी रहने लगे। इस दरिद्रता का कारण जब उन्होंने सुशीला से पूछा तो उन्होंने अन्नत भगवान का डोरा जलाने की बात कही और बताया कि अनंत भगवान तो भगवान विष्णु का ही रूप हैं।
यह सुनकर ऋषि को घोर पश्च्याताप हुआ और वे अन्नत डोर की प्राप्ति के लिए वन की ओर चल दिए। कई दिनों तक वन में ढूंढने के बाद भी जब उन्हें अन्नत सूत्र नहीं मिला, तो वे निराश होकर भूमि पर गिर पड़े। उस ऋषि की यह दशा देखकर भगवान विष्णु प्रकट होकर बोले, 'हे कौंडिन्य', मैं तुम्हें द्वार किए गए पश्च्याताप से प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर अन्नत व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने पर धीरे धीरे तुम्हारा दु:ख दूर हो जाएगा। तुम्हें धन-धान्य से पूर्ण हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे कलेशों से मुक्ति मिल गई।