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चार धाम यात्रा में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में सबसे पहले कहां जाएं, जानिए यात्रा का रूट

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 22 अप्रैल 2025 (11:59 IST)
उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा होती है परंतु हिंदुओं के मुख्यत: चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथ और रामेश्वरम है। उत्तराखंड में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा होती है। उत्तराखंड यात्रा की शुरुआत हरिद्वार या ऋषिकेश से होती है परंतु यदि आप उत्तराखंड के 4 धाम यात्रा पर जा रहे हैं तो जानिए कि इस यात्रा का क्रम क्या है। 
 
यात्रा का क्रम: बद्रीनाथ के कपाट 04 मई 2025 को खुलेंगे और केदारनाथ धाम के कपट 02 मई 2025 को सुबह 07 बजे खुलेंगे। यात्रा के क्रम के अनुसार सबसे पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री, इसके बाद केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ के दर्शन करना चाहिए। यहां स्थित हेमकुंड साहिब के दर्शन करना न भूलें। 30 अप्रैल को यमुनोत्री और गंगोत्री के दर्शन कर सकते हैं। 2 मई को केदारनाथ के, 4 मई को बद्रीनाथ के और 25 मई को हेमकुंड साहिब के दर्शन कर सकते हैं। 
 
1. यमुनोत्री: सबसे पहले यमुनोत्री की यात्रा की जाती है। यमुनोत्री को यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। अक्षया तृतीया के दिन यहां के कपाट खुलते हैं। यमुना नदी का उद्गम कालिंद नामक पर्वत से हुआ है। कालिंद पर्वत से नदी का उद्गम होने की वजह से ही लोग इसे कालिंदी भी कहते हैं। यमनोत्री में यमुनाजी का मंदिर है। ऋषिकेश से 220 किमी का सड़क मार्ग तय करने के बाद फूलचट्टी नामक स्‍थान से यमनोत्री की चढ़ाई प्रारंभ होती है। फूलचट्टी तक श्रद्धालु अपनी इच्‍छानुसार बस या निजी वाहन से पहुंच सकते हैं।
 
2. गंगोत्री: यमुनोत्री के बाद गंगोत्री की यात्रा करते हैं। गंगोत्री को गंगा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गंगोत्री नामक वह स्थान है जिसे गंगा नदी का उद्गम स्थल मानते हैं। गंगोत्री में माता गंगा का एक पवित्र और प्राचीन मंदिर भी बना हुआ है। यमुनोत्री में यमनुनाजी के दर्शन करने के बाद आप यहां पहुंचे।
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3. केदारनाथ: केदारनाथ और पशुपति नाथ मिलकर पूर्ण शिवलिंग बनता है। यदि केदारनाथ के दर्शन किए हैं तो पशुपतिनाथ के दर्शन करना जरूरी होता है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण होता है। वर्तमान में स्थित केदारेश्वर मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने मंदिर बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 508 ईसा पूर्व आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के पीछे ही उनकी समाधि है। दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। केदारनाथ के कपाट खुलने के पहले ही तीर्थ यात्री यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा करके गौरीकुंड या सोनप्रयाग पहुंच जाते हैं। यहां से केदारनाथ की यात्रा प्रारंभ होती है। 
 
4. बद्रीनाथ धाम: हिमालय के शिखर पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। यह चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के किनारे बसा है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप में बद्रीनाथ को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर को आदिकाल से स्थापित और सतयुग का पावन धाम माना जाता है। इसकी स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी। बद्रीनाथ के दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शन करने का महात्म्य माना जाता है। चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी'। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्‍य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहिए।
 
केदारनाथ से बद्रीनाथ जाने के दो मुख्य रास्ते हैं: एक ऊखीमठ, चोपता, गोपेश्वर होते हुए और दूसरा रुद्ध प्रयाग होते हुए। ऊखीमठ वाला रास्ता लगभग 207 किलोमीटर का है और तुंगनाथ मंदिर के दर्शन के लिए एक अच्छा विकल्प है। दूसरा, रुद्ध प्रयाग वाला रास्ता, ऊखीमठ वाले रास्ते से थोड़ा लंबा है, लेकिन रुद्ध प्रयाग में मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम को देखने का मौका मिलता है। 

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