धार्मिक और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य सभी ग्रहों एवं नक्षत्र मंडल के अधिष्ठाता माने जाते हैं। हर दिन सुबह के समय सूर्य नमस्कार करने से मनुष्य निरोगी और सामर्थ्यवान बनता है। सूर्यदेव वैभव देनेवाले, कार्यक्षमता बढ़ाने वाले, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व देने वाले तथा पुर्ण आयु देने वाले देवता भी माने जाते हैं।
हर दिन की अच्छी शुरुआत करने के लिए सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) सबसे अच्छा व्यायाम माना गया है। इसे आप अपने घर के हॉल, लॉन, खुली छत या बगीचे में भी कर सकते हैं। अभी कोरोना संक्रमण चारों ओर फैला हुआ है, ऐसे समय में आप घर पर रहकर ही सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) करेंगे तो अपने स्वस्थ जीवन शैली के ज्यादा अच्छा रहेगा।
सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना हुआ है। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में 12 स्थितियों को क्रम से दोहराया जाता है तथा इन 12 स्थितियों के अनुसार इसके अलग-अलग लाभ होते हैं। सूर्य नमस्कार हमेशा सुबह शौच के बाद पूर्व दिशा में मुख करके ही करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar Information) करते समय शरीर की प्रत्येक क्रिया को ध्यानपूर्वक व आराम से करना चाहिए। अगर आपको इसका ज्ञान नहीं है, तो बेहतर होगा कि आप पहले किसी योग विशेषज्ञ के निर्देशानुसार इसे करें। यह भी ध्यान रखें कि जिन्हें सर्वाइकल या स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम हैं तो वे रोगी सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थिति की क्रिया को ना करें। सूर्य नमस्कार किन 12 स्थितियों में किया जाता है, आइए जानें-
सूर्य नमस्कार सरल विधि- Surya Namskar ki Vidhi
1. सूर्य नमस्कार शुरू करने से पहले एक योगा मैट बिछा लें। अगर आपके पास योगा मैट नहीं हो तो आप मोटी दरी या चादर ले सकते हैं। अब उस पर दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
2. श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
3. तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
4. इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएं। मुखाकृति सामान्य रखें।
5. श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितंबो को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
6. श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दंडवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितंबों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
7. इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
8. पुन: यह क्रिया पांचवीं स्थिति के समान ही करें।
9. तत्पश्चात यह क्रिया चौथी स्थिति के समान करें।
10. फिर यह क्रिया तीसरी स्थिति के समान अपनाएं।
11. पुन: यह क्रिया दूसरी स्थिति के समान करें।
12. सूर्य नमस्कार को पूर्ण चक्र में 12 स्थितियों को क्रम से दोहराया जाता है, यानी बारहवीं क्रिया पहली स्थिति की भांति होगी तथा सूर्य नमस्कार की क्रिया पूर्ण हो जाएगी।