Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ललितादेवी मंदिर : प्रयागराज उत्तरप्रदेश में स्थित है यह चमत्कारी 19वां शक्तिपीठ

हमें फॉलो करें ललितादेवी मंदिर : प्रयागराज उत्तरप्रदेश में स्थित है यह चमत्कारी 19वां शक्तिपीठ
, शुक्रवार, 30 सितम्बर 2022 (11:46 IST)
Lalita Panchami 2022 Date: आश्‍विन शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ललिता पंचमी का पर्व मनाया जाता है। ललिता देवी को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है, जिन्हें राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है। माता के दो शक्तिपीठ हैं एक त्रिपुरा में और दूसरा प्रयागराज में।
 
 
प्रयाग का शक्तिपीठ : भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के प्रयागराज (इलाहबाद) के संगम तट पर माता की हाथ की अंगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं। प्रयागराज में तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है और तीनों ही मंदिर प्रयाग शक्तिपीठ की शक्ति 'ललिता' के हैं। माना जाता है कि माता की अंगुलियां 'अक्षयवट', 'मीरापुर' और 'अलोपी' स्थानों पर गिरी थीं। अक्षयवट किले में 'कल्याणी-ललिता देवी मंदिर' के समीप ही 'ललितेश्वर महादेव' का भी मंदिर है। मत्स्यपुराण में वर्णित 108 शक्तिपीठों में यहां की देवी का नाम 'ललिता' दिया गया है।
webdunia
त्रिपुरा का शक्तिपीठ : भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण 'पाद' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं।
 
पुराण में वर्णन : देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब भगवान द्वारा छोडे गए चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है। तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महाष्टमी पर किस समय करें हवन, जानिए सबसे शुभ मुहूर्त