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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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12 ज्योतिर्लिंग : एक परिचय

शिव का वरदान है 12 ज्योतिर्लिंग

हमें फॉलो करें 12 ज्योतिर्लिंग : एक परिचय

- विनोद द. मुले


हिन्दू धर्म एवं विज्ञान का चोली-दामन का साथ रहा है। हमारे धर्माचार्यों ने विज्ञान के कई नियमों को धर्म का जामा पहनाया ताकि हम धर्म के नाम पर ही सही, इन नियमों का पालन कर अपने जीवन को सुखकर करें। ठीक इसी प्रकार राष्ट्रीय एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमारे धर्माचार्यों ने धर्म को ही माध्यम बनाया।

यही कारण है कि शंकराचार्य ने देश के 4 कोनों में 4 धामों की स्थापना की। देश के 12 विभिन्न स्थानों पर स्थित शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भी हमारी राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुए हैं। इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा से हमें हमारे विशाल देश की एक झलक देखने का अवसर मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री शिवशंकर ने हमारे देश के जिन 12 स्थानों पर अवतार लेकर अपने भक्तों को वरदान दिया, वहां पर इन ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई।

यह 12 ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं-


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(1) श्री सोमनाथ : गुजरात के सौराष्ट्र क्षे‍त्र में स्थित यह ज्योतिर्लिंग ऐतिहासिक महत्व रखता है। यहां रेल और बस से जा सकते हैं। रेल वेरावल तक जाती है। सोमनाथ के वर्तमान मंदिर का उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था।

सौराष्ट्र देशे विशवेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम् तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।


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(2) श्री मल्लिकार्जुन : यह ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत को दक्षिण का कैलास भी कहते हैं। बिनूगोडा-मकरपुर रोड तक रेल से जा सकते हैं। यह स्थान कृष्णा नदी के तट पर है।

श्री शैलश्रृंगे विव‍िधप्रसंगे, शेषाद्रीश्रृंगेऽपि सदावसंततम्।
तमर्जुनं मल्लिकार्जुनं पूर्वमेकम्, नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।


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(3) श्री महाकालेश्वर : मध्यप्रदेश के उज्जैन में यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। नागदा, भोपाल एवं इंदौर से यहां तक रेल है। ये तीनों स्थान देश के सभी महानगरों से रेल से जुड़े हुए हैं। ये शिप्रा नदी के तट पर है।

अवंतिकाया विहितावतारम्, मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थम्, वंदे महाकाल महासुरेशम्।।


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(4) श्री ओंकारेश्वर : यह ज्योतिर्लिंग भी मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे स्थित है। इंदौर-खंडवा रेलमार्ग पर ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है। यहां से ओंकारेश्वर 12 किमी है। यहां पर विंध्य पर्वत ने शिवजी की आराधना की थी।

कावेरिकानर्मदयो: पवित्रसमागे सज्जनतारणाय।
सदैव मांधातृपुरे वसंतम्, ओंकारमीशं शिवमेकमीडे


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(5) श्री केदारनाथ : भगवान शिव यह यह अवतार उत्तराखंड के हिमालय में लगभग 12 हजार फुट की ऊंचाई पर है। ऋषिकेश तक रेल से जा सकते हैं। इसके बाद गौरीकुंड तक बस से जाना पड़ता है, फिर पहाड़ी मार्ग से पैदल या टट्टू पर। हिमालय को शिवजी की क्रीड़ास्‍थली माना गया है।

हिमाद्रीपार्श्वे च समुल्लसंतम् सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै:, केदारसंज्ञं शिवमीशमीडे



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(6) श्री भीमाशंकर : महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वतमाला में भीमा नदी के तट पर यह ज्योतिर्लिंग स्‍थित है। नासिक से यह स्थान 180 किलोमीटर पड़ता है। यहां पर भगवान शिव ने भीमासुर राक्षस का वध किया था। पुणे के पास तलेगांव से भी यहां जा सकते हैं।

यो डाकिनीशाकिनिकासमाजै: निषेव्यमाण: पिश‍िताशनेश्च।
सदैव भीमेशपद्प्रसिद्धम्, तं शंकरं भक्तहिंत नमामि।



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(7) श्री‍ विश्वनाथ : यह ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के वाराणसी में है। यह स्‍थान रेल से देश के लगभग सभी भागों से जुड़ा है। इसे बनारस या काशी भी कहते हैं। यह गंगा के तट पर है। कहते हैं- वाराणसी की सीमा में जो व्यक्ति अपने प्राण त्यागता है, वह इस संसार के जंजाल से मुक्त हो जाता है, क्योंकि भगवान विश्वनाथ स्वयं उसे मरते समय तारक मंत्र सुनाते हैं।

सानंदमानंदवने वसंतमानंदकंद हतपापवृंदम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथम्, श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।


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(8) श्री त्र्यंबकेश्वर : यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 25 किमी दूर गोदावरी नदी के तट पर है। यह स्थान महर्षि गौतम और उनकी पत्नी गौतमी से जुड़ा है।

सह्याद्रीशीर्षे विमले वसंतम्, गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्यर्शनात् पातकपाशु नाशम्, प्रयाति त्र्यंबकमीशमीडे।


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(9) श्री वैद्यनाथ : यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। कहते हैं- रावण ने घोर तपस्या कर शिव से एक लिंग प्राप्त किया जिसे वह लंका में स्थापित करना चाहता था, परंतु ईश्वर लीला से वह लिंग वैद्यनाथ में ‍ही स्थापित हो गया।

पूर्वोत्तरे पारलिका‍भिधाने, सदाशिवं तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मम्, श्री वैद्यनाथं सततं नमामि।



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(10) श्री नागेश्वर : महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हिंगोली नामक स्थान से 27 ‍किमी दूर यह ज्योतिर्लिंग है। यहां दारूक वन में निवास करने वाले दारूक राक्षस का नाश सुप्रिय नामक वैश्य ने शिव द्वारा दिए पाशुपतास्त्र से किया था।

याम्ये सदंगे नगरेऽतिरम्ये, विभूषिताडं विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्ति मुक्ति प्रदमीशमेकम्, श्री नागनाथं शरणं प्रपद्यै।



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(11) श्री रामेश्वरम् : इस ज्योतिर्लिंग का संबंध भगवान राम से है। राम वानर सेना सहित लंका आक्रमण हेतु देश के दक्षिणी छोर पर आ पहुंचे। यहां पर श्रीराम ने बालू का लिंग बनाकर शिव की आराधना की और रावण पर विजय हेतु शिव से वरदान मांगा। रामेश्वरम् तमिलनाडु में स्‍थित है। यहां बस और रेल दोनों से जा सकते हैं।

श्री ताम्रपर्णीजलराशियोगे, निबध्य सेतु निधी बिल्वपत्रै:।
श्रीरामचंद्रेण समर्पितं तम्, रामेश्वराख्यं सततं नमामि।



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(12) श्री घृष्णेश्वर : महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में दौलताबाद के पास विश्वप्रसिद्ध अजंता-एलोरा की गुफाएं हैं। यहीं पर ज्योतिर्लिंग स्‍थित है। कहते हैं- 'घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से वंशवृद्धि होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।'

इलापुरे रम्यशिवालये स्मिन्, समुल्लसंतम त्रिजगद्वरेण्यम्।
वंदेमहोदारतरस्वभावम्, सदाशिवं तं घृषणेश्वराख्यम्।।


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