History of gyanvapi masjid mosque: कहते हैं कि काशी में विश्वनाथ के एक बहुत ही विशालकाय मंदिर था। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। इसका पौराणिक उल्लेख मिलता है।
कैसे बनी ज्ञानवापी मस्जिद?: इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा लूटने के बाद तुड़वा दिया गया था। इस मंदिर को स्थानीय लोगों ने मिलकर फिर से बनाया था परंतु सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से 1585 में मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां के आदेश से फिर तोड़ दिया गया। फिर से इस मंदिर को बना दिया गया लेकिन इसके बाद 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाने का आदेश दिया। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस बचे हुए मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। वर्तमान में ज्ञानवापी मंडप पर मस्जिद बनी होने का दावा किया जाता है और विशालकाय नंदी उस मस्जिद की दीवार की ओर मुख करके आज भी परिसर में स्थित है। वादियों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान, आदि विश्वेश्वर, नंदीजी और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं।